मैथिली के सुरों ने श्रीराम के भजनों से कराई अध्यात्म की बारिश

मैथिली ठाकुर द्वारा भजन प्रस्तुति से हुआ समारोह का समापन, सुबह के सत्र में शंकराचार्य द्वारा बातचीत सत्र आयोजित

भोपाल, अजय प्रताप सिंह । रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में आयोजित किए जा रहे लक्ष्मीनारायण मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का समापन शुक्रवार शाम को भजन गायन के साथ हुआ। इस अवसर पर प्रख्यात गायिका मैथिली ठाकुर ने अपने समूह के साथ सूमधुर भजनों की प्रस्तुत दी। कार्यक्रम की शुरुआत शाम को मैथिली ठाकुर ने गीत “गौरी गणेश मनाऊं आज सुद लीजे हमारी…” की प्रस्तुति से की। इसके बाद माहौल को आध्यात्मिक रूप देते हुए उन्होंने अपनी अगली पेशकश में “सजा दो घर को गुलशन सा…” गीत को पेश किया। सुमधुर भजनों की पेशकश में उन्होंने राम और कृष्ण पर भजनों को प्रस्तुत किया। इस दौरान उन्होंने अन्य गीतों में “राम जी से पीछे…”, “श्रीराम को देख कर जनक नंदनी…” “तुम उठो सिया श्रृंगार करो…” की प्रस्तुति दी गई।

इससे पहले सुबह के सत्र में गोवर्धन मठ पुरी पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी का रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के फैकल्टीज के साथ बातचीत सत्र आयोजित हुआ। इस दौरान उनसे जीवन के पहलुओं समेत शिक्षा व्यवस्था इत्यादि पर कई सवाल पूछे गए। इसमें अंग्रेजी भाषा सीखने की बात पर शंकराचार्य जी ने कहा कि व्यक्तित्व पर भाषा का प्रभाव पड़ता है। भाषा के साथ उसकी संस्कृति भी व्यक्तित्व में समाहित होती है, इसलिए आवश्यक है कि हर भारतीय अपनी हिंदी एवं संस्कृत भाषा से जुड़ाव बनाकर रखे। आज लोग अपनी भाषा, संस्कृति, ज्ञान परंपरा और अध्यात्म से दूर हो रहे हैं। इसका प्रभाव समाज में दिखाई देने लगा है। पहले बड़ी संख्या में संयुक्त परिवार हुआ करते थे, अब परिवार छोटे होने लगे हैं। छोटे परिवार होने के दुष्परिणाम अलग तरह से सामने आते हैं।

साथ ही एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अध्यात्मिक ज्ञान और दर्शन को शिक्षा व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए। प्रत्येक विद्यार्थी को भारतीय दर्शन जरूर पढ़ना चाहिए। इसके बिना विज्ञान और गणित को सीखना अधूरा है। दुनिया के बहुत से वैज्ञानिक भी भारतीय दर्शन को समझते और उसका सम्मान करते हैं।

वर्ण व्यवस्था पर किए गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि शास्त्र के अनुसार शूद्र को कभी छोटा नही कहा गया। शूद्र ऐसे लोगों का समूह होता है जो आमतौर पर किसी प्रकार के लघु एवं मध्यम उद्योग में रत होता है। कोई लकड़ी का सामान बनाता है, कोई लोहे का सामान, कोई मिट्टी का सामान तो कोई सेवा प्रदाता होता है। इस सबके बदले वह धन कमाता है। इस प्रकार शूद्रों को छोटा नहीं माना जा सकता है। समाज में सभी वर्णों की अपनी उपयोगिता है। समाज में संतुलन के लिए वर्ण व्यवस्था बेहद आवश्यक है। इसी से राष्ट्र की उन्नति हो सकती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here