रायपुर, कल्पना शुक्ला | आनंद नगर के दुर्गा मंदिर में में चल रही श्री राम कथा के छठवें दिन रविवार को कथा व्यास प्रयागराज वाले युग प्रवर्तक सद्गृहस्थ संत श्री संकर्षण शरण जी (गुरु जी) (Sankarshanji)(Guruji) @SANKARSHANSHARAN ने श्रोताओं को कथा का सार बताने के साथ ही प्रयागराज की महिमा उसके बाद भरत मिलन की कथा, सूर्पनखा की कथा, सीता हरण, जटायु की कथा, का वर्णन किए | कल माता शबरी और किष्किंधा कांड, सुन्दर कांड की कथा बताई जाएगी।
भरत मिलन की कथा का वर्णन
भरत अर्थात जो संसार का भरण पोषण करता हो और जिसका मन भगवान की भक्ति में ही रत हो वह भरत है ,भगवान वन में ऋषि -मुनियों से मिलते है, और यह कहते है कि कई जन्मों का पुण्य उदय होने पर संत चरण और दर्शन मिलती है,महाराष्ट्र के महामहिम राज्यपाल ने भी यह कहे कि छतीसगढ़ की धरा का परम सौभाग्य है जो ऐसे सन्त का आगमन इस धरती पर हुआ। हम सब छत्तीसगढ़ वासी धन्य हो गए।
सीता हरण की कथा – सूर्पनखा की कथा के माध्यम से अंदर से सुंदर होने की बात कही, बाहर से सुंदर नही अंदर से सुंदर रहने की आवश्यकता है., सूर्पनखा माया से सुंदर कन्या बन जाती है लेकिन अंदर से राक्षसी है , हम सब बाहर से भले ही सुंदर ना हो लेकिन अंदर हमारी राक्षसी प्रवृत्ति समाप्त हो जाना चाहिए, यदि अंदर राक्षसी प्रवृत्ति है तो उस सुंदरता का कोई महत्व नहीं रह जाता ।
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भगवान को पता चल जाता है की वह राक्षसी हैं, क्योंकि संत और गुरु की दृष्टि हमेशा अंदर की कुप्रवृत्ति में पड़ ही जाती है और लक्ष्मण जी सूर्पनखा की नाक और कान काट देते हैं , कान काटने का मतलब जो कान भगवान की कथा ना सुन सके अच्छी बातें ना सुन सके उसको समाप्त कर देना चाहिए ,नाक काट देते हैं जो समाज के, देश के ,धर्म के ,प्रतिष्ठा में बाधक हो, उसे समाप्त करना चाहिए, उसका नाक कट ही जाता है और उधर लंका में भी नाक कट जाती है कथा यह संकेत देती है कि हमें अपने समाज की, देश की कुल की मर्यादा को बनाए रखना चाहिए ,हमेशा मर्यादा में रहना चाहिए ।
मृग मतलब मन , जिस समय हमारा मन में लोभ अधिक होता है तब हम कुछ नहीं देख पाते उस समय कुछ दिखाई नहीं देता और ना हीं सुनाई देता है. सीता जी कथा में यह संकेत देती है कि जिस समय संसार में लोभ बढ़ जाता है तब विवेक काम नहीं करता सब कुछ खो बैठता है मन लोभ में ही उलझा रहता है, शांति धीरे-धीरे चली जाती है, भक्ति चली जाती है, और जीवन तो दुखदाई हो जाता है, माता सीता भी मृग की मांग भगवान राम से करती है, सामने नारायण खड़े हैं मना भी कर रहे हैं, लेकिन माता कहती है कि मुझे वह मृग चाहिए,सीता जी की बार-बार कहने पर भगवान मृग का पीछा करते है, भगवान माया के पीछे दौड़ रहे हैं , जब बुद्धि भटक जाती है तब इंसान कुछ भी बोल देता है माता सीता भी लक्ष्मण को कठोर वचन बोल देती है ।
हमेशा चैतन्य होकर रहने की बात बताई गई, आगे कथा में यह बताया गया कि दुर्जन भी संत का चोला पहनकर छल करते हैं दुर्जन भी अच्छी-अच्छी बातें कर लेते हैं लेकिन हमेशा सावधान रहने की बात कही गई, रावण भी साधु का रूप लेकर माता सीता की कुटिया में आ जाते हैं और माता सीता समाज को बताने के लिए सब की रक्षा करने के लिए लक्ष्मण रेखा पार करके फल देने आती है, जब हम मर्यादा रूपी लक्ष्मण रेखा पार करते हैं तो बुराई रूपी रावण की चपेट में आ जाते है, समझता नारियों को इस रावण से सावधान होने की बात कही गई, माता सीता एक तिनका का सहारा लेती है अर्थात तुम्हारा सब कुछ मेरे लिए तिनके के बराबर है और रावण की तरफ देखती भी नहीं है, हम अपनी रक्षा स्वयं करते हैं और जब वह स्वयं में मजबूत होते है बुराई चाह कर भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।
भारत वर्ष का पक्षी भी धर्म और मर्यादा का पालन करते हैं.
जब जटायु माता सीता को ले जाते देखे तब तुरन्त रावण के ऊपर वार कर देते है और रावण मूर्छित हो जाते हैं लेकिन रावण के मूर्छित होने पर जटायु रावण के ऊपर वार नहीं करते है और रावण मूर्छा से जागने के बाद जटायु के पंख काट देते है , संकेत देते हैं कि आरंभिक काल से ही भारतवर्ष की पक्षी भी उस समय धर्म का पालन किया करता था, जटायु राम-राम कहते राम की प्रतीक्षा करते घायल अवस्था में बैठे है और भगवान राम पहुँच जाते हैं हम सब अंतिम समय में ही राम को याद नहीं कर पाते, नारायण हमारी पुकार में जरूर आते हैं , जटायु एक नारी के सम्मान की रक्षा करते हुए धर्म की रक्षा करते हुए गिरते हैं भगवान उसको गोद में उठाते हैं और मुक्त करते हैं मोक्ष प्रदान करते हैं बैकुंठ धाम देते हैं,
कल की कथा में राम सुग्रीव की मित्रता ,शबरी की नवधा भक्ति बताई जाएगी।