आरी तुतारी | Ari Tutari : यूं तो राजनीति में छल, कपट और फरेब की सहज उपस्थिति सदा स्वीकार्य है, फिर भी पार्टियां एक दूसरे के आखेट में दोषारोपण करती हैं। पहली बार हिमाचल की परिस्थिति में ‘असली छलिया’ को लेकर बहस और विवाद है। यह भी अजूबा अंकगणित है क्योंकि कल के अपने, आज दूसरे के आगोश में हैं। बहुमत के बावजूद और कुल 43 विधायकों के आत्मबल के मैदान पर कांग्रेस से राज्यसभा सीट छीन कर भाजपा छलिया बनी या सत्ता का गुरूर छलनी हो गया।
Ari Tutari : यहां बहस के अनेक बिंदु हर्ष महाजन को छलिया मानते हैं, क्योंकि वह पाला बदलकर भाजपा के चाणक्य बन जाते हैं। छलिया घोषित होने में एक सहजता है, जबकि ‘सरगना’ साबित करके कांग्रेस अपने पूर्व विधायकों की खिचड़ी में फरेब के बाल चुन रही है। वर्तमान चुनाव की बैसाखियां ही छल से भरी हैं। गगरेट से चैतन्य अगर भाजपा के उम्मीदवार हो गए, तो राकेश कालिया कांग्रेस की नाव पर सवार हो गए।
सुजानपुर में भाजपा का छल या कांग्रेस में कैप्टन रणजीत सिंह का कल किस तरह अपनी व्याख्या कर रहा है, यह देखा जाएगा। इसमें दो राय नहीं कि छह उपचुनावों और तीन निर्दलीयों के इस्तीफों पर लोकतंत्र का शीर्षासन यह समझ ही नहीं पा रहा कि उसको छलने वाले हैं कौन। लाहुल-स्पीति में कांग्रेस से छिटक कर भाजपा के घोंसले में आए रवि ठाकुर के सामने भले ही अनुराधा राणा हैं, लेकिन डा. रामलाल मार्कंडेय इस चुनाव के वास्तविक छलिया बने हुए हैं।
Ari Tutari : धर्मशाला में भाजपा के सुधीर शर्मा के सामने मुख्यमंत्री के खास देवेंद्र जग्गी हैं, लेकिन पाला बदलते-बदलते निर्दलीय हो गए राकेश चौधरी चुनाव को छलने का माध्यम बने हुए हैं। इसीलिए दोनों ही प्रमुख पार्टियां अपने-अपने वजूद को बचाने के लिए निर्दलीयों को समझा रही हैं। रामलाल मार्कंडेय और राकेश चौधरी की हैसियत चुनावों ने छलिया बना दी है और ये दोनों किसी का भी आसन खिसका सकते हैं।
यह भी पढ़ें: आरी तुतारी : सत्ता के लिए…. कैसे तिल का ताड़ बनाया जा रहा है…..किसकी बजेगी डंका किसकी ढहेंगी लंका
Ari Tutari : वैसे तमाम लोकसभा उपचुनावों की सीटों पर सारे निर्दलीय उम्मीदवार छलिया बने हुए हैं। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि हिमाचल की राजनीति को अब विनेविलिटी के नाम पर चंद छलिया चाहिएं। ऐसे में कहीं कोई छलिया परिवारवाद से पैदा होगा और कहीं कोई सरकार से पैदा होगा। कोई जातीय आधार पर अपनी ही जाति को ढांपेगा, कोई वर्ग के आधार पर तो कोई आरक्षण के चमत्कार से योद्धा बन जाएगा। जिस प्रदेश में जनता विभ्रम में हो तथा सोशल मीडिया पर भविष्य की चौघराहट हो, वहां नागरिक भी छदम भूमिका में छल ही तो कर रहे हैं।
ताज्जुब नहीं कि आज का मतदाता भी छलिया है और प्रदेश का कर्मचारी वर्ग भी यही तो कर रहा है। ये एनपीएस और ओपीएस के बीच आर्थिक हकीकत का छल ही तो है जो सारे चुनाव के महासागर को जीत की गागर में भर लेता है। घाटे की बिजली व्यवस्था में डेढ़ सौ यूनिट मुफ्त की बिजली अगर छल नहीं, तो फिर ऐसी कसौटी पर हम आत्मनिर्भर होंगे कैसे।
Ari Tutari : हम बतौर नागरिक खुद को छल रहे हैं। वर्षों से यह उम्मीद कर रहे हैं कि सरकारी नौकरी से चूल्हा जलेगा, लेकिन रोजगार के चूल्हे से बाहरी प्रदेशों के लोग छल कर रहे या इस नीयती तक पहुंचाने के लिए हमारा राजनीतिक छल अब अविश्वसनीय औजार हो गया। जो भी हो हिमाचल का सारा ढांचा और व्यवस्था के मानक अब केवल चुनाव की परिपाटी में जीत के छल को आसरा देते हैं।
Ari Tutari : न सरकारें वाई एस परमार या शांता कुमार की तरह कडक़ और न ही सत्ता और विपक्ष की जिम्मेदारी में कोई फर्क। अगर चुनाव के प्रचार को गौर से सुनेंगे, तो स्पष्ट हो जाएगा कि हमारे चारों ओर छल की चारदीवारी खड़ी हो रही है। हम जिसे चुन भी लेंगे या जो चुना जाएगा, वह आंख का धोखा और लोकतंत्र का छलिया ही तो होगा। देखना किस वादे पे हमने यकीं किया, या उसकी फितरत ने हमें खींच लिया।
(This report has been auto-generated from “divyahimachal” Courtesy of Dainik hind mitra holds no responsibility for its content.)
Buy an annual Dainik hind mitra Membership to support independent journalism and get special benefits.