आध्यात्म :Shri Jagannath Rath Yatra: श्री जगन्नाथ रथ यात्रा एक प्राचीन हिंदू धार्मिक उत्सव है जो भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा के लिए पुरी, ओडिशा में मनाया जाता है। इस उत्सव का आयोजन भारतीय हिंदू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी से पूर्णिमा तिथि तक किया जाता है, जो जून या जुलाई महीने में होता है। इस यात्रा के दौरान, भगवान जगन्नाथ की मूर्तियाँ उनके मंदिर से लेकर उनके विशेष रथों पर स्थापित की जाती हैं और लाखों भक्तजन इन रथों को धक्का देकर या खींचकर पुरी नगर के मुख्य सड़कों पर ले जाते हैं।
जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास लगभग 900 से 1000 ईसा पूर्व तक जाता है, जब इसे आयोजित किया जाने लगा था। इस पर्व का उल्लेख पुराणों, खगोलशास्त्र और संस्कृत ग्रंथों में भी पाया जाता है। इसे धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा माना जाता है और यह भारतीय समाज में एकता और समरसता का प्रतीक है। इस रीति-रिवाज, आराधना, और समाजिक एकता के मेले में जगन्नाथ रथ यात्रा भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी हुई है, जो धर्मिकता, समरसता, और समृद्धि का प्रतीक है।
Shri Jagannath Rath Yatra: यात्रा की महत्वपूर्ण तिथियाँ:
- द्वादशी (दशमी): इस दिन यात्रा की तैयारियाँ शुरू होती हैं। भगवान की मूर्तियाँ रथ पर स्थापित की जाती हैं।
- त्रयोदशी: इस दिन रथ यात्रा शुरू होती है, जब रथों को मंदिर से लेकर उन्हें मुख्य सड़कों पर ले जाया जाता है।
- पूर्णिमा: इस दिन रथ यात्रा समाप्त होती है, जब रथों को उनके स्थान पर लौटाया जाता है और भगवान की मूर्तियाँ मंदिर में लौटाई जाती हैं।
- रथ यात्रा में तीन मुख्य रथ होते हैं: जगन्नाथ रथ, बलभद्र रथ और सुभद्रा रथ। इन रथों का प्रत्येक अलग-अलग नाम और विशेषताएँ होती हैं, और ये रथ विशेष रूप से तैयार किए जाते हैं और उन्हें रथ यात्रा के दौरान धक्का देकर ले जाया जाता है।
Shri Jagannath Rath Yatra: कब और क्यों मनाया जाता है यह पर्व
रथ यात्रा का आयोजन भारतीय हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी से पूर्णिमा तिथि तक किया जाता है, जो जून या जुलाई महीने में पड़ती है। इसे ‘चारियात्रा’ भी कहते हैं, जिसका अर्थ है “चार वाहनों पर यात्रा”। धार्मिक मान्यता के अनुसार एक बार बहन सुभद्रा ने अपने भाइयों कृष्ण और बलरामजी से नगर को देखने की इच्छा प्रकट की। फिर दोनों भाइयों ने बड़े ही प्यार से अपनी बहन सुभद्रा के लिए भव्य रथ तैयार करवाया और उस पर सवार होकर तीनों नगर भ्रमण के लिए निकले थे।
रास्ते में तीनों अपनी मौसी के घर गुंडिचा भी गए और यहां पर 7 दिन तक रुके और उसके बाद नगर यात्रा को पूरा करके वापस पुरी लौटे। तब से हर साल तीनों भाई-बहन अपने रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं और अपनी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर जाते हैं। इनमें सबसे आगे बलराम जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे जगन्नाथजी का रथ होता है।
Shri Jagannath Rath Yatra: कैसे मनाया जाता है
रथ यात्रा के दौरान, भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां उनके मंदिर से निकालकर उनके विशेष रथों (जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा के लिए अलग-अलग रथ) पर स्थापित की जाती हैं। इन रथों को मंदिर से लेकर पुरी नगर के मुख्य सड़कों में स्थानांतरित किया जाता है, जहां लाखों श्रद्धालुओं द्वारा इन्हें धार्मिक उत्सव के रूप में देखा और भगवान के आशीर्वाद की कामना की जाती है।
Shri Jagannath Rath Yatra: भारत में इन प्रसिद्ध स्थान पर सर्व प्रसिद्ध है यह पर्व
जगन्नाथ रथ यात्रा पुरी, ओडिशा के लिए सबसे महत्वपूर्ण है, जहां यह पर्व सबसे बड़े उत्सवों में से एक है। इसके अलावा, गुजरात के अहमदाबाद और महाराष्ट्र के मुंबई में भी जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन होता है, जो वहां के उन्नत ओडिशा समुदायों द्वारा किया जाता है। जगन्नाथ रथ यात्रा पुरी के अलावा भारत के अन्य कई शहरों में भी मनाई जाती है, जैसे कि अहमदाबाद (गुजरात) और मुंबई (महाराष्ट्र)। ये यात्राएँ उन राज्यों के उन्नत ओडिशा समुदायों द्वारा आयोजित की जाती हैं और भगवान जगन्नाथ के आशीर्वाद की कामना की जाती है।