पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरूजी) ने गहराई से इसका अर्थ बताएं… हनुमानजी साम, दाम ,दंड,और भेद का प्रयोग करके चतुराई से कार्य बनाते….

पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरूजी)

अध्यात्म

सुंदरकांड के इस दोहे की व्याख्या करते हुए पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरूजी) ने गहराई से इसका अर्थ बताएं , जब हनुमान जी लंका जाते हैं तो रावण को समझाने के लिए साम, दाम ,दंड ,और भेद यह चारों का प्रयोग करते हैं पहले समझाते हैं साम का प्रयोग करते हैं विनती करूं जोरि कर रावन…. जब समझाने पर रावण नहीं मानते हैं तब दाम का प्रयोग करते हैं अर्थात दाम का,देने लेने का, लोभ का प्रयोग करते है|
लंका अचल राजू तुम करहु, राम चरण पंकज उर धरहु।
लंका में अचल राज्य करोगे लेकिन उसके बदले में अपने हृदय में भगवान के श्री चरण को धारण कीजिए हनुमान जी को माता सीता ने यही बताया था, रघुपति चरण हृदय धरि, तात मधुर फल खाहु।
भगवान के श्री चरणों को हृदय में धारण करके मीठे फल खाइए।हनुमान जी रावण को भी यही सिखाते हैं लेकिन जब दाम से भी काम नहीं चलता है तो दंड का प्रयोग करते हैं,

सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी, बिमुख राम त्राता नहिं कोपी।
संकर सहस बिष्नु अज तोही, सकहिं न राखि राम कर द्रोही॥

हे रावण! सुनो, मैं प्रतिज्ञा करके कहता हूँ कि रामविमुख की रक्षा करने वाला कोई भी नहीं है। हजारों शंकर, विष्णु और ब्रह्मा भी श्री राम जी के साथ द्रोह करने वाले तुमको नहीं बचा सकते। तुम जिसके भरोसे बैठे हो जिस अभिमान में बैठे हो हजारों ब्रह्मा ,हजारों विष्णु,हजारों शंकर भी राम के विमुख होने वाले की रक्षा नहीं कर सकते ।
रावण के दरबार में सभी खाने वाला और सोने वाला है, केवल विभीषण जी है जो सोने वाला नहीं था जागृत है, भगवान का नाम ले रहे हैं ,हनुमान जी देखते हैं रावण इसी के सहारे बचे हुए हैं , भेद का प्रयोग करते हैं जब रावण को विभीषण जी समझाते हैं रावण उसको सभा से निकाल देते हैं । विभीषण जी राम के शरण मे चले जाते हैं इस तरह हनुमानजी साम दाम, दंड, भेद का प्रयोग किए । रावण को समझाने के लिए और अंत में जब भगवान राम सेना के साथ तैयार होकर लंका की यात्रा शुरू करते है,
प्रभु बयान जाना वैदेही…. माता सीता को पता चल जाता है सब कुछ है शुभ होने लगता है बाम अंग फड़कने लगता है लेकिन रावण का सब कुछ उल्टा होने लगता है और वानर की आवाज से रावण भयभीत होने लगते है।
इस तरह हनुमानजी साम, दाम ,दंड,और भेद का प्रयोग करके चतुराई से कार्य बनाते हैं।

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