संपादकीय.
सरकार ने तय कर लिया है कि जंगल को जंगल नहीं रहने देंगे। इसलिए हसदेव अरण्य क्षे़त्र में कोयला के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश को ठेगा दिखाते हुए पाँच लाख हरे पेड़ों की हत्या की अनुमति दे दी। जंगल है तो हरियाली है। हरियाली है तो पानी है। पानी है तो जीवन है। जीवन है तो राष्ट्र है। मगर सरकार हजारों आदिवासियों की जिन्दगी और जानवरों की जान को नज़र अंदाज कर जंगल के साथ जंगली बर्ताव कर रही है। धड़ल्ले से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश को ठेगा दिखा कर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बात मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मान ली और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड कंपनी जो कि अडानी समूह की है,उसे छत्तीसगढ़ सरकार ने परसा ईस्ट केते बासन खदान और परसा खदान के खनन की अनुमति दे दी है।
इसमें 4 लाख 50 हजार पेड़ काटे जाएंगे। इससे हाथियों और इंसानों के बीच संघर्ष बढ़ेगा। कोयला खदान शुरू होने पर बांगो परियोजना पर खतरे की आशंका है। हसदेव नदी में जो पानी आता है,वह इसी जंगल और पहाड़ से होकर आता है। इसी के दम पर बांगो परियोजना संचालित है। हसदेव अरण्य जंगल ‘नो गो एरिया’ पहले से ही घोषित है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 2014 में परसा ईस्ट केते बासन खदान को दी गई अनुमति को ही रद्द कर दिया था।
ट्रिब्यूनल ने भारतीय वन्यजीव संस्थान और इंडियन काउंसिल आफ फारेस्ट्री रिसर्च से इस क्षेत्र में खनन से क्या प्रभाव पड़ेगा,उसका अध्ययन कराने को कहा था। भारत सरकार की फॉरेस्ट एडवाइजरी कमेटी ने केंद्रीय वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जुलाई 2011 की गई अनुशंसा को निरस्त कर दिया था। जबकि एक हजार 898 हेक्टेयर में परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक के लिए स्टेज वन की अनुमति प्रदान की थी। लेकिन सन् 2012 में स्टेज 2 का फाइनल क्लीयरेंस जारी होने पर 2013 में खनन शुरू हो गया।
गौरतलब है,राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोतं रायपुर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से अप्रैल में मुलाकात कर कहा, उनके राज्य में कोयला संकट खड़ा होने से बिजली घरों के संचालन में दिक्कत आ रही है। भूपेश सरकार ने उनकी बात मान ली और परसा कोयला खदान के लिए वन भूमि देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। केंद्र सरकार ने 2019 में ही मंजूरी दे दी थी। बहरहाल जंगल कब तक जंगल रहेंगे,ंयह सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर निर्भर करता है। एक रिपोर्ट द वायरल में –
रमेश कुमार “रिपु “