यूपी: नगर निकाय चुनाव तय करेंगे 2024 के आम चुनाव की दिशा

असद रिज़वी  |  उत्तर प्रदेश में हो रहे निकाय चुनावों को आगामी 2024 आम चुनावों के सेमीफाइनल की तरह से देखा जा रहा है। शायद यही कारण है कि राजनीतिक पार्टियाँ इन चुनावों में कई तरह के प्रयोग कर रही है।

माना जा रहा है कि निकाय चुनावों के बहाने सभी पार्टियाँ ज़मीन पर अपनी ताकत का अंदाज़ लगाना चाहती हैं।हालाँकि कहा जा रहा है कि है कि अपराध की दुनिया से राजनीति में आये अतीक अहमद हत्याकांड का असर भी चुनावी माहौल पर दिखाई देगा।

प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) स्थानीय मुद्दो को छोडकर बुलडोज़र और एनकाउंटर जैसी क़ानून व्यवस्था को राजनीति के केंद्र में लाने का प्रयास कर रही है। दक्षिणपंथी बीजेपी ने क़रीब 350 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतार कर भी नया पर प्रयोग किया है। इसी के साथ केंद्र और राज्य में सत्तारुढ़ बीजेपी स्थानीय निकायों में मज़बूत होकर “ट्रिपल इंजन” सरकार बनाने का नारा भी दे रही है।

उधर बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने भी अपनी रणनीति में बदलाव किया है। मायावती ने दलित-मुस्लिम समीकरण को मज़बूत करने के लिए 17 नगर निगम में से 11 पर मुस्लिम मेयर उम्मीदवार उतारे हैं।

इसके अलावा कहा जा रहा है कि प्रदेश के यह निकाय चुनाव को प्रमुख विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी (सपा) के “सामाजिक न्याय” के मुद्दे की परीक्षा भी है। क्यूँकि सपा प्रमुख अखिलेश यादव बीजेपी की साम्प्रदायिक राजनीति को “सामाजिक न्याय” के मुद्दे से टक्कर देने की तैयारी कर रहे हैं।

बीजेपी का मुद्दा

बीजेपी निकाय चुनाव में एक बार फिर उस क़ानून और व्यवस्था को मुद्दा बना रही है, जिसपर ढेरों सवाल हैं। उमेश पाल (राजू पाल हत्याकांड 2005 के मुख्य गवाह) की प्रयागराज में 24 फरवरी 2023 को पुलिस सुरक्षा में हुई हत्या के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार की कार्रवाई (अभियुक्तों के एनकाउंटर) से बीजेपी अपने पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास कर रही है।

बता दें कि इन एनकाउंटर में सांसद और विधायक रहे माफ़िया अतीक अहमद के बेटे असद अहमद समेत उसके गैंग के कई सदस्य मारे गये हैं। हालाँकि उमेश हत्याकांड का मुख्य अभुक्त गुड्डू मुस्लिम और अतीक की पत्नी शाइस्ता अभी भी पुलिस की पहुँच से बाहर फरार हैं।

प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव के लिए संबोधित कर रहे हैं। अपनी लगभग हर सभा में मुख्यमंत्री माफियाओं के ख़िलाफ अपनी सरकार की कार्रवाईयों को मुद्दा बना रहे हैं।

ज़ाहिर बात है अतीक गैंग पर हुई कार्रवाईयों को अपनी सफलता बता कर, बीजेपी चुनावी माहौल को अपने पक्ष में करना चाहती है।

हालाँकि अतीक और उसके भाई अशरफ की हत्या पुलिस हिरासत में 15 अप्रैल की रात हुई थी। जिस के लिए विपक्ष इसको योगी आदित्यनाथ सरकार की विफलता मानता है और क़ानून और व्यवस्था के सवाल पर सरकार को घेर रहा है।

पसमांदा मुस्लिमों पर दांव

इसके अलावा इस निकाय चुनाव में मुस्लिम समाज से दूरी बनाकर चलने वाली बीजेपी ने क़रीब 350 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी पसमांदा (पिछड़े) मुसलमानों से जुड़ने और उनके बीच अपनी लोकप्रियता का अंदाज़ लगाने के लिए यह प्रयोग कर रही है। हालाँकि मेयर पद के लिए बीजेपी ने किसी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया है।

दलित-मुस्लिम समीकरण

बीएसपी ने भी निकाय चुनाव जीतने के लिए अपनी रणनीति को बदला है। इस बार पार्टी ने अपने कुल 17 मेयर उम्मीदवारों में से 11 मुस्लिम चेहरों को उम्मीदवार घोषित किया है। इस से पहले विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने “ब्राह्मण” समाज पर दांव लगाया था, जो बुरी तरह विफल हो गया था।

बीएसपी प्रमुख मायावती का ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिए आरक्षित सीटों पर भी मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। कहा जा रहा है कि अस्तित्व के संकट का सामना कर रही बीएसपी अपने नए सामाजिक अंकगणित में ब्राह्मणों के स्थान पर मुसलमानों के साथ एक नई सोशल इंजीनियरिंग शुरू कर रही है।

जबकि कहा यह भी जा रहा है कि बीएसपी की मुस्लिम समाज के प्रीति स्नेह का कारण मुस्लिम समाज के वोटों में बिखराव कराना है ताकि सपा को नुक़सान पहुँचाया जा सके।

सामाजिक न्याय का मुद्दा

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बीजेपी पर संविधान और लोकतंत्र को खत्म करने की कोशिश का आरोप लगाते हुए कहा कि इसलिए प्रदेश का नगरीय निकाय चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है। अखिलेश यादव मानते हैं कि इस निकाय चुनाव से आगामी लोकसभा चुनाव 2024 के लिए संदेश भी जाएगा।

मुख्यमंत्री योगी के गढ़ गोरखपुर से सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि सत्तारूढ़ बीजेपी दलितों, सवर्णों, अल्पसंख्यकों सभी का अपमान कर रही है। अपनी नई रणनीति पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि “समाजवादी विचारधारा” की लोग चाहते हैं कि “जातिगत” जनगणना करायी जाए ताकि सभी को उनकी आबादी के अनुपात में उनका अधिकार और सम्मान मिले, मगर जातिवार जनगणना के नाम पर बीजेपी घबरा जाती है।

बता दें कि समाजवादी पार्टी काफ़ी समय से साम्प्रदायिक राजनीति के मुकाबले सामाजिक न्याय का मुद्दा राजनीति के केंद्र में लाने का प्रयास कर रही है।

योगी पर आरोप

पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी के ख़िलाफ मामलों की सूची बहुत लंबी है। अखिलेश ने सवाल किया कि क्या उन्होंने अपने ख़िलाफ दर्ज मामलों को वापस नहीं लिया था ? सपा प्रमुख ने कहा, ‘बीजेपी सरकार मामलों की लंबी चार्जशीट दिखा रही है। अगर मुख्यमंत्री (योगी आदित्यनाथ) ने ख़ुद पर से मुकदमे वापस नहीं लिए होते तो वह सूची कितनी लंबी होती?

कांग्रेस का प्रयोग

इसके अलावा उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों में प्रत्याशियों के साथ-साथ कांग्रेस के एक नए प्रयोग की भी परीक्षा हो रही है। नगर निगमों के मेयर पद के चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन उसके “प्रांतीय अध्यक्षों” का भी कद और भविष्य तय करेगा। एक शताब्दी से अधिक पुरानी पार्टी ने प्रत्याशियों के चयन में अपने प्रांतीय अध्यक्षों की पसंद का ख्याल रखते हुए उन पर पूरा भरोसा जताया है।

बृजलाल खाबरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के साथ ही कांग्रेस ने संगठनात्मक दृष्टि से प्रदेश को छह प्रांतों में बांटते हुए छह प्रांतीय अध्यक्ष भी बनाए है। इनमें दो प्रांतीय अध्यक्ष नसीमुद्दीन सिद्दीकी व नकुल दुबे, मायावती सरकार (2002-12) सरकार के कैबिनेट मंत्री रहे हैं। एक प्रांतीय अध्यक्ष वीरेन्द्र चौधरी विधायक हैं और अन्य प्रांतीय अध्यक्ष अजय राय पूर्व विधायक हैं। इस बार नगर निकाय चुनाव में पार्टी बिना प्रदेश कमेटी के ही उतरी है।

राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में, 760 लोकल बॉडी में 14,684 पदों के लिए चुनाव होंगे, जिनमें 17 निगम मेयर पद, 199 नगर पालिका चेयरमैन पद, 544 नगर पंचायत अध्यक्ष के अलावा क़रीब 14 हज़ार सदस्य पद शामिल हैं। इन चुनावों में कुल 4.32 करोड़ मतदाता मतदान करेंगे। चुनाव दो चरणों में 4 मई और 11 मई को होंगे। परिणाम 13 मई को घोषित किए जाएंगे।

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