कर्ताभाव और कर्मफल की आसक्ति का त्याग करना ही निष्काम कर्मयोग

 भोपाल

आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास द्वारा बुधवार को शंकर व्याख्यानमाला में रामकृष्ण मिशन विवेकानंद विश्वविद्यालय के प्रति कुलाधिपति स्वामी आत्मप्रियानंद ने 'निष्काम कर्म' पर व्याख्यान दिया।

स्वामीजी ने श्रीमद्भगवद्गीता के आधार पर सहजता से निष्काम कर्म को समझाते हुए कहा कि कर्मफल आसक्ति और कर्तृत्व बुद्धि का त्याग करके कर्म करना ही निष्काम कर्म है। कर्मफल आसक्ति और करता भाव ही बंधन का कारण है। हमें ये बोध होना चाहिए कि कर्म हमारे द्वारा नहीं परमात्मा के द्वारा, किया जाता है। जिस प्रकार कंप्यूटर लेख नहीं लिखता है, वह केवल माध्यम है, इसी प्रकार हम केवल माध्यम हैं, कर्ता नहीं। सभी कार्य ईश्वर की शक्ति से सम्पन्न होते हैं, प्रकृति द्वारा निष्पादित होते हैं। स्वामीजी ने कहा कि कर्म को ईश्वर को अर्पित करना चाहिए, अंतःकरण की शुद्धि के लिए कर्म करना चाहिए।

इस व्याख्यान को न्यास के यूट्यूब चैनल पर देखा जा सकता है। न्यास द्वारा प्रतिमाह शंकर व्याख्यानमाला का आयोजन किया जाता है। इसमें विश्व के प्रतिष्ठित विद्वान-संत जीवनोपयोगी आध्यात्मिक विषयों पर व्याख्यान देते हैं।

स्वामी आत्मप्रियानंद

स्वामी आत्मप्रियानन्द रामकृष्ण मिशन विवेकानन्द शिक्षण एवं शोध संस्थान, बेलूर के प्रतिकुलाधिपति हैं। स्वामीजी को मद्रास विश्वविद्यालय से एलेमेंट्री पार्टिकल थियरि पर कार्य करने पर सैद्धांतिक भौतिकी में पीएचडी की उपाधि 1975 में प्राप्त हुई। उन्होंने 3 वर्षों तक लोयोला महाविद्यालय, चेन्नई में अध्यापन करने के पश्चात् रामकृष्ण परंपरा में संन्यास ग्रहण किया। हाल में 2021 में स्वामीजी को उत्कृष्ट उपलब्धियों हेतु भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर द्वारा डॉक्टर ऑफ साइंस की मानद उपाधि प्रदान की गई।

बतौर संन्यासी और शिक्षाविद, स्वामीजी के अध्ययन के विषयों में प्रमुख हैं – ‘योग-वेदान्त व आधुनिक विज्ञान’ तथा ‘उपनिषदों में वर्णित चेतना अध्ययन’। इन विषयों पर अनेक प्रकाशनों के साथ स्वामीजी देश-विदेश के अनेक धार्मिक व शैक्षणिक संगोष्ठियों, कार्यशालाओं व वार्ता कार्यक्रमों में सक्रिय प्रतिभागिता करते रहे हैं।

अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें – 9977743216

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here