साहित्य,
दावानल में घिरा हुआ सा
थाह नही अंधा कुंआ सा
परिजन सब बेसुध खड़े
कैसी विवशता में पड़े
गाँव- गाँव में कहीं न कहीं
ये दृश्य दिखते क्यों रोज हैं
कुप्रथाओं में अव्वल
ये कैसा मृत्युभोज है ?
जिसके घर है मातम छाए
दशकर्म क्रियाकर्म कराए
कितने ही पकवान बनाकर
खिलाएगा सबको बुलाकर
अतिथि का सत्कार कर रहा
कांधे पर गम का बोझ है
कुप्रथाओं में अव्वल
ये कैसा मृत्युभोज है ?
संतो का सम्मान करेगा
कुछ न कुछ दान करेगा
घर का चिराग बुझा है
लोगों को आनंद सुझा है
चिंतकों को भी रास आई
जाने कैसी भला खोज है
कुप्रथाओं में अव्वल
ये कैसा मृत्युभोज है ?
- शशिभूषण स्नेही
बिलाईगढ़ (कैथा)