गुरु वाणी,
पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी) ने कथा में यह बताएं कि सभी विकारों की जड़ मोह ही होता है।
एक रावण सब के जीवन को बर्बाद करने के लिए ,तहस-नहस करने के लिए पर्याप्त था: हमारी एक ही बुराई हमें बर्बाद करने के लिए पर्याप्त होती है , हम सबके अंदर भी रावण विद्यमान होते हैं अहंकार के दस सिर विद्यमान होते हैं जो हमेशा स्वयं की तारीफ ही सुनना चाहते हैं किसी की बात समझ में नहीं आती और हम जो कह दिए वही सही है, आज इसी कारण सबका जीवन कष्ट में होता है रामायण का यह पात्र हमें बहुत कुछ सिखा देती है जब दुर्गुण हावी हो जाता है अपने लोग भी विरोध करने लगते हैं हनुमान जी, अंगद जी , विभीषण सबके समझाने पर जब रावण समझने तैयार नहीं होते उसकी पत्नी मंदोदरी भी समझाती है , जिसके भाई स्वयं रेखा खींच दिए उसको पार नहीं कर सके शूर्पणखा की नाक कट गई, खर और दूषण भी मारे गए, तुम्हारे पुत्र भी मारे गए उसके बाद तुम बल और पुरुषार्थ की बात करते हो, इतना ही पुरुषार्थी हो राजा जनक की सभा में जीतकर क्यों नहीं ले आए माता जानकी को । रावण अंदर से क्रोधित होते हैं लेकिन जब दूसरे दिन सिहांसन में बैठते हैं।
सिहासन में बैठते ही अभिमान जागृत हो जाता है: जब रावणी बुद्धि के लोगो को पद और प्रतिष्ठा मिलती है अहंकारी हो जाते हैं सब कुछ भूल जाते हैं , रावण फिर सब कुछ भूल जाता है और फिर से अपनी मनमानी करने लग जाता है, किसी से कुछ नहीं पूछता है, सिहासन मनुष्य को अभिमानी बना देता है। अकेले रावण का कर्म पूरे लंका को तहस-नहस करने के लिए पर्याप्त था। अकेले धृतराष्ट्र और दुर्योधन हस्तिनापुर को बर्बाद करने के लिए पर्याप्त थे, लेकिन अंत में सत्य की ही विजय होती है । जब दुर्गुण और सद्गुण की लड़ाई होती है।
मनुष्य जब होश पूर्वक जीता है तो दुर्गुण चाहकर भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता: जब रावण कि सेना लोग, सिपाही लोग पत्थर फेंकते थे वानर ऊपर से ही उठाकर वापस फेंक देते थे। हमें यह शिक्षा देती है कि हम चैतन्य होते हैं तो दुर्गुण हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता होश पूर्वक जीने की आवश्यकता होती है। स्वयं की मूल्यांकन करने की आवश्यकता होती है ।
रावण के चार मुकुट जिसको अंगद जी ने साम ,दाम, दंड और भेद बताएं । रावण जब धर्म के, विमुख हो गया है तो यह मुकुट स्वयं से भगवान के पास आ गए क्योंकि भगवान ही धर्म का पालन करते हैं तो रावण के पास यह मुकुट भी नहीं रहना चाहता। है । यह अंगद जी बताएं अच्छाई और बुराई दोनों अपने अंदर ही होते हैं हमेशा युद्ध चलते रहता है जब हम होश पूर्वक जीते हैं तो दुर्गुण हार जाता है सद्गुण जीत जाती और जब होश पूर्वक नहीं जीते तब मनुष्य दुखी हो जाते हैं।अंगद जी और हनुमान जी कभी स्वयं का श्रेय नही लेते है, सब कुछ भगवान के ऊपर छोड़ देते हैं यह संदेश देते हैं कि सद्गुण लोग संत कभी अपने मुख से स्वयं की तारीफ नहीं करते नहीं स्वयं के ऊपर श्रेय लेते सिर्फ माध्यम समझते है और यही सत्य है , परमात्मा कभी भी किसी से कोई भी कार्य करवा लेते हैं और हमे माध्यम बना देते हैं कर्ता ,धर्ता , और नियंता स्वयं होते हैं ।जब हम पूरे समय भगवान का नाम लेते हैं उनकी आरती करते हैं उनकी कथा करते हैं मौन साधना करने से हमारी वाणी में शक्ति आ जाती है फिर हम किसी के लिए कुछ कहते हैं वह सिद्ध हो जाता है। गुरु की वाणी वरदान होती है हम सबके लिए । भगवान राम विभीषण जी को पहले ही लंकेश कह दिए थे ।
इस बार माता डोली में आ रही है और हां गज में विदाई हो रही है हम सभी की उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए सभी को नवरात्रि की शुभकामना दिए ।