हनुमान जी की तरह ह्रदय में राम को धारण करें , जीवन में ऊंचाई मिलेगी – सद्गृहस्थ संत श्री संकर्षण शरण जी

आज  पूरे प्रदेशवासियों को, राष्ट्र को,समस्त शिष्य , शिष्याओं को हनुमान जयंती के अवसर पर शुभकामना देते हुए पूज्य गुरुदेव सद्गृहस्थ संत श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी ) ने हनुमान जी की कथा बताएं किस तरह हनुमान जी के व्यक्तित्व से हमें प्रेरणा देती है।
 हनुमान जी का पूरा जीवन बाल्यकाल से लेकर के अवतार काल से लेकर आज तक का जो भी हम सब जानते हैं कि हनुमान जी आज भी हम लोग के बीच में मौजूद है | हनुमान जी को आदिशक्ति सीता जी ने आशीर्वाद दिया था, अजर का अर्थ होता है कि आप कभी भी जर्जर न हो,  कभी रोगी ना हो, हमेशा चैतन्य और जवान बने रहे । यश प्रतिष्ठा बनी रहे,  ऊर्जावान बने रहें, और अमर भी रहे । अर्थात  आप के अंदर में समस्त गुणों की निधियां व्याप्त रहे ,अष्ट सिद्धि, नौ निधि हमेशा रहे ,आप भगवान का स्मरण करो या ना करो ,चिंतन करो या ना करो भगवान को याद करो या ना करो, भगवान आपका स्मरण करें, आपका चिंतन  करें ,आपको हमेशा याद रखें । आपकी चिंता करें भगवान ही आपसे अत्यधिक प्रेम करें । इस तरह की कृपा भगवान  की आपके ऊपर बनी रहे ।
हनुमान जी जब लंका की यात्रा करते हैं  इन सबसे  जिस प्रकार से आचरण जिस प्रकार से व्यवहार हनुमान जी ने किया, वह शिक्षाप्रद है , हम सभी लोगों को  लोभ को दूर से प्रणाम करना है भटकना नहीं है  हमेशा छोटा बन के कार्य करो अभिमान करके नहीं , हनुमान जी ने बताए,  ईर्ष्या जीवन में नहीं रहनी चाहिए जब आप अपनी ईर्ष्या को मार देते है तो आपसे भी कोई ईर्ष्या करने वाला नहीं रहेगा कहा जाता है कि हमारे ऊंचाई से हमारी तरक्की  से लोग जलते हैं लेकिन जब हम खुद ऐसा नहीं करेंगे तो हम पर  कौन करेगा ? पहले स्वयं को देखने की आवश्यकता होती है , यह  हनुमान जी बताएं।  सिंघीका को मार देते हैं । लोभ हमारे अंदर ही बैठी होती है हम दूसरे को बोलते हैं अपने अंदर की ईर्ष्या  कभी महसूस नहीं करते हैं सब प्रकार के कुप्रवृत्ति हमारे अंदर बैठे हुए हैं व्यक्ति अपना मूल्यांकन नहीं कर पाता , अपने अंदर भी दुर्गुण होती है अपने अंदर अभिमान  होती है ,  हनुमान जी कहते हैं अपने अंदर के ईर्ष्या को मार डालो , छोड़ना मत । हनुमानजी  शिक्षा देते हैं अपने अंदर के कुप्रवृत्ति  को पहले मार डालो तुमको किसी की आह नहीं लगेगी ऊंचाई को पार कर लोगे ।

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