जीवन यात्रा का उत्तरायण अज्ञान से ज्ञान में प्रवेश करना ही संक्रांति…….

गुरु जी
जीवन यात्रा का उत्तरायण अज्ञान से ज्ञान में प्रवेश करना ही संक्रांति.......पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरु जी)

अध्यात्म BY कल्पना शुक्ला | परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरु जी) ने कथा के माध्यम से हम सबको मकर संक्रांति का महत्व बताते हुए कहा कि जीवन यात्रा का उत्तरायण अज्ञान से ज्ञान में प्रवेश करना ही संक्रांति होता हैं । संक्रांति का मतलब प्रवेश करना,यात्रा करना, एक स्थान से दूसरे स्थान जाना उसको कहते हैं , संक्रमण करना ,संक्रमण शब्द से संक्रांति का उदय हुआ और यह संक्रमण सूर्य का होता है, शास्त्रों में सूर्य के संक्रमण को,सूर्य के प्रवेश करने को संक्रमण कहा है। बारह राशि में सूर्य का संक्रमण होता है,साल भर में 12 संक्रांति लगती है लेकिन बारह संक्रांतियों में दो संक्रांति सबसे महत्वपूर्ण मानी गई है,एक मकर संक्रांति और दूसरी महत्वपूर्ण मानी गई है कर्क संक्रांति।

मकर संक्रांति में अग्नि तत्व के बारे में बताया गया है अग्नि तत्व को निरूपण करता है और कर्क संक्रांति जल तत्व को प्रतिनिधित्व करता है,जल तत्व का निरूपण करता है , मकर संक्रांति हमेशा माघ के महीने में जो इस समय चल रहा है सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करने पर यह संक्रांति होती है। अग्नि अर्थात ऊर्जा एनर्जी का प्रतीक तेज का प्रतीक है यह अग्नि तत्व को प्रतिनिधित्व करता है ऊर्जा को प्रतिनिधित्व करता है। कर्क संक्रांति जुलाई में होता है 10 जुलाई से 15 जुलाई के आसपास होता है जो कि जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता हैं।

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आज के दिन से सूर्य की गति उत्तरायण की यात्रा करने की होती है, अब तक सूर्य दक्षिणायन में होती थी दिन छोटा हुआ करता था दक्षिण की तरफ जाते थे अब उत्तर की तरफ बढ़ने लगता है। दिन धीरे-धीरे 1 मिनट 2 मिनट आगे आगे बढ़ने लगता है। दूसरा महत्व यह हुआ आज के दिन ही भगवान श्री नारायण ने राक्षसों युद्ध करके युद्ध पर विजय प्राप्त किए थे युद्ध समाप्ति की घोषणा किए थे।

आज ही के दिन भागीरथी के प्रयास से गंगा मैया का अवतरण हुआ था जेष्ठ के महीने में गंगा दशहरा मनाते हैं , गंगा जी उस समय से चलते हुए भागीरथ का पीछा करते हुए कपिल मुनि के आश्रम होते हुए आज ही के दिन गंगासागर में जाकर मिली थी और राजा सगर के समस्त पुत्रों का समस्त लोगों का उद्धार की थी पवित्र की थी,गंगा सागर मिली थी इस प्रकार से तीन तरह से आज का यह दिन विशेष महत्व वाला हो जाता है और यही कारण है कि आज के दिन सभी प्रयागराज में प्रयागराज में पधारते हैं । तुलसीदास जी ने इसलिए लिखा माघ मकर गति रवि जब होई…..मांघ के महीने में जब सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता है पिता का पुत्र के घर प्रवेश होता है, अर्थात अज्ञान से ज्ञान की तरफ से यात्रा होती है परिवर्तन होता है ऐसी स्थिति में अज्ञान को दूर करने के लिए ज्ञान का लाभ लेने के लिए सभी लोग तीर्थ राज में आते हैं।

तुलसीदास जी जहां पर संतों का समूह हो उसे ही तीर्थ राज कहा है, संतो के समूह को ती रज कहा गया जहां भी संतों का समूह एकत्रित होकर के भक्ति भाव में भगवान की लीला कथाओं का श्रवण ,पठान ,मनन कर रहे हैं उस स्थान को तीर्थराज कहा जाता है हम सब के अंदर में भी समस्त प्रकार के ऋषि मुनि रहते हैं, त्यागी रहते हैं, बैरागी रहते हैं संत रहते हैं महात्मा रहते हैं, जिस ,समय मनुष्य के अंतःकरण में त्यागी ,बैरागी ,विरक्त, महात्मा ऋषि सब एकत्रित हो जाते हैं अंतःकरण में वही अंतःकरण में तीर्थराज हो जाता है

देव दनुज, किन्नर, नर श्रेणी…..

देवता ,दनुज, राक्षस,किन्नर और नर श्रेणी अर्थात मनुष्य के अनेक प्रकार से श्रेणी वर्ण, वह सभी वर्णों के लोग आदरपूर्वक मां गंगा में डुबकी लगाते है। मां गंगा सगर के पूरे खानदान को तरण तरण कर दी थी मुक्त कर दी थी मोक्ष में प्रवेश कर दी थी इसलिए हम सब हमारे पूर्वजों को ही मुक्ति मिले हमारे खानदान के जितने भी लोग अकाल मृत्यु में या ऐसे भी जो गए हुए हैं उनको भी मोक्ष प्रदान हो नारायण का आश्रय उनको मिले परमपिता का आश्रय मिले और अपने जीवन में भी अंतःकरण में भी तमाम प्रकार की बुराइयों का तमाम प्रकार की विकृतियों का अंत हो सके,और हम भी मुक्त हो सके ,नाना प्रकार केआडंबर,प्रपंच,कुप्रवृत्त्यो से मुक्त हो सके इसलिए आज के दिन पवित्र गंगा में डुबकी लगाई जाती है। अज्ञान से ज्ञान की यात्रा, अंधकार से प्रकाश में प्रवेश करना यह सब हमारे अंदर के प्रवृत्ति होती है बाहर तो हम सब सूर्य को देख ही रहे हैं यह मनुष्य अंदर की चलने वाली व्यवस्था है जैसे सूर्य धीरे-धीरे उत्तर की तरफ जाते हैं, उसी तरह धीरे-धीरे हमें भी अपनी ऊर्जा को जागृत करनी चाहिए। हम एकदम तेजस्वी, यशस्वी नही बन पाते अंदर का अपना अग्नि तत्व भी अपनी उर्जा भी धीरे-धीरे उत्तरायण की यात्रा करनी चाहिए , अपनी एनर्जी को ऊपर ले आना समस्त चक्रों से होकर गुजरना यह आंतरिक सूर्य का उत्तरायण है, हम केवल बाहरी सूर्य को देखकर के उत्तरायण हो रहे हैं और इस समय हम कुछ भी कार्य कर लेंगे तो हमको पुण्य मिल जाएगा यह सोच लेते है।

उत्तरायण में शरीर का त्याग बहुत ही पवित्र माना गया है क्योंकि उत्तरायण में अगर कोई मर जाए तो कहा जाता है कि उसे सूर्य को भीष्म पितामह अपने अंदर के सूर्य की बात कर रहे थे कि हम इतने बुद्धिमान इतने तेजस्वी इतने तपस्वी इतने ज्ञानी होने के बावजूद भी अधर्म का साथ दिए जहां जरूरत रही बोलने की वहां हम नहीं बोले जहां बोलना नहीं चाहिए वहां बोले, जो कर्म हमें नहीं करना था वह कर्म हमने किया जो करना चाहिए था वह हमने नहीं किया मेरा जीवन भ्रमित रहा मैं तत्व को समझ नहीं पाया मैं ज्ञान से परिपूर्ण नहीं हो पाया क्योंकि मेरी ऊर्जा स्वयं की दक्षिण की यात्रा कर रही थी अब हमको समय मिला है अब हमारे जीवन में इस शरीर से कोई और कर्म नहीं करना है बल्कि अपने अंदर की स्थिति ऊर्जा को उत्तर की तरफ यात्रा करा ले,जब हम शरीर त्यागेंगे तो हमारी मुक्ति हो जाएगी उसे भाव में शरीर त्याग देंगे तो अभी से आवागमन से मुक्त हो जाएंगे हम प्रभु के धाम को पा जाएंगे हमेशा के लिए मोक्ष मिल जाएगा अब हम दोबारा जन्म लेना नहीं चाहते तो

भगवान ने उनको 6 महीने के लिए समय दिया ,जब भीष्म पितामह

अपनी ऐनर्जी को उर्द्घवगामी बनाना शुरू किया भगवान का चिंतन भगवान की भक्ति की तो उनको अपने शरीर की पीड़ा का कोई अनुभूति नहीं रहा, कहीं उनको पीड़ा की अनुभूति नहीं हुई, शरीर को शरीर नहीं समझे, देह में रहकर विदेह बन गए और मोक्ष की प्राप्ति किए ।

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