Unparliamentry Words : असंसदीय शब्दों की सूची पर विपक्ष का हंगामा

‘जुमलाजीवी, बाल बुद्धि सांसद, शकुनी, जयचंद, लॉलीपॉप, चाण्डाल चौकड़ी, गुल खिलाए, पिठ्ठू’’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे ऐसे शब्दों के प्रयोग को अमर्यादित आचरण माना जायेगा और वे सदन की कार्यवाही का हिस्सा नहीं होंगे।

 नई दिल्ली

केंद्र सरकार ने 14 जुलाई को एक असंसदीय शब्दों की पूरी सूची जारी की . जिन्हें अब से संसद में बोलने से सांसदों को बचना चाहिए. लोकसभा के सचिवालय की ओर से जारी बुकलेट में यह पूरी सूची दी गई है. सरकार के इस कदम से विपक्ष ने जमकर हंगामा किया और सरकार के इस फैसले को लेकर खूब ट्रोल किया. विपक्ष के कुछ लोगों ने कहा कि सरकार विरोधियों का मुंह बंद करना चाहती है और अपनी आलोचना में एक शब्द भी नहीं सुनना चाहती. शायद इसी वजह से सरकार ने भ्रष्ट, तानाशाह, एशेम्ड, एब्यूज़्ड, बिट्रेड और हिप्पोक्रेसी जैसे कई शब्दों को अनपार्लियामेंट्री घोषित कर दिया है।

विपक्ष फैला रहा अफवाह

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने अपने फैसले को लेकर सफाई दी है. उन्होंने कहा कि ये फैसला 1954 से जारी एक प्रथा का ही अंग है. आगे कहा कि किसी भी शब्द पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. लोकसभा अध्यक्ष की ओर से जारी बयान के बाद उन सभी अटकलों पर विराम लग गया। जिसमें दावा किया किया जा रहा था कि बीजेपी सरकार कई असंसदीय शब्दों को हटाने जा रही है. पहले भी इस तरह के असंसदीय शब्दों की किताब का विमोचन किया जाता रहा है. हमने कागजों की बर्बादी से बचाव के तहत इसे इंटरनेट पर डाला है. किसी भी शब्द को प्रतिबंधित नहीं किया गया है. बिड़ला ने कहा, “क्या (विपक्ष) ने 1,100 पन्नों की इस डिक्शनरी (असंसदीय शब्दों की लिस्ट) को पढ़ा है.

अगर वे पढ़े होते तो गलतफहमियां नहीं फैलाते. यह 1954,1986, 1992, 1999, 2004, 2009 व 2010 में भी जारी हुआ था. 2010 से सालाना आधार पर इसे रिलीज किया जाता है. उन्होंने आगे कहा कि जिन शब्दों को हटाया गया है, वे विपक्ष के साथ- साथ सरकार में बैठी पार्टी के सांसदो की तरफ से भी संसद में कार्यवाही के दौरान उपयोग किए गए है. केवल उन्हीं शब्दों को हटाया गया है, जिन पर पहले आपत्ति दर्ज की गई थी.

कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला  

सोशल मीडिया पर चर्चा में रहे असंसदीय शब्दों को लेकर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के बड़े-बड़े नेताओं ने सरकार की आलोचना शुरु कर दी. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस,आम आदमी पार्टी और लेफ्ट की पार्टियों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी ट्वीट करके सरकार पर हमला बोला. राज्यसभा में विपक्ष के नेता, मल्लिकार्जुन खड़गे ने तो यह तक कह दिया कि सरकार को जितने शब्दों पर पाबंदी लगानी है, लगा ले… विरोधी दलों के नेता पार्लियामेंट में इन शब्दों का इस्तेमाल करते ही रहेंगे.

राहुल गांधी ने ट्वीट कर लिखा कि नए भारत की नई डिक्शनरी

प्रियंका गांधी ने अपने ट्वीटर अकाउंट पर लिखी 

प्रियंका गांधी ने अपने ट्वीटर अकाउंट पर लिखा कि सरकार की मंशा है कि जब वो भ्रष्टाचार करे, तो उसे भ्रष्ट नहीं उसके भ्रष्टाचार को ‘मास्टरस्ट्रोक’ बोला जाए. “2 करोड़ रोजगार”, “किसानों की आय दुगनी” जैसे जुमले फेंके, तो उसे जुमलाजीवी नहीं; ‘थैंक यू’ बोला जाए.
PS: संसद में देश के अन्नदाताओं के लिए आंदोलनजीवी शब्द किसने प्रयोग किया था ?

ओवैसी ने कहा कि मोदी सरकार तानाशाही पर उतर आई है. वो अपनी आलोचना बर्दाश्त ही नहीं कर पा रही है। इसीलिए अब विपक्ष की आवाज बंद की जा रही है। आम आदमी पार्टी ने भी असंसदीय शब्दों को लेकर सरकार पर हमला बोला। पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि ये तो सबका मुंह बंद करने का आदेश है. जो सरकार की तरफ़ से जारी किया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार सच सुनना ही नहीं चाहती। सरकार डरती है.

संसद में ये शब्द नहीं बोल सकते

काला दिन काला बाज़ारी
ख़रीद-फरोख़्त दंगा
दलाल सेक्सुअल हैरेसमेंट
खालिस्तानी चरस पीते हैं
तानाशाही विनाश पुरुष
गद्दार तानाशाह
अराजकतावादी गिरगिट
घड़ियाली आंसू घूस

 

ये वाक्य भी संसद में नहीं बोल सकते

1. आप मेरा समय ख़राब कर रहे हैं

2. आप हम लोगों का गला घोंट दीजिए

3. चेयर को कमज़ोर कर दिया है

4. ये चेयर अपने सदस्यों का संरक्षण नहीं कर पा रही है

5. आप चेयर को बदनाम तो न कीजिए

6. आपके मापदंड दोहरे हैं

असंसदीय शब्द पर सरकार के तर्क

1. ये पहले से प्रतिबंधित शब्दों का संकलन है
2. कोई नया शब्द असंसदीय नहीं घोषित हुआ
3. UPA सरकार के दौरान ये शब्द हटाए गए थे
4. ऐसी सूची संसद हर साल जारी करती है

राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा के शब्द भी शामिल

सूची में राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा की कार्यवाही से हटाए गए जिन शब्दों और वाक्यों को शामिल किया गया है उनमें अंट-शंट, अनपढ़, अनर्गल, अनार्किस्ट, उचक्के, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, औकात, कांव-कांव करना, गिरगिट, गुलछर्रा, घड़ियाली आंसू, घास छीलना, चोर-चोर मौसेरे भाई, ठग, ठगना, ढिंढोरा पीटना, तड़ीपार, तलवे चाटना, धोखाधड़ी, नाटक आदि शामिल हैं.

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट किया

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट किया है, “लोकसभा और राज्यसभा के लिए असंसदीय शब्दों की सूची में ‘संघी’ शामिल नहीं है. दरअसल, सरकार ने हर उस शब्द को बैन कर दिया है जिसके ज़रिए विपक्ष ये बताता है कि बीजेपी कैसे भारत को बर्बाद कर रही है.”

मध्यप्रदेश विधानसभा में असंसदीय शब्दों को हटाया गया 

मध्यप्रदेश विधानसभा में अगस्त 2021 को एक किताब का विमोचन किया गया था. ये किताब असंसदीय शब्दों का एक संग्रह है. इस बुकलेट में 1161 असंसदीय शब्द रखे गए हैं. इसके अलावा उस शब्द के आगे वो तारीख भी लिखी गई है, जिस तारीख को असंसदीय शब्द मानकर उस शब्द को हटाया गया है. इसमें पहला शब्द ‘ससुर’ है जो 23 सितंबर 1954 को इस्तेमाल हुआ था.

‘गंदी सूरत’ शब्द 2 अक्टूबर 1954 को इस्तेमाल किया गया था. इसमें आखिरी शब्द ‘मिस्टर बंटाधार’ है. ये 16 मार्च 2021 को इस्तेमाल हुआ था. अब आपको असंसदीय शब्दों के नियम और कानून बताएं उससे पहले मध्यप्रदेश विधानसभा की कुछ असंसदीय शब्दों की लिस्ट दिखाते हैं. इनमें कुछ शब्द सुनकर आपको हंसी आएगी और कुछ हैरान कर देंगे.

चोर मचाए शोर, मिर्ची लग गई, दादागिरी नहीं चलेगी, आप 302 हत्या के मुलजिम हो, मंत्री की बहू ने आत्महत्या कर ली, शर्म करो, यह झूठ का पुलिंदा है, बंधुआ मजदूर, चमचा, भेदभाव, वेंटीलेटर, चापलूस, नौटंकी, पप्पू, माई का लाल, मुक्का मारा, व्यभिचारी, शर्मनाक, पप्पू पास हो जाएगा, चड्डी वाला, गोलमाल, मुर्गा और दारू में पैसे खत्म कर देते हैं, सोच में शौच भरा है, फर्जी पत्रकार, आपने चड्डी पहनी है क्या?

इन असंसदीय शब्दों को सुनकर क्या आपको मिर्ची लगी या फिर आपको हंसी आई… हंसी ही आई होगी. चलिए अब बात करते हैं नियमों की.

क्या कहता है नियम ?

संविधान के आर्टिकल 105 (2) में साफ निर्देश है कि संसद सदस्यों को इस तरह की आजादी नहीं होती कि सदन की कार्यवाही के दौरान कोर्ट या कमिटी के सामने कुछ भी बोल दें.. सदन के अंदर अनुशासन कायम रखना होता है.

लोकसभा में प्रोसीजर एंड कंडक्ट ऑफ बिजनेस के नियम 380 (एक्सप्रेशन) के मुताबिक, ‘अगर अध्यक्ष को लगता है कि बहस में अपमानजनक, असंसदीय, अभद्र या असंवेदनशील शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, तो वो सदन की कार्यवाही से उन्हें हटाने के लिए आदेश दे सकता है.

अगर आप सांसद हैं तो सदन में किसी पर झांसा देने का आरोप नहीं लगा सकते हैं. स्पीकर पर ‘दोहरे दिमाग’, ‘डबल स्टैंडर्ड’, ‘आलसी’, ‘घटिया’ या ‘उपद्रवी’ होने का आरोप नहीं लगा सकते हैं… कोई भी सांसद सदन में किसी दूसरे सांसद के खिलाफ ‘कट्टरपंथी’ या ‘एक्सट्रीमिस्ट’ और ‘डाकू’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकता है.

विपक्ष को सरकार को ‘अंधी-गूंगी’ कहने का अधिकार भी नहीं है…इसकी जगह सरकार के खिलाफ ‘अली बाबा और 40 चोर’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है. किसी सांसद को ‘अजायबघर’ भेजने की सलाह देना भी अससंदीय है. अनपढ़ सांसद के लिए ‘अंगूठा छाप’ जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल करने की मनाही है.

जाति, संप्रदाय, लिंग, भाषा, शारीरिक कमजोरी जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी पाबंदी के नियम में आते हैं. इसके अलावा जिन शब्दों को सदन के बाहर भी सार्वजनिक तौर पर बोलने की मनाही है उन शब्दों का भी सदन में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.

कैसे हटते हैं सदन की कार्यवाही के रिकॉर्ड ?

हिंदी या अंग्रेजी समेत विभिन्न भारतीय भाषाओं में कई ऐसे शब्द हैं, जिन्हें असंसदीय माना गया है. लोकसभा के स्पीकर और राज्यसभा के सभापति का काम सदन की कार्यवाही के रिकॉर्ड से इन शब्दों को दूर रखना होता है. इसके लिए नियम 381 के मुताबिक, सदन की कार्यवाही का जो हिस्सा हटाना होता है, उसे मार्क किया जाएगा और कार्यवाही में एक फुटनोट इस तरह से डाला जाएगा कि अध्यक्ष के आदेश के मुताबिक उसे हटा दिया जाए.

इस पूरी प्रक्रिया में में मदद के लिए, लोकसभा सचिवालय ने ‘असंसदीय अभिव्यक्ति’ नाम से एक किताब भी निकाली हुई है. इस किताब को सबसे पहले साल 1999 में तैयार किया गया था. साल 2004 में इस किताब का नया एडिशन आया था इसमें 900 पन्ने थे. इस सूची में कई शब्द और एक्सप्रेशन्स शामिल हैं जिन्हें देश की ज्यादातर भाषाओं और संस्कृतियों में असभ्य या अपमानजनक माना जाता है.

हालांकि इसमें कुछ ऐसे भी शब्द शामिल हैं, जिनके बारे में बहस की जा सकती है कि ये ज्यादा नुकसानदायक नहीं हैं. इस किताब को तैयार करने के दौरान आजादी से पहले केंद्रीय विधानसभा, भारत की संविधान सभा, प्रोविजनल संसद, पहली से दसवीं लोकसभा और राज्यसभा, राज्यों की विधानसभा और कॉमनवेल्थ संसदों की बहसों से वो संदर्भ लिए गए थे, जिन्हें असंसदीय घोषित किया गया था.

एक खास बात ये है कि कुछ शब्द जैसे ‘शिट’, ‘बदमाशी’, ‘स्कमबैग’ और ‘बैंडीकूट’, शब्दों को अगर कोई सांसद किसी और के लिए इस्तेमाल करता है तो उसे असंसदीय माना जाएगा, लेकिन अगर वो अपने लिए करता है तो ये चल सकता है. वहीं अगर कार्यवाही को कोई महिला अधिकारी संचालित कर रही हैं, तो कोई भी सांसद उन्हें ‘प्रिय अध्यक्ष’ कहकर संबोधित नहीं कर सकता है. रिश्वत, रिश्वतखोरी, ब्लैकमेल, डकैत, चोर, डैम, डार्लिंग जैसे सभी शब्द असंसदीय माने जाते हैं.

भारतीय राजनीति में समय के साथ-साथ राजनीति का स्तर गिरता जा रहा है. सदन के अंदर एक दूसरे की आलोचना करने में कोई बुराई नहीं लेकिन इस आलोचना का एक दायरा होना चाहिए. कई बार तो नेताओं ने ऐसे-ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है जिसे दोबारा न तो लिखना सही है और न ही उनका जिक्र करना. महुआ मोइत्रा समेत कई नेताओं ने सरकार के नए असंसदीय शब्दों पर सवाल खड़ा किया है. उनका इशारा साफ है कि सरकार अपनी आलोचना भी सुनना पसंद नहीं करती इसलिए तानाशाही और जुमलाजीवी जैसे शब्दों को भी असंसदीय मान रही है.

लेकिन सरकार तो सरकार है. वैसे भी मोदी सरकार तो बहुमत में है.वो अपने हर फैसले को डिफेंड करती है. सरकार के असंसदीय शब्दों की लिस्ट देखकर लगता है कि वो विपक्ष की बात सुनना तो चाहती है

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here