राम के जो ईश्वर है वह रामेश्वर है एवं राम जिनका ईश्वर है वही रामेश्वर हैं….श्री संकर्षण शरण जी(गुरूजी)

गुरु वाणी,

ज्योतिर्लिंग की स्थापना और रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा, रामेश्वर धाम की महिमा पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरूजी) के मुखारविंद से सुनने का सौभाग्य हम सभी को प्राप्त हुआ ।
शिव समान प्रिय मोहि न दूजा:
भगवान राम ने मन में संकल्प लिए भगवान शिव जी की स्थापना करने के लिए और जो शिव द्रोही होते हैं वह भगवान राम को पसंद नहीं होते और जो भगवान राम से प्रेम नहीं करते वह शिव को पसंद नहीं होते l
          शंकरप्रिय मम द्रोही शिव द्रोही मम दास।
        ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास॥                                                                      अर्थात जिनको शंकर प्रिय हैं, परंतु जो मेरे द्रोही हैं एवं जो शिव के द्रोही हैं और मेरे दास (बनना चाहते) हैं, वे मनुष्य कल्पभर घोर नरक में निवास करते हैं l

राम के जो ईश्वर है वही रामेश्वर है, भगवान शिव ने कहाराम जिनका ईश्वर है वह रामेश्वर रामेश्वर है….
कहा जाता है कि जहां ज्योतिर्लिंग स्थापित होती है वहां के दर्शन मात्र से ही मनुष्य सीधे स्वर्ग को प्राप्त होते हैं, और जो गंगा जल चढ़ाते हैं भगवान शिव स्वयं उनके ऊपर कृपा करते हैं उनके साथ होते हैं । इस तरह रामेश्वर धाम की महिमा बताई गई । भगवान शिव स्वयं कुप्रवृत्ति के संहारक विनाशक है इसलिए भगवान राम ने शिव लिंग की स्थापना कि और आगे का कार्य भगवान शिव जी से करने के लिए प्रार्थना किए, आगे भगवान राम कहते हैं कि ..जो बुराई को मिटाने वाला है कुप्रवृत्ति को समाप्त करता है, हमारी गलतियों को बताते है, हमें डांट सके ,फटकार सके, ऐसे विश्वास रुपी शिव की स्थापना करनी है , जब विश्वास प्रबल होता है तब हम कोई कार्य अच्छे से कर पाते हैं ।

शिव द्रोही मम भगत कहावा, सो नर सपनेहुँ मोहि न पावा॥
जो शिव से द्रोह रखता है और मेरा भक्त कहलाता है, वह मनुष्य स्वप्न में भी मुझे नहीं पाता। और भगवान शिव कहते हैं… आनंद दायक ,रघुनायक सकल सुखदायक: दोनों आनंद में रहते हैं भगवान राम शिवजी की आराधना करके आनंद में रहते हैं और भगवान शिव राम की आराधना करके आनंद में रहते हैं। भगवान ने दो जगह शिव की स्थापना की एक मन में और दूसरा बाहर । मन में स्थापना करके अंदर की कुप्रवृत्तियों को समाप्त करना ,अंदर के जहर को समाप्त करना ,और बाहर मंदिर में स्थापना करके भांग, धतूरा ,गांजा के माध्यम से बाहर के जहर को समाप्त करना । भगवान को अर्पित करना। इस तरह अंदर बाहर दोनों जगह भगवान शिव की स्थापना किए।
धर्म का पूल जब भी बनाना है तो उसमें विलम्ब नहीं करना चाहिए, शुभस्य शीघ्रम…
शुभ कार्य में कभी भी विलंब नहीं करना चाहिए, हनुमासन जी कहते है जिनके नाम की इतनी महिमा है उसे पुल बनाने की क्या आवश्यकता है ? लेकिन कही अहंकार ना हो जाए इसलिए भगवान राम पुल बनाते हैं भगवान शिव जी की स्थापना करते हैं भगवान का कार्य विश्वास की स्थापना करना ।

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