शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते….

guru ji
परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी

अध्यात्म, कल्पना शुक्ला  |   इस संसार के सभी शब्द कोशो में सबसे अधिक पवित्र शब्द ढूंढा जाए तो वह है माँ…...

परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरु जी) ने माँ का वर्णन करते हुए यह बताएं कि मां बहुत ही पवित्र शब्द है उसका वर्णन हम शब्दों में नहीं कर सकते क्योंकि मां की महिमा ही अनंत है माँ सृष्टि की आधार होती है माँ हम सबके अंदर होती हैं,

गुरुजी ने माता सती की कथा में यह बताए कि माता सती भी श्रद्धा का ही रूप है वह लीला कर रही हैं, हम सबको सीधा चलाने के लिए माता सती विपरीत चल रही है, जब मां अपने बच्चे को चलना सिखाती है तो उसे कहती है खड़ा हो जाओ , अपने पैरों में चलना सीखो , खड़े हो जाओ बोलती है , हम सब भी यही कहते कि हम अपने पैर में खड़े हो जाए, अपने पैर में तो माँ ही खड़ा कर देती है, संकेत देती है कि आज से अपने पैर में हीं खड़ा होना किसी के लिए बोझ मत बनना , और जब खड़े हो जाते हैं तो कहती है आगे बढ़ो.. पीछे जाने नहीं बोलती , आगे बढ़ो….अपनी तरफ बुलाती है, आगे बढ़ो जब आगे बढ़ना चाहते हैं तो मां पीछे की तरफ भागती है, वह मां खुद उल्टा चलती है बच्चे को कहती सीधे चलो ।

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यह हमारी भारतीय संस्कृति है मां अपने बच्चे को सीधा चलाने के लिए अपने पैर में खड़ा करने के लिए उसे आगे बढ़ाने के लिए अपना विपरीत चलना पसंद करती है, लेकिन संतान को हमेशा आगे बढ़ाती है यह हमारी भारतीय संस्कृति है । सती माता भी विपरीत चल रही है हम विपरीत होंगे तो तुम सीधे रहोगे हम तो लीला कर रहे हैं सती माता के लीलाओं को भी हमेशा प्रणाम करते हैं । माता के इन लीलाओं में दस महा विद्याओं का अवतार होता है वह श्रद्धा का रूप है।
मां के लिए हम सभी ही नहीं अपितु स्वयं भगवान भी मां की ममता में बंध जाना चाहते है, भगवान कृष्ण माता यशोदा के प्रेम के बंधन में बंध जाते हैं ,भगवान राम माता कौशल्या के सामने छोटा शिशु बन जाते हैं, रोना प्रारंभ कर देते हैं, मां के प्रेम के लिए भगवान भी लालायित होते हैं मां के सामने सभी नतमस्तक होते हैं।

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जब-जब देवताओं के ऊपर कोई भी संकट आ जाता हैं तो मां की आराधना करते हैं जब हम माता की आरती गाते हैं उसमें भी यही कहते हैं तुमको निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी….. भगवान ब्रह्मा ,विष्णु और महेश भी जिनके आराधना करते हैं वह माँ ही है,और मां हर रूप में आकर के सहायता भी करती है कभी काली रूप में ,कभी कालरात्रि रूप में, गंगा के रूप में ,यमुना के रूप में, सभी रूप में माँ हम सब की रक्षा करती है गंगा कभी यह नहीं कहती कि तुम नहा कर आओ या कौन से समुदाय के हो, जो भी उसके पास जाता है पवित्र कर देती है। मां का प्रेम हमेशा निस्वार्थ होता है ,सृष्टि आदि शक्ति से ही चल रही है शक्ति के बिना हम सब अधूरे होते हैं हम सब को उस शक्ति की आवश्यकता होती है। संसार में हम सब आकर जहां अपना शीश झुकाते हैं वह मां ही होती है ।

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