रचना कर्म
कर्म जिनके यहां सबसे कमज़ोर हैं..
सच है! बातों में उनकी बहुत ज़ोर है..!
मानवता अब मोती रही ही नहीं….
लूट और झूठ बस! अब चहुंओर है…!!
कविता उनकी यहां सबसे उत्कृष्ट है..
कृत्य जिसके जहां में सबसे निकृष्ट हैं…
काली रातों से काला है जिसका हृदय,
कह रहा है चिल्लाकर हुई भोर है…..!
कर्म जिनके यहां……………….!!
छल कपट और धोखे से जिसकी पहचान है…
घोषणा कर रहा वह! उसे सच्चा ज्ञान है…
आचरण जिसका है लघुता से लघु,
उसकी गुरूता का जग में बड़ा शोर है.!
कर्म जिनके यहां………………..!!
पद पर बैठा है जो! सबसे ऐंठा है वो…
कर कमल हो रहे! कींच में पैठा है वो…
जिसका ऊंचा सजा है सिंहासन यहां,
काम का वह नहीं; बस वो मुंहजोर है….!
कर्म जिनके यहां………………..!!
त्याज्य होना था जिसको यहां सबसे ज्यादा….!
ग्राह्य है! पूज्य है! है वही जग का राजा..!
सबसे ज्ञानी बड़ा उपदेशक है वह..
कृत्य जिसके कलुष से सराबोर हैं….!
कर्म जिनके यहां……………!!
शब्दों से बेहतर है प्यारे! कर्म से कविता लिखना…
चित्र बनाने से बेहतर है अपने चरित्र को गढ़ना..
मन के हैं गोरे हम और चरित्र के सांवले….
इसलिए अपनी रचना भी कमज़ोर है…!
कर्म जिनके यहां……………………..!!
-:आशुतोष त्रिपाठी