जब जीवन में भक्ति रूपी बरसात ना हो तो मनुष्य का जीवन दुखी हो जाता है

अध्यात्म ।। परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरु जी) ने कथा में जनकपुर की प्रसंग में यह बताएं कि जब जीवन में भक्ति की बरसात ना हो , मनुष्य का जीवन दुखी होता है। एक बूंद जल के लिए जनकपुर तरस रहा हैं, और वह एक बूंद है भगवान की भक्ति। मनुष्य के अंदर भक्ति की एक बूंद आ जाए उसी में जीवन धन्य हो जाता है, जनक जी को कहा गया कि हल निकालो , हल का मतलब – समस्या का हल करना । किसी भी समस्या का हल विचारों से निकाला जाता है ,विचार मन में होता है जब तक समस्या का समाधान रूपी हल ना चलाया जाए, भक्ति की बरसात नही होती है। विचार की दृष्टि अच्छी होना चाहिए शुद्ध होना चाहिए अन्यथा समाधान नहीं होता है अपितु समस्या और बढ़ जाता है। जनकपुर में सुंदर दृष्टि वाली सुनैना है, सुनैना मतलब सुंदर दृष्टि। जिसके पास ज्ञान, सद्गुरु और विवेक हो उसके पास ही समस्या का हल चलेगा और समाधान भी मिलेगा ,अन्यथा मन से टकराकर समस्या बढ़ा देगा । जब सुंदर दृष्टि वाली सुनैना साथ हो तो वह घट से टकराएगा , घट मतलब भक्ति।

राजा जनक जी के हल चलाने से माता सीता का जन्म होता है पूरे जनकपुर में प्रसन्नता का वातावरण होता है चारों तरफ से जल की वृष्टि होती है, नदी ,समुद्र सब उफान दे रही है ,चारों तरफ हरियाली छाई हुई है सबके मन में प्रसन्नता का उल्लास का वातावरण है।

जब सद्गुण की डोरी अहंकार से जुड़ जाए तो अहंकार को तोड़ देना चाहिए

धनुष यज्ञ की कथा में गुरु जी यह बताएं कि भगवान राम ने केवल धनुष तोड़ा उसकी डोरी नहीं तोड़ी, जो अभिमान से जुड़ा हुआ था । संकेत देते हैं कि सद्गुण की डोरी जब अभिमान से जुड़ जाए तो उसके अहंकार को तोड़ देना चाहिए , जब सज्जनों के अंदर दुर्जनता आ जाए तो सद्गुणों को बचाकर अहंकार को तोड़ देना चाहिए। जब सज्जनों के अंदर सज्जनता की कमी हो जाए दुर्जनता से काम करें वह दुर्जन हो जाता है उस समय सज्जनों को सामने आकर उसके अंदर की कुप्रवृत्तियों को अहंकार को समाप्त करना चाहिए।

भगवान कृष्ण ने भी गीता में यही कहते हैं यदा -यदा ही धर्मस्य….. जब-जब धर्म की हानि होती है अधर्म बढ़ने लग जाता है तब धर्म की स्थापना करने भगवान को इस धरती में आना पड़ता है।

श्रीमती कल्पना शुक्ला

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