अध्यात्म, कल्पना शुक्ला |Hind mitra News : परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी( गुरुजी ) प्रयागराज ने मानस की कथा के माध्यम से यह बताएं कि अनादि काल से मानस की यह कथा अनवरत चलती आ रही है, शंकर जी पार्वती जी को सुनाते हैं कागभुसुंडि जी गरूड़ जी को सुनाते हैं ,याज्ञवल्क्य मुनि भारद्वाज जी को सुनाते हैं और तुलसीदास जी वर्तमान में सुनाते हैं । कथा वही है कहने का ढंग चिंतन अलग अलग हो सकता है लेकिन भगवान की कथा निरंतर चलती आ रही है । जीवन मे मर्यादा ,आचरण समर्पण ,धैर्य ,और संतुलन होना चाहिए ,यह मानस में हम सबको देखने को मिलता है । यह परमात्मा के चार भाई के रूप में हम सबके समक्ष आते हैं । जिस व्यक्ति के अंदर परिवार के मुखिया के अंदर मर्यादा हो,उत्तम आचरण और समर्पण हो ,धैर्य हो , उसका किसी कारण से उजड़ा हुआ घर वनवास हुआ घर भी फिर से हरा -भरा हो जाता है , अगर जीवन में मर्यादा विहीन ना हो तब । मर्यादा जीवन में प्रत्येक जगह आवश्यक है । नर लीला करके भगवान राम हर जगह मर्यादा का पालन किए ,इसलिए राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है।
रेल की पटरी से गाड़ी थोड़े समय के लिए हट सकती है किंतु फिर से उसी पटरी पर आती है….
यह हम सब के जीवन में भी होता है , कुछ समय के लिए जीवन में परिवर्तन आते हैं, उतार-चढ़ाव आते हैं लेकिन उस समय हम को विचलित नहीं होना चाहिए ,विवेक से कम लेना चाहिए, उस परिस्थिति में हमें अपना संतुलन नहीं खोना चाहिए ,धैर्य के साथ काम लेना चाहिए । भगवान को सब कुछ प्राप्त होता है राज्याभिषेक के पूर्व ही वनवास हो जाता है,जंगल का राज्य मिल जाता है, भगवान स्वीकार करते हैं और वनवास पूरा करने के बाद फिर से भगवान का राजतिलक होता है । रामचरितमानस में भगवान अनेक लीला करके हम सबके जीवन में होने वाली घटनाओं को बताते हैं , यह सब हम के अंदर भी होता है, और इसका सामना किस तरह से करनी चाहिए?यह भगवान राम ने लीला के रूप में दिखाएं कब किसके साथ किस तरह व्यवहार करना, कैसे आचरण करना, किस तरह मर्यादा का पालन करना, भगवान राम की लीलाओं से सीखने को मिलती है ।
रामायण कथा ही नहीं अपितु मानव जीवन जीने की संपूर्ण व्यवस्था है भगवान ने हम सब के जीवन में घटने वाली घटनाओं को ही लीला के रूप में दिखाएं, मानस हमें जीवन जीने की कला सिखाती है भगवान के प्रत्येक लीला हम सबको कुछ न कुछ सिखा रही है ।