UP Budget : विश्वास के मंत्र से 2024 का लक्ष्य साधने की तैयारी, ‘सब पर नजर सबकी खबर’ का दिया संदेश

यूपी का यह बजट सरकार के बेहतर राजस्व वसूली के अनुमानों पर टिका हुआ हैं । कारण, देश व दुनिया की जो मौजूदा आर्थिक स्थिति है उसके देखते हुए यह आशंका होती है कि राजस्व प्राप्ति के अनुमान फिसल न जाएं । विश्व के अन्य देशों में यूक्रेन संकट के चलते मंहगाई सिर उठाए हुए है। विकास की गति भी सुस्त है। इसके असर से भारत भी अछूता नहीं रह गया है ।

 लखनऊ.

अब तक के प्रदेश के सबसे बड़े बजट के जरिए योगी सरकार ने ‘विश्वास के मंत्र’ से 2024 का लक्ष्य साधा है। इसमें सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, सामाजिक समीकरणों से लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का भरोसा शामिल है। यह भी बताने की कोशिश की है कि योगी सरकार 1 की तरह यह सरकार भी उन वादों को पूरा करने में पीछे नहीं रहेगी जो विधानसभा चुनाव के दौरान किए गए थे। पर, इसका मतलब यह नहीं है कि सब अच्छा ही अच्छा है। सिर्फ बजट प्रावधान करने से मकसद हल नहीं होगा। देखना होगा कि सरकारी मशीनरी कितनी प्रतिबद्धता से सरकार के बजट के संकल्पों को पूरा करने में जुटती है।

धन की व्यवस्था बन सकती है चुनौती
बजट में ऐसे तमाम साक्ष्य हैं जिनसे 2024 के चुनाव के मद्देनजर हर उस वर्ग को भाजपा के साथ और मजबूती से जोड़ने की कोशिश नजर आती है जो पार्टी की जीत की गणित को और पुख्ता करने में मददगार हो। साथ ही भाजपा की ‘जो कहती है वह करती है’ वाली छवि पर कोई आंच न आए इसके लिए बजट में अयोध्या, प्रयागराज, वाराणसी, चित्रकूट, श्रंगबेरपुर, विंध्याचल जैसे  हिंदुत्व से जुड़े तमाम स्थलों के विकास पर जोर दिया गया है।

पुरोहित कल्याण बोर्ड के गठन के जरिये उम्रदराज पुजारियों व संतों की सहायता के संकल्प और 2025 में प्रयागराज में प्रस्तावित महाकुंभ की व्यवस्थाओं की अभी से बजट में व्यवस्थाओं का उल्लेख करना भी इसी कोशिश का ही हिस्सा है। लेकिन इतने बड़े बजट की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सरकार धन की व्यवस्था किस तरह करेगी ये भी एक चुनौती बन सकती है।

सोशल इंजीनियिरंग साधने की गणित  
सरकार ने बजट में एजेंडे पर काम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। स्व. कल्याण सिंह न सिर्फ अयोध्या आंदोलन के नायक थे बल्कि 1991 में भाजपा की पहली सरकार के मुख्यमंत्री थे। बड़े नेता होने के अलावा वह ऐसे शख्स थे जो हिंदुत्व की सोशल इंजीनियरिंग पर बिल्कुल फिट बैठते थे। जिनका चेहरा हिंदुत्व का था लेकिन पिछड़ी जातियों के लिए ‘अपने’ थे ।

अगड़ों के बीच भी उनके प्रति उतना ही लगाव था जितना पिछड़ों के बीच। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए बतौर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी यदि किसी नेता का हाथ पकड़कर प्रदेश में घूमे थे तो वह कल्याण सिंह ही थे। बजट में उनके नाम पर गांव में स्ट्रीट लाइट की योजना शुरू करने का प्रावधान देखने में भले ही एक सामान्य बात लगे। पर, इसके जरिये भाजपा ने कल्याण को सम्मान के सहारे सोशल इंजीनियरिंग को मजबूत बनाने की कोशिश की है उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।  इसी तरह निषादराज बोट सब्सिडी योजना के जरिये भी सामाजिक समीकरण ही साधने की कोशिश है ।

 

सबको साथ लेने की कोशिश

बजट में हर परिवार के एक सदस्य को रोजगार या नौकरी, निराश्रित महिलाओं, बुजुर्गों एवं दिव्यांगों की पेंशन में बढ़ोतरी के लिए धन का प्रावधान, चुनाव में किए गए वायदे के अनुसार उज्ज्वला रसोई गैस लाभार्थियों को वर्ष में दो बार मुफ्त सिलेंडर देने के लिए धन की व्यवस्था, बुंदेलखंड को अगले पांच सालों में पूरी तरह प्राकृतिक कृषि से जोड़ने का संकल्प,  किसानों के लिए भामाशाह कोष स्थापित करना 2024 के मिशन को मजबूत करने का ही हिस्सा है। यह बात अब किसी से छिपी नहीं है कि भाजपा के विजय अभियान को लगातार आगे बढ़ाने में सरकार की गरीब कल्याण योजनाओं की काफी भूमिका रही है। शायद इसीलिए योगी सरकार ने लाभ से वंचित गरीबों को भी सूची में शामिल कर उन्हें भी इनका लाभ दिलाने की व्यवस्था की है ताकि गरीबों का जुड़ाव भी ज्यादा मजबूत रहे।

ये भी है वजह: अर्थशास्त्रियों की भाषा में कहा जाए तो योगी सरकार ने इस बजट के जरिये प्रदेश के आधारभूत ढांचे को मजबूत बनाने के साथ भाजपा का आधार भी और मजबूत बनाने की कोशिश की है। अर्थशास्त्री प्रो. एपी तिवारी कहते हैं कि यह बजट पीबीसी अर्थात पॉलिटिकल बजट साइकिल का उदाहरण है जिसे राजनीतिक बजट चक्र कहते हैं। जो अमूमन विश्व के प्रत्येक लोकतांत्रिक देश में दिखता है। यह बात दीगर है कि योगी जी ने अपने दूसरे कार्यकाल के इस पहले ही बजट से शुरू कर दिया।

आमतौर पर यह काम चुनाव के पूर्व वाले साल के बजट में होता है। प्रो. तिवारी की बात सही लगती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बजट पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा भी कि इस बजट के जरिये उन्होंने पांच साल की कार्ययोजना एवं सरकार की विकास दृष्टि को प्रस्तुत करने की कोशिश की है ।

मुसीबतें हैं महंगाई और यूक्रेन युद्ध, कर्ज लिया तो बढ़ेगा घाटा
हालांकि यह सब सरकार के बेहतर राजस्व वसूली के अनुमानों पर टिका हुआ हैं । कारण, देश व दुनिया की जो मौजूदा आर्थिक स्थिति है उसके देखते हुए यह आशंका होती है कि राजस्व प्राप्ति के अनुमान फिसल न जाएं । विश्व के अन्य देशों में यूक्रेन संकट के चलते मंहगाई सिर उठाए हुए है। विकास की गति भी सुस्त है। इसके असर से भारत भी अछूता नहीं रह गया है ।

ऐसे में अगर महंगाई और सुस्त विकास का यूपी में भी असर दिखा तो बड़ी चुनौती होगी। अगर खर्च का दबाव बढ़ता रहा और आमदनी घटी तो सरकार को कर्ज लेना पड़ेगा जिससे घाटा और बढ़ेगा। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि कर्ज लेना पड़ा तो बजट प्रस्तावों ज्यों का त्यों जमीन पर उतारना मुश्किल होगा ।

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