साहित्य
आरव शुक्ला की नयी रचना मेन्स डे के अवसर पर सीधे और सरल शब्दों में लोगों को समर्पित |
हंस के हर तकलीफ़ छिपाया करता हूँ
मैं अपने हर जज़्बात दबाया करता हूँ ।।
दुनिया वालो की खुशियों में जीने को
अपने हर सुख-दुःख भुलाया करता हूँ ।।
कभी पर्वत सा सख़्त बहुत हो जाता हूँ
या कभी मन को मोम बनाया करता हूँ ।।
नर्म हाथों से कोई जब भी छू जाता है
तो क़िताब के जैसे खुल जाया करता हूँ ।।
दुनिया से अलग नहीं हूँ बस लड़का हूँ
वक्त के मुताबिक़ ढल जाया करता हूँ ।।
आरव शुक्ला