Kabirdas Jayanti 2022 : संत कबीर दास हिंदी साहित्य के ऐसे प्रसिद्ध कवि थे, जिन्होंने समाज में फैली भ्रांतियों को दूर करने अपना पूरा जीवन समर्पित किया

अध्यात्म,| ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को मध्यकाल के महान कवि और संत कबीर दास की जयंती मनाई जाती है। संत कबीर दास हिंदी साहित्य के ऐसे प्रसिद्ध कवि थे, जिन्होंने समाज में फैली भ्रांतियों और बुराइयों को दूर करने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने अपने दोहों के जरिए लोगों में भक्ति भाव का बीज बोया। कबीर दास जी एक संत तो थे ही साथ ही वे एक विचारक और समाज सुधारक भी थे।

कबीर दास जी के दोहे अत्यंत सरल भाषा में थे, जिसकी वजह से इनके दोहों ने लोगों पर व्यापक प्रभाव डाला। आज भी कबीर दास जी के दोहे जीवन जीने की सही राह दिखाते हैं। कल यानी 14 जून को ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि है और इसी दिन कबीर जयंती भी है।

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संत कबीर दास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे। वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ़ झलकती है। लोक कल्याण हेतु ही मानो उनका समस्त जीवन था। कबीर को वास्तव में एक सच्चे विश्व – प्रेमी का अनुभव था। कबीर की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उनकी प्रतिभा में अबाध गति और अदम्य प्रखरता थी। समाज में कबीर को जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है।

संत कबीर दास से जुड़े से कई ऐसे प्रसंग और प्रवचन आज भी लोकप्रिय हैं, जिनमें सुखी और सफल जीवन के सूत्र बताए गए हैं. अगर इन्हें अपने जीवन में अपना लिया जाए तो कई परेशानियां खत्म हो सकती है. आइए जानते हैं एक ऐसी ही कहानी जब कबीर ने एक धनवान व्यक्ति को बताया था कपड़ों की उपयोगिता का महत्व. एक धनवान व्यक्ति कबीर की अमृतवाणी सुनने रोजाना आया करता था. वो प्रवचन ध्यान से सुनता और उनका चिंतन करता था. उस व्यक्ति को ये जानने की बड़ी उत्सुकता थी कि कबीर की वाणी में ऐसा क्या है जो लोग इन्हें इतना महत्व देते हैं. एक दिन प्रवचन के दौरान उसकी नजर कबीर दास जी के कुर्ते पर पड़ी.जो कि बहुत ही साधारण सा था।

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उसने सोचा कि वो कबीर दास जी को एक कुर्ता भेंट करेगा।  धनी व्यक्ति ने कुछ दिनों के बाद मखमल का एक कुर्ता कबीर दास जी को भेंट कर दिया. कुर्ते की विशेषता ये थी कि उसका बाहर दिखने वाला कपड़ा मुलायम था और अंदर दूसरी तरफ साधारण कपड़ा लगा हुआ था। कबीर दास जी ने धनी व्यक्ति का उपहार स्वीकार कर लिया. अगले दिन जब प्रवचन शुरू हुए तो कबीर दास जी ने वही कुर्ता पहना हुआ था. लेकिन संत कबीर को कुर्ता पहना देख धनवान व्यक्ति चकित रह गया।

कबीर दास जी ने कुर्ता उल्टा पहना था, यानी कि मलमल वाला हिस्सा शरीर को छू रहा था और साधारण हिस्सा बाहर दिख रहा था। प्रवचन समाप्त होने के बाद उस धनी व्यक्ति ने पूछा, ‘ये आपने क्या किया? कुर्ता ऐसे कैसे पहना है?’तब सभी के सामने कबीर दास जी ने बताया कि ये कुर्ते की भेंट इन्हीं धनी व्यक्ति ने की है। कुर्ता उल्टा पहनने पर कबीर बोले कपड़े शरीर की उपयोगिता के लिए होते हैं, अपनी इज्जत को ढकने के लिए होते हैं दिखावे के लिए नहीं। मलमल का भाग शरीर को स्पर्श होना चाहिए था इसलिए इसे उल्टा पहना है. दिखाने के लिए तो साधारण हिस्सा ही काफी है। धनी व्यक्ति को और अन्य लोगों को ये बात समझ आ गई कि कबीर जो बोलते हैं, उसे अपने जीवन में उतारते भी हैं।

कबीर के दोहे, जो दिखाएंगे आपको जीवन की राह

चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोए 
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए।

ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग                     
तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग।

मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार                    
फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार।

तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार
सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार।

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय।

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