गुरु वाणी,
परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी) ने कथा के माध्यम से यह प्रसंग बताएं कि प्रभु की जो हमेशा आराधना करते हैं,अपनी इष्ट की सेवा करते हैं , ना आगे ना पीछे, ना दाएं ना बाए, निश्चल भाव से अपनी अपने इष्ट की प्रशंसा में लगे रहते हैं उसकी भक्ति,उनकी भाव उसके इष्ट तक वो बातें पहुंच जाती है। स्पर्शा कर जाती है और भगवान भी उसका मान रखते हैं । अंगद जी बार-बार रावण के उसके कर्म को उसके कृत्य को जिसकी वह भूरी- भूरी प्रशंसा कर रहा है और उससे सम्मान की चेष्टा कर रहा है, अंगद जी कहते हैं — अरे दुष्ट अपना गर्दन काट देने से ,आत्महत्या कर लेने से ,कीट पतंगों की तरह अग्निकुंड में डाल देने से, गधों की तरह बोझ ढोने से कोई सुरवीर नहीं होता ।
जो भगवान की कृपा का पात्र हो जाए, निर्भरा भक्ति का पात्र हो जाए ,वह इंसान सूरवीर ही नहीं महावीर हो जाता है : क्योंकि भगवान की शरण में जाना बहुत हिम्मत की बात होती है, शैतान की शरण में जाना ,गलत प्रवृत्ति में जाना, मन में नकारात्मक बातें करना, नेगेटिव विचार लाना यह बहुत ही सरल होता है । आसान होता है । मनुष्य के शरीर में गलत बाते जल्दी से बहुत जल्दी स्वीकार हो जाती है , निगेटिव चीजें जगह-जगह स्वीकार कर ली जाती है, अपने मन की ना सुनने पर ,अपने मन के ना होने पर दुखी होना, विचारों का बदल जाना ,मानसिक रोग हो जाना यह सरल है लेकिन भगवान की शरण में चले जाना, भगवान की भक्ति करना सेवा करना यह साधारण लोगों का कार्य नहीं है । बहुत अधिक इसमें ज्ञान और तपस्या की समर्पण कीआवश्यकता होती है, सीखने की आवश्यकता होती है।
पुरुषार्थ वहां होता है जिसके अंदर में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । यह पुरुषार्थ की सभी चीजें अनुपात में मौजूद रहे वहीं धर्म का आचरण कर सकेगा, संतो की सेवा कर सकेगा, गुरु वाणी के अनुसार चल सकेगा , भगवान के कार्यों में आनंद ले सकेगा । आनंद पूर्वक जीया गया अभी और आगे भी आनंद पूर्वक रहेगा , इतना ज्यादा समर्पण और पुरुषार्थ हनुमान जी के पास है ,अंगद के पास है, लेकिन रावण जिस बल की चर्चा कर रहा है कि मैं कैलाश उठा लिया, मैंने गर्दन काट दिया, इतना बड़ा बोझा उठा लिया , अंगद जी कहते हैं — गधा तो अपनी औकात से ज्यादा बोझा लेकर चलता है सूरवीर हो गया, अंगद जी कहते हैं इस बात का कोई वैल्यू नहीं है , पुरुषार्थ अगर वास्तव में तुम्हारे पास होता ,बलवान होते , तो तुम भगवान की शरण में जाते । उनकी शरण में होने वाला ही बलवान होता है ,वह ऊर्जावान होता है, बहुत अधिक सहनशीलता, धैर्य, की आवश्यकता होती है ,जिसके पास धैर्य होता है वही भगवान और गुरु शरण में जा सकते हैं ।जो मोह से ग्रसित हैं ,जो स्वार्थ के वशीभूत हैं, वह अपने कार्यों के अधीन है वह भगवान और गुरु के शरण में नहीं रह सकता ,टिक नहीं पाएगा।
गुरु संत और भगवान हमेशा कल्याण ही चाहते हैं चाहे वह सज्जन हो चाहे दुर्जन हो ।
जो संत है, जो भगवान की शरण में है उसे जितनी प्रकार की बुराइयां है सब मरी हुई दिखाई देती है, बुराइयां कभी भी सजीव नहीं दिखाई देते हैं, जीवित नहीं दिखाई देते । सब मरे दिखाई देते हैं, यदि भगवान की शरण में है । भगवान ने अर्जुन को विराट रूप में दिखाया , अर्जुन ने देखा समस्त कौरव मरे हुए हैं ,अर्जुन ने कौरवों को मरा हुआ पाया विराट रूप में । भगवान कृष्णा ने कहा देख लो सब मरे हुए हैं, क्योंकि भगवान के सामने गुरु के सामने ज्ञानी तपस्या के सामने ,संतो के सामने ,जितने प्रकार की बुराइयां होती हैं सब मृत ही होते हैं। काम, क्रोध ,मद ,लोभ सब के सब मरे हुए दिखाई देते हैं , और उनको मार कर ही संत बनते हैं, भगवान होते हैं ,गुरु होते है। अंगद जी की दृष्टि में भी रावण मरा हुआ दिख रहा है ,अर्जुन को भी कौरव मरा हुआ ही दिख रहा है , जितने कुप्रवृत्ति वाले लोग हैं ,जो स्वार्थ के वशीभूत है, जो काम के अधीन है, यह सब स्वार्थी बुराइयों की जड़ और बुराइयां संतों की नजर में मरे हुए दिखते हैं।
दूसरे अर्थों में अंगद जी कहते है -14 प्रकार के लोग मरे हुए के समान होते हैं ,मरे हुए कहे जाते हैं ,अंगद जी ने 14 प्रकार के लोगों को कहा यह जिंदा रहते हुए भी मरे हुए हैं– वाममार्गी ,बहुत कंजूस, जो अत्यंत मूढ़ , जो दरिद्र है, दरिद्रता का मतलब गरीबी नहीं होता । संस्कारों से दरिद्र होना, जिसके पास पभाव नहीं है जिसके पास भक्ति नही,जिसके पास श्रद्धा नहीं है वह दरिद्र होता है।
केवट गरीब था लेकिन दरिद्र नहीं था, शबरी गरीब थी दरिद्र नहीं थी , उसके पास भक्ति की मूल संपत्ति थी ।सुदामा जी गरीब थे दरिद्र नहीं थे। संस्कारों की पूंजी थी।
जो संस्कार से, धर्म से, विहीन हो वह दरिद्र होता है : जिनके जीवन में संत चरण ना मिला हो वह दरिद्र होता है, जो कभी गुरुमंत्र ना ले पाए हो गुरु मुख ना हो पाए हो वह दरिद्र है।
जिसके जीवन में गुरु नहीं उसका जीवन शुरू नहीं :
दरिद्र के समान कोई दुख नहीं है, दरिद्र का अर्थ अगर गरीबी से होता, धन के अभाव से होता, पैसों की कमी से होता, तो सुख की परिभाषा देते समय काग भुसुंडि जी कह देते कि धन से बढ़िया कोई सूख नहीं है लेकिन उत्तर यह नहीं देते, काग भूशुंडी जी कहते हैं कि —-
संत के मिलन के समान कोई सुख नहीं है दरिद्रता के समान कोई दुख नहीं है :
क्योंकि अगर लोग संत मिलन, गुरु शरण में आ जाए तो सारा संस्कार, सारे संस्कृति, सारा धर्म हमारे पास आ जाता है ,हमें मिल जाता है । वही सूख देता है, धन से सुख की प्राप्ति नहीं होती । भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बार-बार गीता में समझाया , धन से सुख की वस्तुएं खरीद सकते हैं सुख की प्राप्ति नहीं होती , भोजन वस्त्र खरीद सकते हैं , रोटी कपड़ा मकान धन से खरीद सकते हैं ,लेकिन सुख नहीं खरीद सकते । चैन नहीं खरीद सकते, शांति नहीं खरीद सकते अपने भाग्य को नहीं बदल सकते हैं, किस्मत इतनी दुखी है उसका स्वभाव नहीं बदल सकते ,और मनुष्य के पास दुख केवल धन का अभाव नहीं है, दुख कई प्रकार का होता है धन से हर दुखों का अंत नहीं होता । धन से धन से संबंधित दुखों का ही अंत होता है। धन केवल जरूरत की वस्तुएं खरीद सकता है दुखों का अंत नहीं कर सकता , जिसके पास भक्ति हो वह गुरु शरण में ले जाना चाहता है,और जो भगवान की निंदा करने में लगा है ,गुरु का अपमान करता है ,वह दरिद्र है। इस तरह के व्यक्ति मरे हुए हैं। जो बदनाम हो जाए वे मरे हुए हैं,जो बहुत बूढ़ा है वह मरा हुआ है, जो हमेशा रोगी होते हैं ,क्रोधी होते हैं, हमेशा पेट में दर्द है निरंतर क्रोध में रहने वाला तन और मन दोनों से रोगी हो, जो भगवान विष्णु से विमुख हो, भगवान के विपरीत जाता हो, जैसे- रावण । वेदो का, संतों का विरोध यह सब मरे हुए लोग होते हैं । ऐसे लोग को छोड़ देना चाहिए । वे लोग अपना कर्म , अपना भाग्य और आगे का भविष्य भी खुद लिखते हैं । जो आज का किए वह भविष्य में मिलने वाला है जो पिछला किए थे वह भी मिल रहा है। जो अपने ही शरीर के बारे में सोचता है केवल अपने लिए जीता है कुत्ते का जीवन जी रहा है वह मरे हुए होते हैं । पराई निंदा करने वाला जो हमेशा निंदा करके ही जीता है जो किसी की प्रशंसा ना करता है ऐसे व्यक्ति मृत के समान है ।
पर निंदक चमगादर होई…
किसी के प्रशंसक बने निंदक नहीं, किसी की प्रशंसा करें निंदक ना बने और पापी व्यक्ति , यह 14 प्राणी जीवित्त होते हुए भी मुर्दे के समान है। अंगद जी रावण से कहते हैं तुम भी रावण इन 14 में से एक है। तुझको मार कर क्या करेंगे, तुमको मारने से लाभ ही क्या है ? तुम तो खुद ही मरे हुए हो , यही सोच कर मैं तुमको नहीं मार रहा हूं।
सार : हम अपना पूरा जीवन धन कमाने में ही गवां देते हैं जबकि सच्चा सुख गुरु चरणों में भगवान के चरणों में होता है । धन से केवल सूख की वस्तुएं ही खरीदी जा सकती है जिसके पास भक्ति रूपी पूंजी हो वह कभी दरिद्र नहीं होता ,भगवान उसकी सारी इच्छाएं पूर्ति करते जाते हैं । उनकी बुद्धि सात्विक होती है, और हमेशा सकारात्मक ही सोचते हैं ।