नई दिल्ली
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लगातार भयावह होती स्थिति के बीच केंद्र सरकार व कई विपक्ष शासित राज्यों में समन्वय की कमी भी साफ खटक रही है। इन राज्यों खासकर विपक्ष शासित और केंद्र के बीच तालमेल न होने से चिकित्सीय सुविधाओं के लिए जद्दोजहद बढ़ी है और एक समग्र नीति पर काम करना मुश्किल लग रहा है। इससे राजनीतिक तल्खी भी बढ़ी है। ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्ष शासित राज्य केंद्र को घेरने में कोई चूक नहीं छोड़ना चाहते हैं। गौरतलब है कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फोन कॉल को लेकर उनपर कटाक्ष किया। लेकिन इसके पहले भी कई अन्य घटनाएं टकराव की ओर साफ इशारा करती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बैठक के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा बैठक का लाइव प्रसारण करने को लेकर तल्खी नजर आई थी। प्रधानमंत्री की आपत्ति पर केजरीवाल ने खेद जता दिया था। लेकिन ऑक्सीजन की कमी को लेकर केंद्र और राज्य पटरी पर नजर नहीं आये। अंततः कोर्ट को दखल देना पड़ा। उधर कुछ दिन पहले महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक ने उद्धव ठाकरे द्वारा कथित तौर पर प्रधानमंत्री को किये गए फोन कॉल पर जवाब न मिलने का आरोप लगाया था। इसके अलावा कांग्रेस शासित राज्य टीकाकरण को लेकर केंद्र को लगातार घेर रहे हैं।
सूत्रों का कहना है कि केंद्र और राज्य दोनों अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं। कोविड की भयावह स्थिति के मद्देनजर प्रधानमंत्री खुद स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। वे लगातार बैठकें कर रहे हैं। लेकिन कहीं न कहीं ऐसा भी प्रतीत होता है कि जिम्मेदारियां एक-दूसरे पर डालने की कोशिश हो रही हैं। इतना हीं नहीं, विदेशों से बड़ी संख्या में मदद स्थिति को संभालने के लिये मंगाई गई है। लेकिन राज्य इस मदद के समान वितरण को लेकर भी सवाल उठा रहे हैं। सूत्रों का यह भी कहना है कि केंद्र सरकार के सामने कोविड संकट पर नियंत्रण की चुनौती है। क्योंकि इससे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराई है। साथ ही इस संकट का असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। विदेशी मदद और देश में चल रहे प्रयास से स्थिति पर काबू पाने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन माना जा रहा है कि राज्यों में भरोसा पैदा करने के लिए केंद्र सरकार को कोविड की पहली लहर के दौरान अपनाई गई समग्र रणनीति अपनानी पड़ सकती है। जानकारों का कहना है कि कोविड संकट से निपटने के लिए राज्यों को केंद्र का सहयोग चाहिए। राज्यों को भी केंद्र द्वारा सुझाये गए मॉडल और उपायों की अनदेखी नही करनी चाहिए। क्योंकि ये राष्ट्रीय संकट है।