तुलसी का अर्थ समस्त विकारों को नष्ट करना

तुलसी
तुलसी का अर्थ समस्त विकारों को नष्ट करना

अध्यात्म, कल्पना शुक्ला|  परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी(गुरु जी) ने कथा में यह बताए कि तुलसी का शाब्दिक अर्थ, तुलसी का अभिप्राय है समस्त विकारों को नष्ट करना और निर्मल बनाना । तुलसी समस्त वातावरण को शुद्ध करता है वायरस को मारता है विकारों को मारता है क्योंकि तुलसी का अंतःकरण का गुण भी यही था उसने अपने समस्त विकारों को मारा था ।

जालंधर इसका भरण पोषण परवरिश जो है वह समुद्र देवता ने किया था जल में होने के कारण उसका नाम जालंधर पड़ा था और जालंधर भगवान शिव की तरह ही दिखता था रूप रंग और शक्ति में भगवान शिव के समान था उसकी पत्नी का नाम वृंदा थी और वृंदा पति पारायण थी सती थी साध्वी थी और हमेशा ही पति चरण की सेवा करती थी जिसके चलते जालंधर की शक्ति में वृद्धि होती थी ।

पति पत्नी का विचारों का मेल हो रहा हो तो फिर वह पूरी पूरी शक्ति उसे प्राप्त होती है वह पत्नी भी शक्तिशाली होती है और वह पति भी शक्तिशाली होता है वृंदा नारायण की पूजा करती थी भगवान विष्णु की पूजा करती थी वहां से जालंधर शक्तिशाली होता था भगवान की कृपा होती थी।

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ऐसा आशीर्वाद प्राप्त था कि जब तक शक्ति रहेगी जब तक वृंदा का सहयोग मिलता रहेगा साथ मिलता रहेगा तब तक जालंधर का कोई बाल बाका नहीं कर सकता जालंधर देवताओं को पराजित करने में लगा रहता था किसी से पराजित होने वाला नहीं था कही से उसका वध होने वाला नहीं था और उसकी पत्नी पूजा पाठ में लगी थी इसलिए उसकी सारी शक्ति उसको प्राप्त होती थी ,सभी देवता नारायण को याद किए ,भगवान विष्णु आए और भगवान विष्णु पता किए आखिर जालंधर इतना शक्तिशाली क्यों और कैसे है ?

जालंधर युद्ध करने आया था और उसकी पत्नी वृंदा संकल्प लेकर बैठ गई कि जब तक आप विजय अभियान से वापस लौट नहीं आओगे तब तक मैं अनवरत अनशन करके व्रत करके भगवान का ध्यान करके और पूजन से नही उठूंगी,जब भगवान ने देखा की वृंदा की शक्ति के कारण जालंधर देवताओं को पराजित करने में सफल हो रहा है तो भगवान जालंधर का रूप धारण करके वृंदा के पास पहुंच जाते हैं और इसके बाद जब वृंदा के पास पहुंचते हैं तो वृंदा जब भगवान रूपी पति को देखती है तो पूजा से उठ कर चरण स्पर्श करती है,उसका संकल्प टूट गया, जो व्रत कर रही थी जो पाठ कर रही थी उसे पाठ से उसे मंत्र से उसका ध्यान भंग हो गया ।

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भगवान विष्णु को पति समझकर चरण स्पर्श करती है,जैसे ही पति समझकर के स्पर्श किया वैसे ही जालंधर को देवताओं ने मार डाला। जालंधर के सिर कटकर वृंदा के पास आया अपने पति के कटा हुआ सर को देख कर यह कौन हो सकता है ?यह मारा कौन गया है ? भगवान से प्रश्न करती है,और भगवान उस समय बिल्कुल शांत हो जा रहे हैं कुछ भी जवाब नहीं दे रहे हैं भगवान बिल्कुल मौन रहते है भगवान नारायण को दर्शन देना ही था चतुर्भुज रूप में नारायण दर्शन दिए,भगवान विष्णु के रूप को देखकर वृंदा ने श्रापित कर दिया कि आप के ऊपर कलंक है आप काले हो जाओ और आप साथ ही साथ मेरे प्रश्न करने पर आप मूर्ति की तरह खड़े रह गए कोई भी उत्तर नहीं दिए इसलिए आप पत्थर बन जाओ। भगवान वृंदा के श्राप को स्वीकार कर लिए और जालंधर की कटे हुए सर डेड बॉडी जब जलती है तो भस्म में से पौधा निकल जाता है, वही तुलसी होती है। वहां पर तुलसी का उदय होता है तुलसी जी की उत्पत्ति होती है ,

वृंदावन उसी के नाम में पड़ा है वृंदा का अर्थ होता है तुलसी। जहां पर तुलसी का ही वन हो वह वृंदावन है।
वहां पर भगवान नाचते हैं वहां पर भगवान खेलते हैं आनंद लेते हैं क्योंकि वृंदावन का मतलब होता है जिसके अंतःकरण में वृंदावन की तरह पवित्रता हो जाए निर्मलता हो जाए जिसके अंदर में कोई विकार ना रह जाए वहां भगवान नाचते खेलते हैं भगवान को वृंदावन बहुत प्रिय है।

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भगवान कृष्ण बार-बार राधा से यही कहते थे कि सब कुछ हो जाए लेकिन वृंदावन मुझे बहुत पसंद है, जब अपने अंदर में निर्मलता रहे इसी प्रकार का विकार न रह जाए अंदर की शुद्धि हो भगवान आनंद में रहते हैं प्रसन्न रहते हैं । जब तुलसी का प्रभाव रहेगा अंतरण में उतना ही शुद्धता रहेगी,भगवान अंदर में नाचेंगे और आनंद में रहेंगे आसपास चारों तरफ आने वाले जो वायरस होते हैं उसको तुलसी नष्ट करती है। तुलसी शरीर को भी शुद्ध रखती है वातावरण को भी शुद्ध रखती है और अंतरकरण में भी पवित्रता लाती है।

इस तरह भगवान शालिग्राम से विवाह होता है भगवान काले भी हो जाते है पत्थर भी हो जाते हैं और हर वर्ष तुलसी के साथ उसका संबंध कराया जाता है। भगवान वचन देते हैं बिना तुलसी के कोई प्रसाद स्वीकार नहीं करूंगा क्योंकि तुलसी मुझे पति मानकर चरण स्पर्श की थी इसलिए हम हमेशा इसका साथ निभाएंगे।

तुलसी की उत्पत्ति की शालिग्राम की उत्पत्ति की और दोनों के संबंध की यह कथा है लेकिन अब इसमें बहुत से आडंबर बहुत से शास्त्रों में कहीं कुछ लिख दिया गया कि भगवान ने ऐसा छल किया भगवान ने कपट किया और वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया और इस तरह से भगवान ने गलतियां की ऐसी बातें फैला देते है,वृंदा संकल्प लेकर बैठी थी जब तक पति विजय यात्रा से नहीं आते तब तक मैं पूजा करूंगी यहां से नहीं उठूंगी और पति का विजय मतलब देवत्व की सज्जनों की हार होना। भगवान विष्णु जनमानस की रक्षा के लिए उसके पूजा खंडन करने जाते हैं , वृंदा को लगा कि हमारे पति को विजय प्राप्त हो गई, चरण स्पर्श कर लेती है। भगवान बिना तुलसी के कुछ भी स्वीकार नहीं करते है,

प्रत्येक वर्ष देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न होता है।

 

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