लखनऊ.
अब तक के प्रदेश के सबसे बड़े बजट के जरिए योगी सरकार ने ‘विश्वास के मंत्र’ से 2024 का लक्ष्य साधा है। इसमें सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, सामाजिक समीकरणों से लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का भरोसा शामिल है। यह भी बताने की कोशिश की है कि योगी सरकार 1 की तरह यह सरकार भी उन वादों को पूरा करने में पीछे नहीं रहेगी जो विधानसभा चुनाव के दौरान किए गए थे। पर, इसका मतलब यह नहीं है कि सब अच्छा ही अच्छा है। सिर्फ बजट प्रावधान करने से मकसद हल नहीं होगा। देखना होगा कि सरकारी मशीनरी कितनी प्रतिबद्धता से सरकार के बजट के संकल्पों को पूरा करने में जुटती है।
Lucknow | Uttar Pradesh Finance Minister Suresh Khanna presents the State Budget 2022-23 in the Legislative Assembly pic.twitter.com/xvKZnYQYZC
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) May 26, 2022
धन की व्यवस्था बन सकती है चुनौती
बजट में ऐसे तमाम साक्ष्य हैं जिनसे 2024 के चुनाव के मद्देनजर हर उस वर्ग को भाजपा के साथ और मजबूती से जोड़ने की कोशिश नजर आती है जो पार्टी की जीत की गणित को और पुख्ता करने में मददगार हो। साथ ही भाजपा की ‘जो कहती है वह करती है’ वाली छवि पर कोई आंच न आए इसके लिए बजट में अयोध्या, प्रयागराज, वाराणसी, चित्रकूट, श्रंगबेरपुर, विंध्याचल जैसे हिंदुत्व से जुड़े तमाम स्थलों के विकास पर जोर दिया गया है।
पुरोहित कल्याण बोर्ड के गठन के जरिये उम्रदराज पुजारियों व संतों की सहायता के संकल्प और 2025 में प्रयागराज में प्रस्तावित महाकुंभ की व्यवस्थाओं की अभी से बजट में व्यवस्थाओं का उल्लेख करना भी इसी कोशिश का ही हिस्सा है। लेकिन इतने बड़े बजट की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सरकार धन की व्यवस्था किस तरह करेगी ये भी एक चुनौती बन सकती है।
सोशल इंजीनियिरंग साधने की गणित
सरकार ने बजट में एजेंडे पर काम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। स्व. कल्याण सिंह न सिर्फ अयोध्या आंदोलन के नायक थे बल्कि 1991 में भाजपा की पहली सरकार के मुख्यमंत्री थे। बड़े नेता होने के अलावा वह ऐसे शख्स थे जो हिंदुत्व की सोशल इंजीनियरिंग पर बिल्कुल फिट बैठते थे। जिनका चेहरा हिंदुत्व का था लेकिन पिछड़ी जातियों के लिए ‘अपने’ थे ।
अगड़ों के बीच भी उनके प्रति उतना ही लगाव था जितना पिछड़ों के बीच। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए बतौर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी यदि किसी नेता का हाथ पकड़कर प्रदेश में घूमे थे तो वह कल्याण सिंह ही थे। बजट में उनके नाम पर गांव में स्ट्रीट लाइट की योजना शुरू करने का प्रावधान देखने में भले ही एक सामान्य बात लगे। पर, इसके जरिये भाजपा ने कल्याण को सम्मान के सहारे सोशल इंजीनियरिंग को मजबूत बनाने की कोशिश की है उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। इसी तरह निषादराज बोट सब्सिडी योजना के जरिये भी सामाजिक समीकरण ही साधने की कोशिश है ।