मधुमास सखी : जब मन के तारों को छूकर,  कोई प्रीति सुनाता

मधुमास सखी
मधुमास सखी
नवगीत
मधुमास सखी
जब मन के तारों को छूकर,
 कोई प्रीति सुनाता है।
जब उर की कोमल डाली पर,
पात नवल लहराता है।
होने लगता है मन को इक
अनबोला अहसास सखी।
हाँ चुपके से हौले से तब,
आ जाता मधुमास सखी।
जब साँसों में इत्र सरीखी,
महक बिखर कर रह जाये।
जब पाती प्रेमिल सी कोई,
बस नयनों से कह जाए।
जब दूरी में भी सहचर बन,
रहते हों वो पास सखी।
हाँ चुपके से हौले से तब,
आ जाता मधुमास सखी।
जब लज्जा के पट को खोले,
नर्तन करते हैं सपने।
पूर्ण अपरिचित होकर के भी
 लगने लगते वो अपने।
नैसर्गिक सुख का होता है,
हर क्षण ही आभास सखी।
हाँ  चुपके से हौले से तब,
आ जाता मधुमास सखी।
कोमल मन के आवेग सभी,
सीमाएँ हों तोड़ रहे।
जब पदचिह्न मिलन ऋतु के ही,
दृश्य धरा पर छोड़ रहे।
जब मधुरिम सी दर्द लहर इक,
उठती मन में खास सखी।
हाँ चुपके से हौले से तब,
आ जाता मधुमास सखी।
प्रीति चौधरी”मनोरमा”
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश

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