साहित्य
धेनु सदा पार्श्व में, श्रीकृष्ण की रही पहचान
तभी दूध की नदियाँ, बहती थीं हिन्दुस्तान
नाश मनुज पर छाया है, विवेक हुआ प्रस्थान
पूज रहे श्रीकृष्ण को, ले रहे गाय के प्राण
कैसा जमाना आया, बाहर का कुत्ता घर में
घर की गाय घूम रही है, गाँव गली शहर में
गली का कुत्ता ठाठ में, घर में उसकी साज
गाय घूमती भिखारन-सी, नाशे गोकुल राज
सड़क की बलि चढ़ रहीं, वाहन काल समान
कुत्ते भी छीन लेते कभी, शिशु बछडे़ की जान
फैशन में कुत्ते पाल रहे, दंश फितरती अरमान
विमर्श पर उत्तर मिलता, ऐसा नहीं है मेरा श्वान
कुत्ते की अपनी फितरत, जतलाता पहचान
फिर रोने से लाभ क्या, चिडिया चुगी खलिहान
खेत-नांगर-बैल संबंध, विच्छेद किया विज्ञान
अखबारों में सज रहा, राजा का गोठान
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– लोकनाथ साहू ‘ललकार’