सुंदरकांड की कथा में हनुमान जी भगवान श्रीराम की चरणों को आधार मानकर यात्रा करते हैं.

कल्पना शुक्ला

सुंदरकांड की कथा बताते हुए पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी ने सर्वप्रथम, सुंदरकांड की कथा में प्रारंभ में भगवान के स्वरूप का वर्णन किया गया, शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं।
भगवान का स्वरूप शांत , शाश्वत,सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परमशान्ति देने वाले है। उंसके बाद हनुमान जी की महिमा का वर्णन किया, बाद में हनुमान जी के स्वरूप बताया गया,अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं…. हनुमान जी अतुलित बलसाली है, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले है। हनुमानजी अतुलित बलसाली है उनकी बल की कभी तुलना नहीं की जा सकती, फिर भी वह अहंकार रहित हैं, उनके पास अहंकार नहीं है और जब यात्रा करते हैं तो भगवान की चरणों को आधार मानकर यात्रा करते हैं जब हम गुरु चरणों को आधार बना लेते हैं तो पार हो जाते हैं, फिर काम, क्रोध, लोभ, मोह ,मद,आदि विकार नही आते है । मैनाक पर्वत को हनुमान जी दूर से ही प्रणाम कर लेते हैं।
पूरी यात्रा के दौरान हनुमान जी भगवान के अमोघ बाण की तरह जाते हैं , लक्ष्य प्राप्ति मुख्य उद्देश्य होता है, राम काज कीन्हे बिना मोहि कहां विश्राम

गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी           

हनुमान जी जब तक राम का काम नही कर लेते है, तब तक विश्राम नही करते है, अपने आराध्य की काम को पहले ध्यान में रखते हैं। सार-हनुमान जी के इस कार्य से शिक्षा मिलती है कि जब हम कोई कार्य करने का निर्णय लेते हैं तो जब तक उसे नहीं किए रहते तब तक हमें अन्य जगह ध्यान नहीं देना चाहिए। जब हम अपने आराध्य के लिए भक्ति और समर्पण का भाव रखते है, भगवान स्वयं मार्ग बना देते है।

हनुमान जी को उसकी शक्ति का स्मरण जामवन्त जी दिलाते हैं, जब हम अपने मार्ग से भटक जाते हैं तो गुरु हमें सही मार्ग दिखाते हैं हमें अपने कर्तव्यों का स्मरण दिलाते हैं ।

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