मुगलों का कलिकाल,कोहरे नभ पर छाये।
सबके तारण – हार, महाराणा तब आये।।
चौड़ी छाती वीर, देख अकबर थर्राया।
सोच रहा हर बार,इसे किसने जन्माया।।
दो – धारी तलवार , हाथ में पकड़े राणा।
करते विकट प्रहार,अक्ल के बड़े सयाणा।।
छोटे बचपन काल,राज्य का भार सँभाला।
एक हाथ तलवार, दूसरी रखते भाला।।
चेतक को गजराज,बनाकर चकमा देते।
दुश्मन भले हजार ,प्राण सबके हर लेते।।
चेतक बना मतंग,तंग हो बिखर गए अरि।
घोड़े का यह रंग,देख कर सिहर गए अरि।।
राणा की तलवार,करे जब बोटी – बोटी।
फीकी पड़ी दहाड़ मुगल की,खुली लंगोटी।।
पर मेवाड़ी पूत , आज क्यों ?डरा -डरा था।
उसके आगे क्योंकि,दोस्त का देह पड़ा था।।
जला हृदय अंगार,मुगल जब चेतक मारे।
रोये थे मुँह फाड़,बीच रण लाल हमारे।।
महाकाल -विकराल,बनी तब उनकी काया।
अकबर बोले भाग ,चली रे! उसकी माया।।
बनके बहे बयार, कभी रुकना ना जाने।
दुश्मन आगे भाल,कभी झुकना ना जाने।।
सिंह को चारों ओर, मृगों ने घेर रखा जब।
पंजों से कर वार,शत्रु का स्वाद चखा तब।।
सेना बीस हजार, पड़े मुगलों पर भारी।
आज रक्त से लाल,हुई थी धरती सारी।।
अकबर बोले – वाह! वीरता देख हमारी ।।
राजपूत – तलवार, बड़ी तीखी दोधारी।।
हल्दी – घाटी युद्व , नया प्रतिमान बनाया।
हारा फिर भी यार,विजेता वही कहाया।।
कहे- वीरता गीत , बनाती लक्ष्मी बाई।
राणा के हर बार ,शौर्य की करे बड़ाई।।
त्यागे प्राण प्रताप,सकल संसार हिला था।
रोये अकबर यार,नैन अरि का गीला था।।
अकबर हिंदुस्तान,बड़ा ही छल कर पाया।
क्षत्राणी वह एक ,नेक संग ब्याह रचाया।।
राणा तेरा नाम,अमर है युगों -युगों तक।
करती जनता शोक,क्षत्रियों से मुगलों तक।।
धन्य- धन्य माँ- बाप, जिन्होंने राणा जन्में।
खाए रोटी कौन,घास की अब कानन में।।
चेतक पर चढ़ यार, भारती दुश्मन मारे।
माँ के खातिर साल,कई वन-विचर गुजारे।।
-: बल्लू-बल