नर तन सम दुर्लभ कोउ नाहीं – गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी

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परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी

अध्यात्म, कल्पना शुक्ला |  परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरु जी) प्रयागराज ने भगवान की कथा में उत्तरकांड का वर्णन करते हुए यह बताएं कि मनुष्य का शरीर ही सबसे दुर्लभ होता है जो स्वर्ग ,नर्क और मोक्ष सब कुछ प्राप्त कर सकता है।

जब भगवान राम नाग फास में बंधे होते हैं , लंका में राम और रावण का युद्ध चल रहा था उसी समय नारद जी गरूड़ को भेजें ,गरुड़ ने नाग तो काट दिए लेकिन उसको भृम हो गया कि क्या जो संसार को बंधन मुक्त करते वह कैसे बंध सकते है ? क्या यह भगवान है ? गरुड़ जी को अभिमान हो गया और अभिमान के कारण नारद जी के पास गए , नारद जी शंकर भगवान के पास भेज देते है, भगवान शंकर ने कहा कि मैं अभी बीच में हूं रास्ते में हूं तो आप या वही होते या आप कैलाश ही आ जाते, संकेत दिए या तो मूर्ख बने रहो या ज्ञानी बने रहो बीच वाले को कोई नहीं समझा सकता । गरुड़ जी को और अभिमान हुआ कि मेरा प्रश्न इतना बड़ा है कि भगवान शिव उत्तर नहीं दे सके, खग जाने खगहि की भाषा…

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भगवान शिव गरुड़ जी को काग भूसुंडी के पास भेज दिए।
गरुड़ जी ने काग भूषण जी से प्रश्न किए…
सबसे बड़ा सुख क्या है? सबसे बड़ा दुख क्या है ? सबसे बड़ा दुर्लभ क्या है ?
भुसुंडि जी ने गरुड़ जी के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि–

दरिद्रता सबसे बड़ा दुख है, संत मिलन सबसे बड़ा सुख है क्योंकि जब संत मिलन हो जाए तो हमें वास्तविकता का ज्ञान हो जाता है, भगवान राम जब रावण से युद्ध कर रहे थे अगस्त्य मुनि तुरंत उसे आदित्य हृदय स्त्रोत दे देते है,इस तरह जब हम गुरु चरणों में रहते हैं तो सही गलत का ज्ञान होता है और हम सुरक्षित होते हैं और संत मिलन परम सौभाग्य से प्राप्त होती है।

मानव शरीर सबसे दुर्लभ होता है और मनुष्य का शरीर ही नर्क ,स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। नर्क का मतलब दुख ,स्वर्ग का मतलब सुख, और मोक्ष का मतलब परमआनंद और यह सब कुछ मनुष्य ही प्राप्त कर सकता है जानवर नहीं । दरिद्रता का मतलब गरीबी से नहीं अपितु जो संस्कार विहीन हो जो भगवान की भक्ति ना करता हो वह दरिद्र होता है। अपने गुरु के आदेश का पालन करना ही सबसे बड़ा धर्म है।

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