भगवान और गुरु जब सामने होते हैं तो स्वयं को उनके सामने वास्तविक रूप में प्रकट कर देना चाहिए…श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी)

गुरु वाणी,

कथा के माध्यम से पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी) ने यह बताएं कि जब गुरु और परमात्मा सामने होते हैं तो स्वयं को वास्तविक रूप में प्रकट करना चाहिए ,दिखावा नहीं करना चाहिए , भगवान भी यही कहते हैं।

मोहि कपट छल छिद्र न भावा… जब हम अपना वास्तविक रूप जब उनके सामने रखते हैं तो हमें सुधार देते हैं हमारी कुप्रवृत्तियों को ज्ञान के माध्यम से दूर करते हैं । कुंभकरण भी भगवान राम के पास वही करते हैं स्वयं को प्रस्तुत करते हैं।
मनुष्य के अंदर किस प्रकार से आसुरी प्रवृत्ति विद्यमान होती है जिन्हें दूर करने की आवश्यकता होती है, हम सब इस कुप्रवृत्ति से घिरे हुए होते हैं, अनेक प्रकार के राक्षस जो रावण के पहरेदार है ,….
दुर्मुख, अर्थात देवताओं के शत्रु
जब हम पूजा- पाठ ,यज्ञ ,धर्म,कर्म का विरोध करते हैं उस समय हमारे अंदर दुर्मुख की प्रवृत्ति विद्यमान होती है ।

मनुज आहारी, मनुष्य को खाने वाला आज मनुष्य ही मनुष्य का शत्रु होता है हर प्रत्येक मनुष्य के अंदर एक दूसरे को बर्बाद करने की प्रवृत्ति होती है उस समय यह गुण विद्यमान होता है ।

अतिकाय, बहुत अधिक खाने वाला जिसका खाए उसी से लड़े ,सब कुछ पा लेने के बाद असंतुष्ट रहना ,अतृप्त होना, सब कुछ स्वयं ही पा लेना कि इच्छा करना अतिकाय की प्रवृत्ति होती है ।

अकंपन जो बहुत बड़ा कुकर्म करके भी ना कांपे, दूसरे को डरा दे, जब गलत कार्य करने के बाद भी हम भगवान से भयभीत नहीं होते कुकर में ही करते हैं हमारे अंदर का कंपन की प्रवृत्ति विद्यमान होती है । छल ,कपट ,अहंकार, आदि। महोदर बहुत बड़ा पेट वाला जितना भी मिल जाए कभी तृप्त ना होना महोदर का गुण होता है । दुर्मुख जो सज्जनता का शत्रु है जो सुख को बर्बाद करने में लगा हुआ है, यह सब आसुरी प्रवृत्तियों हम सब मनुष्य के अंदर भी होता है । यह सब हम मनुष्यों की अवगुण है हम सबकी प्रवृत्ति है ,और मोह राजा है , राजा तुरंत समाप्त नहीं होते इन सब से मित्रता करते हैं ।
यह सब हमारे पहरेदार होते हैं, सब को मिटाना पड़ता है, सब कुछ समाप्त करने के बाद अहंकार को जागृत करते हैं और भगवान के सामने प्रकट कर देते हैं ।
जब हम संशय में घिरे होते हैं जब बहुत अधिक भ्रमित होते हैं अर्थात हम सर्पो के बीच होते हैं ऐसी अवस्था में हम भगवान का भी तिरस्कार कर देते हैं, तब भगवान की वाहन गरुड़ रूप में आकर के हमे संशय से छुड़ाते हैं भगवान भी हमारी रक्षा करते हैं ,भगवान के वाहन भी हमारी रक्षा करते हैं । चाहे नंदी के रूप में हो, गरुड़ के रूप में हो ,शेर के रूप में हो ,सभी हमारे रक्षा ही करते हैं । प्रत्येक परिस्थिति में हमें परमात्मा का ही चिंतन करना चाहिए ।

-: श्रीमती कल्पना शुक्ला 

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