श्री राम कथा में आए भक्तों को परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण जी के मुखारबृंद से नवधा भक्ति की कथा सुनने का अवसर मिला

अध्यात्म ।। श्रीमती कल्पना शुक्ला ।। सासाराम, बिहार में चल रही श्री राम कथा के सातवें दिन पर परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी) के मुखारबृंद से कथा सुनने आएं भक्तों ने विभिन्न भक्तियों की कथा सुनी । मुख्य रूप से सभी भक्त जनों को नवधा भक्ति की कथा सुनने का अवसर मिला। जिसका संक्षिप्त वर्णन कुछ इस प्रकार है …

1) प्रथम भक्ति संतन कर संगा: संतों की संगति सज्जनों की संगति से भी भगवान की प्राप्ति होती है ।  यह पहली भक्ति होती है। अर्थात सुसंगति करना कुसंगति से दूर रहना।

2) दूसरी रति मम कथा प्रसंगा: जब भी भगवान की कथा हो तो आनंदपूर्वक सुनने के लिए उत्साहित रहे लालाइत रहें और ध्यान देकर सुनना चाहिए तब हम भक्ति कर रहे होते हैं यह दूसरी भक्ति है।

3) गुरु पद पंकज सेवा तीसरी भक्ति अमान: अपने गुरुजी के चरण कमल की सेवा करना और अभिमान नहीं करना बिना अभिमांन के गुरु चरणों की सेवा करना है यह तीसरी भक्ति है।

4) चौथी भक्ति मम गुणगान ,करई कपट तजि गान: भगवान के गुणों का गुणगान करना छल और कपट को त्याग करके तब चौथी भक्ति होती है, भगवान कहते हैं निश्चल होकर के निर्मल मन से जो हमारा गुणगान कर रहा होता है वह हमारी चौथी भक्ति कर रहा होता है।

5) मंत्र जाप मम दृढ़ विश्वासा ,पंचम भजन सो वेद प्रकाशा: भगवान कहते हैं मंत्र जाप में मेरा दृढ़ विश्वास होता है । अगर कोई निरंतर मंत्र जाप कर रहा होता है, वेद गायन कर रहे हैं, भजन कीर्तन कर रहे हैं तो पांचवी भक्ति कर रहा है।भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं की यज्ञानाम जप यज्ञोस्मी यज्ञों में मैं जप यज्ञ हूं। किसी भी प्रकार से मन से ,वचन से, कर्म से अगर मंत्र का जाप करते हैं तो भगवान की भक्ति कर रहे होते हैं।

6) छठ दम शील बिरति बहु करमा, निरत निरंतर सज्जन धरमा: संत पुरुषों के धर्म के आचरण में लगे रहना ,इंद्रियों का निग्रह करना ,अपने मन को मारना ,इंद्रियों को नियंत्रित करना , इंद्रियां भटक रही हो तो उसे नियंत्रित करना, ज्ञानेंद्रिय कर्मेंद्रिय को नियंत्रित करना यह छठवीं भक्ति है।

7) सातव सम मोहि मय जग देखा ,मोते संत अधिक कर लेखा : सब में परमात्मा का दर्शन करना, सियाराम मय सब जग जानी, अगर सब में हम भगवान का दर्शन करते हैं तो सातवीं भक्ति कर रहे होते हैं।

8) आठव जथा लाभ संतोषा ,सपनेहु नहिं देखई परदोषा जो भी प्राप्त हो उसी में संतुष्ट रहना तब आठवीं प्रकार की भक्ति होती है, स्वप्न में भी किसी में दोष न देखे, दुर्जनों में भी दोष ना देखें, तब भक्ति होती है सब में भगवान का स्वरूप देखना चाहिए।

9) नवम सरल सब सन छलहीना, मम भरोस हिय हर्ष न दीना : सबके संग सरलता ,सबके संग बिना कपट के व्यवहार, हृदय में प्रेम, भगवान पर भरोसा रखना और किसी भी स्थिति में दुखी ना होना हमेशा प्रसन्न रहना तब नवमी भक्ति होती है।

साथ ही इसके अलावा अनन्य भक्ति में प्रेमा भक्ति ,निर्भरा भक्ति इस प्रकार से भक्ति के अनेक प्रकार की भक्तियों चर्चा की गई है।

इस कथा में बिहार, उत्तर प्रदेश एवं देश के विभिन्न स्थानों से श्रद्धालुजन कथा का श्रवण करने उपस्थित हुए। साथ ही हज़ारों-लाखों भक्तजन जो पहुंचने नहीं पाए वे लोग भी सीधा प्रसारण (Live प्रसारण) के माध्यम से कथा एवं पूज्य गुरुजी से जुड़े रहें और श्री राम की भक्ति में मग्न रहें ।

आप भी इस कथा के Live telecast से जुड़ सकतें हैं। कथा का श्रवण करने के लिए इस लिंक के माध्यम से जुड़ें –

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