Mount Kailash: शिव-उमा निवास कैलाश पर्वत

महाशिवरात्रि 8 मार्च यात्रा कथा

Mount Kailash : शिव-उमा निवास कैलाश पर्वत
Mount Kailash

संपादकीय | Mount Kailash: महाशिवरात्रि के महापर्व में दुनिया के सबसे बड़े शिवधाम” कैलाश पर्वत- कैलाश मानसरोवर” की यात्रा का स्मरण रोमांचित करता है। हिमालय के उत्तर दिशा में तिब्बत चीन देश के अधीन यह स्थित है। विदेश मंत्रालय से अनुमति उपरांत ही यात्रा की जाती है।

कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22028 फीट ऊॅचा है, जिसके शीर्षचोटी की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है। इसके चारों दिशाओं से एशिया की चार बड़ी नदियाॅ ब्रम्हपुत्र, सिन्धु, सतलज और करनाली का उद्गम हुआ है।

Mount Kailash : शिव-उमा निवास कैलाश पर्वत

ऐसे धार्मिक स्थल को देखने हेतु हमारी यात्रा दुर्ग-नवतनवा एक्सप्रेस से शुरू हुई। नवतनवा (यूपी-नेपाल बार्डर) तक ट्रेन से एवं वहाॅ से काठमांडू (नेपाल) तक की यात्रा हमने बस में पूरी की। काठमांडू (धूलिखेल) में भगवान पशुपतिनाथ, मनोकामना देवी, बूढ़ा नीलकंठ दर्शन का लाभ मिला। रात्रि विश्राम कर काठमांडू से चीन सीमा यात्रा बस से हमने पूरी की। रास्ते भर नदियां, पहाड़,खाई,जंगल के जोखिम को पार करके नेपाल से चीन की धरा में जा पहुंचे। चीन बार्डर पर हमारे सामान,पासपोर्ट की जाॅच की गई। आगे की यात्रा ‘‘लेण्डक्रुर्जर‘‘ से आरंभ हुई।

Mount Kailash: खाना कम पानी अधिक

हमारा पहला पड़ाव ‘नायलम‘‘ (12792 फीट ऊॅचाई) रहा। बर्फीली हवाओं से जूझते हमें वहां दो दिन रूकवाया गया, ताकि नये वातावरण के अनुकूल हम शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार हो सकें। साथ ही ऊॅचे पहाड़ पर चढ़ने (ट्रेकिंग) की ट्रेनिंग दी गई, जिससे श्वांस लेने एवं छोड़ने में हमें आ रही कठिनाईयों का ज्ञान हो सके।

अगली सुबह हम अपने दूसरे पड़ाव ‘‘न्यू डोंगबा‘‘ के लिये रवाना हुये, जो कि ‘‘नायलम’’ से 450 किलोमीटर दूर था। समुद्र तल से 14890 फीट ऊॅचाई पर स्थित ‘‘न्यू डोंगबा‘‘ का वातवरण सर्द हवाओं की मार और प्राणवायु आक्सीजन की हल्की कमी का एहसास कराने लगा था।रात्रि को खाने में खिचड़ी के साथ यह भी सलाह दी गई कि खाना कम और पानी का सेवन अधिक करें ताकि पानी में घुली आक्सीजन शरीर को प्राप्त हो सके।

Mount Kailash : शिव-उमा निवास कैलाश पर्वत
विजय मिश्रा‘अमित’

Mount Kailash:हड्डियां कंपाने वाली ठंड

तीसरे दिन अगले पड़ाव के रास्ते में ब्रम्हपुत्र नदी मिली। उस निर्जन मरूभूमि (हरियाली विहिन) की यात्रा को पूरी करके हम कैलाश मानसरोवर झील के करीब जा पहुंचे। यह झील समुद्र सतह से 17000 फीट ऊॅचाई पर स्थित है। ऐसी झील दुनिया में और कहीं नहीं है। हिन्दू वेदग्रन्थों के मुताबिक मानसरोवर झील की उत्पत्ति भगवान ब्रम्हा के मन से हुई।
मानसरोवर झील के तट से कैलाश पर्वत के भी दर्शन होने लगे।

यह सब देखकर मनमयूर नांच उठा। पूरी थकान और सिर का भारीपन कपूर की भाॅति हवा में विलीन हो गया। ठण्ड को भूलकर हम बम बम भोले कहते कैलाश मानसरोवर में डूबकी लगाने उतर गये। झील के बर्फीले पानी में ज्यादा देर तक रहना असहनीय था, अतः जल्दी से डुबकी लगाकर अपने मोटे गर्म कपड़ों को हमने शरीर पर लाद लिया।

Mount Kailash:राक्षस ताल चौंका गया

मानसरोवर से हमने आगे की यात्रा शुरू की। रास्ते मे हमें एक ताल ‘राक्षस ताल’मिला।ऐसी मान्यता है कि रावण यहाॅ पर शिव जी की तपस्या करता था। इस ताल का पानी खारा है और इसमें कोई स्नान नहीं करता। यहाॅ से आगे जाने के बाद हमें

Mount Kailash:‘च्यूगोम्पा’ नामक जगह में रात्रि रूकवाया गया

‘‘च्यूगोम्पा’’ की ठिठुरा देने वाली ठण्ड के माहौल में गर्म जल धारा का स़्त्रोत मिला।उसमें नहाने का आनंद मिला।यहां के बाद अगला पड़ाव ‘डारचेन’ पहुंचें। यहाॅ से कैलाश पर्वत के 42 किलोमीटर क्षेत्र की परिक्रमा तीन दिनों में पूरी करनी थी। हमारे अनेक बुजुर्ग और आंशिक बीमार साथी परिक्रमा करने में असमर्थ थे।वे डारचेन में ही कच्चे मकानों में ठहर गये।
मडहाउस में रात्रि विश्राम

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परिक्रमा का आरंभ ‘यम द्वार’ नामक स्थान से हुआ।यहां पर नये पुराने कपड़े छोड़ने का रिवाज का पालन कर हमने कुशलतापूर्वक कैलाश पर्वत की परिक्रमा पूरी करने की प्रार्थना की। इसके बाद उबड़ खाबड़ बियाबान पहाड़ों पर बनी पगडंडियों से हम आगे बढ़े। हाथ में छड़ी और छोटे से बैग में रखे पानी की बोतल,दवाई और कुछ ड्राई फु्रट्स ही हमारे पास थे जो हमारा हौसला बढ़ा रहे थे। यहाॅ पहाड़ों पर नाम मात्र को छोटे छोटे घास ही थे, दूर दूर तक पशु-पक्षी पेड़-पौधे ही यदा-कदा ही दिखथे।

स्थानीय जानवर ‘याक’ चरते दिखाई देते थे। याक के ही बूते ही सामानों की ढुलाई की जाती है। यह सब देखते-देखते परिक्रमा के पहिले दिन के दस किलोमीटर का सफर तय कर हम अपने पड़ाव ‘डेरा पुक’ नामक जगह में पहुंचे। यह स्थल कैलाश पर्वत के निकट था। वहाॅ पर कच्चे मकानों में हमें रात्रि में ठहराया गया। चांदनी रात थी। चंद्रमा के प्रकाश से कैलाशपति पर जमे श्वेत धवल बर्फ अलौकिक किरणे बिखेर रहे थे।

Mount Kailash:गौरी कुण्ड में जन्मे गणेश

हमारे खाने पीने की व्यवस्था टूर आपरेटर के कर्मचारी ‘सेरपा’(नेपाली युवा) कर रहे थे। अगले दिन सुबह पांच बजे हमारे परिक्रमा के दूसरे चरण की शुरूआत हुई।दिन भर 22 किलोमीटर के खतरनाक बर्फीले रास्ते ‘डोलमाला पास’ (परिक्रमा मार्ग की सबसे ऊंची चोटी )को पूरा करना था।इसी रास्ते में ‘गौरी कुंड’के भी दर्शन हुये। जहां कि भगवान शिव को प्राप्त करने के लिये माता पार्वती ने घोर तपस्या की थी।

इसी कुण्ड में स्नान करते-करते अपने शरीर के उबटन सेे गणपति की मूर्ति बनाई और यहीं पर गणपति जी का जन्म हुआ।इस स्थल को नमन करके हम लोग अपने पड़ाव ‘झुटुलपुक’ पहुंच गये। रास्ता दुर्गम था। हमारे हाथ पाॅव फूल रहे थे। सरसों तेल से मालिश कर स्वयं को हमने अगले दिन की परिक्रमा के लिये तैयार किया।

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दूसरे दिन हम लोग अल सुबह ही परिक्रमा के लिये रवाना हो गये। 10 किलोमीटर के आखिरी दिन की परिक्रमा को पूरा करके हम वापिस ‘‘डारचिन’’ पहुंच गये। जहाॅ हमारे साथ के ऐसे बुजुर्ग साथी जो लोग हमारे साथ परिक्रमा के लिये नहीं गये थे, उन्होंने जोश खरोश के साथ ओम नमः शिवाय का उद्घोष करके हमारा स्वागत किया।

परिक्रमा पूरी करने के उपरांत हमने फिर केैलाश मानसरोवर में स्नान किया, तथा तट पर हवन और भजन आरती करके भोलेनाथ से विदा ली। विदाई के बेला में हमारी आंखे नम थी। कैलाश पर्वत को निहारते-निहारते धीरे-धीरे वापिस अपने देश, अपने शहर अपने घर सुरक्षित पहुंच गये।

इस यात्रा को पूरी करने में हमें कुल 16 (18 जुलाई से 03 अगस्त) दिन लगे थे। कैलाश पर्वत-मानसरोवर की यात्रा कठिन जरूर है, पर असंभव नहीं। बम बम भोले।

Mount Kailash : शिव-उमा निवास कैलाश पर्वत
विजय मिश्रा ‘अमित’

 

 

 

पूर्वअति.महाप्रबंधक(जन)
एम-8 सेक्टर-2
अग्रसेन नगर, पोआ- सुंदर नगर, रायपुर (छग) 492013

 

 

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