जो अपने हृदय में भगवान को धारण करें और सबके हृदय में भगवान का दर्शन करें वही सच्चा भक्त होता है…”श्री संकर्षण शरण जी ( गुरुजी)”

गुरु वाणी, 

कथा के माध्यम से पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी ( गुरुजी) ने यह बताएं कि जो भगवान के भक्त होते हैं वह सब में राम का दर्शन करते हैं पर्वत में, पहाड़ में ,नदी में ,सभी मनुष्य में और दैत्यों में भी । यही हनुमान जी कर रहे हैं ,चंद्रमा में भी राम के स्वरूप को बता रहे हैं, कि चंद्रमा में भगवान राम का ही स्वरूप है जिसके कारण परछाई के कारण चंद्रमा का कुछ हिस्सा काला दिखाई दे रहा हैं । भगवान के पूछने पर हनुमान जी ने यही उत्तर दिए जो भगवान के भक्त होते हैं।

सिया राम मैं सब जग जानी….

जो भगवान के भक्त होते वह सब में राम का ही दर्शन कर लेते हैं ,असुर में भी राम को ही देखते हैं, वही भगवान का सच्चा भक्त भी होता है। क्योंकि वह अभिमान, अहंकार ,और दोष मुक्त होते हैं ,इसलिए सब जगह भगवान की छवि ही दिखाई देने लग जाती है। अच्छाई दिखाई देते है ।हनुमान जी स्वयं हृदय में राम को धारण किए हुए हैं, और सब जगह दर्शन भी कर रहे हैं।अंगद जी रावण को समझाते हुए कहते हैं , रावण तुम्हारी बुद्धि सत्य को समझने के लिए तैयार नहीं है , जिस प्रकार कल्पवृक्ष साधारण वृक्ष ही नही है ,अमृत केवल एक रस ही नही है ,राम केवल एक साधारण मनुष्य नही है , कामधेनु क्या साधारण पशु है ? और गरुड़ साधारण पक्षी है ? शेषनाग साधारण सर्प है? बैकुंठ क्या साधारण लोक हैं? यही ज्ञान है, भक्ति को लाभ की दृष्टि से देखें तो विवेक नही होता है। जो भक्ति को लाभ की दृष्टि से देखते हैं , वह इसी तरह भटक जाते है, तुम कितना ज्ञानी हो , कितना धर्म है, इसी से पता चलता है । क्या हनुमान जी साधारण वानर है जो लंका जला कर के चले गए , अशोक वाटिका उजाड़ कर पूरे नगर को जला दिए , तुम्हारे पुत्र को मार कर चले गए क्या वह साधारण वानर है ? यदि राम से बैर लेते हो तो स्वयं ब्रह्मा और शिव भी तुम्हें नहीं बचा पाएंगे । यही हनुमान जी ने भी कहा था यदि भगवान राम से बैर लेते हो तो स्वयं भगवान शिव भी तुम्हे नहीं बचा पाएंगे ।

जो स्वयं अपनी ही मुख से अपनी प्रशंसा करने लगे वह प्रशंसा का पात्र नहीं होता…
रावण अपनी प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि तुम मेरे वीरता से परिचित नहीं हो , तुम मेरी शक्ति को जानते ही कहां हो, तुमने तो केवल विभीषण को देखा जो डरपोक है , कुंभकरण मेरा भाई है ,मेघनाथ मेरा पुत्र है,
तुमने मेरा पराक्रम सुना ही नहीं मैने कैलाश पर्वत को उठा लिया था, और सबको जीत लिया हूं, संपूर्ण जगत को जीत लिया हूं , अनजाने में हल्के समझ रहे हो । तुम्हारे प्रभु अधिक शक्तिशाली है यह भूल कर रहे हो, जिसकी प्रशंसा तुम कर रहे हो वह वास्तव में प्रशंसा योग्य नहीं है , अंगद जी कहते हैं तुम्हारे सभा में इतने सभा जन बैठे हैं वह तुम्हारी प्रशंसा नही कर रहे है,
जो अपनी प्रशंसा स्वयं करें वास्तव में वह सूर्य वीर नहीं होता…
सूरवीर वह होता है जिसकी प्रशंसा सब लोग करें ,राम की प्रशंसा हनुमान जी करते हैं, अंगद जी करते हैं और पूरे जगत करते हैं । स्वयं भगवान शिव भी अराधना करते है, कोई दरबारी रावण की प्रशंसा नहीं कर रहे हैं , हनुमान जी अंगद जी और पूरे जगत भगवान राम की प्रशंसा करते है सब राम का गुणगान गाते हैं। यहां तक कि स्वयं विभीषण भी राम की शरण में चले गए , सुख और सारंग भी भगवान राम का ही गुणगान कर रहे हैं । इस प्रसंग से यह शिक्षा मिलती है हमें अपनी प्रशंसा स्वयं नहीं करनी चाहिए। रावण बुद्धि के लोग अपने मुंह से अपनी प्रशंसा कर लेते हैं, भगवान कभी स्वयं की प्रशंसा नहीं करते वह सारा श्रेय किसी और को देते है । स्वयं कर्ता, धर्ता और नियंता होते हुए अकर्ता बनकर बैठे रहते हैं।

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