भक्ति में वह शक्ति होती है कि भगवान से भी अपनी बात मनवा लेते हैं..

अध्यात्म ।। श्रीमती कल्पना शुक्ला ।।

परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी( गुरु जी) ने कथा के छठवें दिन केवट प्रसंग की कथा में यह बताएं कि केवट की भक्ति और प्रेम के सामने भगवान अपने आप को असमर्थ समझते हैं और भक्त की ही जीत होती है केवट किसी तरह से भगवान राम को चरण धुलवाने के लिए मना लेते हैं और भगवान मान जाते हैं, द्वापर में गोपी कन्हैया को नचा लेते थे और भगवान नाचते थे भक्ति में ही वह शक्ति होती है कि भगवान को भी अपने भक्त की बात मानना पड़ता है, बड़े ही सरल तरीके से केवट भगवान को मना लेते हैं भगवान केवट के प्रेम में केवट को ही नहीं अपितु केवट के पूरे परिवार को पूर्वजों को भी तार देते है,

सभी तीर्थों का राजा तीर्थराज प्रयागराज…..

बहुत ही सुंदर शब्दों में प्रयागराज की महिमा का वर्णन किया गया,भगवान राम ने तीर्थराज प्रयागराज की महिमा का बहुत ही सुंदर वर्णन किया प्रयागराज का वर्णन करते हुए कहते हैं इसके सचिव सत्य है ,श्रद्धा ही जिनके प्रिय नारी हो, त्रिवेणी माधव जिनके परम मित्र हो, जिनके भंडार में चार पदारथ भरा हुआ हो धर्म ,अर्थ काम और मोक्ष ऐसा पुण्य प्रदेश जहां पर अक्षय वट की छाया हो ,जहां पर संगम हो ,जहां पर सिंहासन में अक्षय वट की छत्रछाया हो, जिस राजा को सिंहासन पर बैठा करके गंगा और यमुना चवर डुला रही हो, ऐसा दृश्य प्रयागराज को देखकर के सबके दुःख दरिद्रता समाप्त हो जाती है।

आगे की कथा में गुरुजी यह बताए कि ज्ञानियों की स्थिति हमेशा संतुलन में होती है माता कौशल्या ज्ञान है और वह संतुलन में है भगवान कृष्ण भी अर्जुन को संतुलन में रहने की बात बताए, ज्ञान योग करने की बात बताएं ,ज्ञानी होने के लिए बोले ,ज्ञानियों की शरण में आने के लिए कहे। भरत जी प्रेम की साक्षात प्रतिमूर्ति है भरत जी के प्रेम के कारण भगवान अपने चरण पादूका प्रदान किए, जब भगवान राम वन को जाते हैं रास्ते का कांटा हटाते हुए जाते हैं कि जब भरत इस रास्ते में आएगा तो देखकर दुखी हो जाएगा ,

अगर सच्चे मन से भगवान का भजन चिंतन भक्ति करते हैं हमारे रास्ते के कांटे भगवान पहले ही साफ कर देते हैं भरत के आने से पहले रास्ते का कांटा भगवान राम साफ कर रहे हैं।

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