लघु कथा : मक्खी धर्म

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विजय मिश्रा 'अमित ' पूर्व अति महाप्रबंधक

विजय मिश्रा ‘अमित ‘

प्रदीप भोले के पैर में कीड़े के काटने से एक छोटा सा घाव हो गया था। जिसकी वजह से उन्हें चलने फिरने में तकलीफ़ होती थी।ऐसी स्थिति में वे कुर्सी पर बैठ स्टूल पर पांव रखकर अखबार पढ़ रहे थे। तभी एक मक्खी उनके घाव पर आ बैठी। भोले जी ने उसे कई बार भगाया पर वो ढीठ मक्खी घुम फिर कर घाव पर ही आ बैठती थी।

इससे हैरान परेशान भोले जी मक्खी से पूछ पड़े – तुम लोग हमेशा घाव पर ही क्यों बैठती हो?किसी का शरीर सुंदर-गठीला हो और उसके शरीर में कहीं छोटा-मोटा घाव हो जावे तो बाकी सुंदर जगह को छोड़कर तुम लोग वहीं जा बैठती हो ।
भोले के सवाल पर मक्खी हंसकर बोली- हम तुम्हारे घाव पर बैठते हैं यह तो हमारा प्राकृतिक गुण है।यही मक्खी धर्म-और मक्खी कर्म है।इसे तुम बुरा नहीं कह सकते,पर ईश्वर प्रदत्त सुंदर मानव शरीर को तुम लोगों ने गंदे आचार विचारों का घर क्यों बना डाला है?

मक्खी के इस सवाल से भोले जी हतप्रभ रह गए। उनके मस्तिष्क पर तत्काल यह विचार कौंध गया कि मक्खी से कहीं ज्यादा गंदगी पंसद तो अब इंसान बन गया है।वे बुदबुदाए- छी छी छी छी। फिर मक्खी से नजरें चुराते घाव पर मरहम मलने लगे।

पूर्व अति महाप्रबंधक (जन) एम 8 सेक्टर 2 अग्रोहा सोसाइटी, पोआ- सुंदर नगर रायपुर (छग)492013

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