साहित्य/संपादकीय
वाह हिंदी बहन,आज तो सुबह सुबह बड़ी सज संवर कर निकली हो।कहां जा रही हो ? अंग्रेजी ने आंख मटकाते हुए हिंदी से सवाल किया।
उसके इस सवाल के जवाब में हिंदी मुस्काते हुए बोली- अरी बहना,आज १४ सितंबर है ना।आज देश भर में हिंदी दिवस मनाया जाता है।जगह जगह लोग कार्यक्रम करके मुझे मान सम्मान देते हैं।तुम्हें देखना हो तो चलो मेरे साथ।
हां हां क्यों नहीं कहते हुए अंग्रेजी भाषा खुशी-खुशी हिन्दी के साथ चल पड़ी।वे दोनों शहर के एक बड़े स्कूल के कार्यक्रम में पहुंचीं।
वहां के मुख्य अतिथि महोदय भाषण देते हुए बोल रहे थे- माई डीयर फ्रेंड्स।गूड मार्निंग। टूडे वी आर सेलिब्रेटिंग हिंदी डे।आई एम……..।
इतना सुनते ही अंग्रेजी आंखें फाड़ते हुए बोली -क्यों हिंदी बहन,तुम तो कह रही थी कि आज हिंदी दिवस है।आज तुम्हें बहुत सम्मान मिलता है।पर ….यहां तो हर बात अंग्रेजी में हो रही है। यहां तो सीधे सीधे तुम्हारा अपमान और मेरा मान होता दिखाई दे रहा है।मेरी बातों का बुरा मत मानना बहन अगर तुम्हारी जगह मैं यहां होती तो पल भर भी यहां नहीं रूकती ।
अंग्रेजी की ऐसी बातें सुनकर हिंदी फफक फफक कर रो पड़ी।अपनी आंखों से बहते आंसु पोछते हुए वह बोली – सच कह रही हो बहन।मुझे अपने ही लोगों ने ज्यादा अपमानित किया है।तुमको हमेशा मेरे से ऊपर का आसन दिया है। इसमें गलती तुम्हारी नहीं बल्कि मेरे अपनों की ही है।अपनों की मार अत्यधिक असहनीय, कष्टकारी होती है।चलती हूं। अब यहां एक पल भी नहीं रूक सकती।
रोते बिलखते हिंदी के पीछे पीछे अंग्रेजी भी चल पड़ी।आगे जाकर उसने हिंदी की आंखों से बहते आंसू को पोछते हुए कहा -बहन तुम्हें टूटना नहीं है।तुम तो राष्ट्र-राजभाषा हो।दुनिया कहती है भारत में देर है अंधेर नहीं।याद रखो घूरे के भी दिन फिरते हैं।तुम तो समृद्ध भाषा हो।तुम्हारा अपमान करने वाले को तो इस देश में रहने का हक भी नहीं है।अंग्रेजी के इस अपनेपन को पाकर सुबकती हिंदी ने उसे बाहों में भर लिया।
विजय मिश्रा ‘अमित’
पूर्व अति.महाप्रबंधक(जन) , छग पावर कंपनी,