तपती-झुलसाती गर्मी में आदिवासियों का पैदल मार्च, सीआरपीएफ कैंप और सड़क चौड़ीकरण का विरोध

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तपती-झुलसाती गर्मी में आदिवासियों का पैदल मार्च, सीआरपीएफ कैंप और सड़क चौड़ीकरण का विरोध

बस्तर,पूनम मसीह  ।  बस्तर संभाग के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ में पिछले लंबे समय से अलग-अलग जगहों में आदिवासी सीआरपीएफ कैंप और सड़क चौड़ीकरण के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं। इस दौरान आदिवासी 12 और 13 मई को पैदल मार्च कर जिला कलेक्टर से मिलने पहुंचे। लगभग 200 दिनों से अबूझमाड़ तोयमेटा में हजारों ग्रामीण अपनी तीन सूत्रीय मांगों को लेकर धरने पर बैठे हैं। लगातार सरकार की तरफ से इनकी बातें न सुने जाने पर उन्होंने पैदल मार्च निकालने का फैसला किया।

राशन-पानी लेकर पैदल मार्च पर आदिवासी

राशन पानी के साथ निकले आदिवासी

शुक्रवार को कड़ी धूप में अबूझमाड़ के हजारों आदिवासियों ने तीन ट्रैक्टर में राशन, पानी, अपने-अपने जरुरत का सामान और पारंपारिक हथियार के साथ शहर के लिए कूच किया। लगभग 40 किलोमीटर के इस रास्ते में कुंकराझाड़ के पास सुरक्षाबलों इन्हें रोकने की कोशिश की। लेकिन सुरक्षाबल इन्हें रोक नहीं पाये। आदिवासियों ने पुलिस बैरिकेंटिग को पार कर पैदल मार्च को जारी रखा और रात लगभग 10 बजे नारायणपुर के बाखरुपारा पहुंचे। जहां रातभर रहने के बाद उन्हें शनिवार की सुबह जिला क्लेक्टर ऑफिस जाना था। लेकिन उससे पहले जिला क्लेक्टर अजीत वसंत और एसपी पुष्कर शर्मा ने उनसे मिलकर उन्हें हर संभव मदद का आश्वासन दिया।

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कलेक्टर से मिलने पहुंचे आदिवासी

क्लेक्टर ने मिलकर दिया आश्वसन

क्लेक्टर अजीत वसंत ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि ओरछा के ग्रामीण क्षेत्रों से जो लोग अपनी त्रिसूत्रीय मांगों को लेकर नारायणपुर आए हैं, इन आंदोलनरत आदिवासियों से मिलकर उनकी मांगों को लेकर उनसे चर्चा की गई है। उनकी मांग है कि पेसा कानून और वन संरक्षण अधिनियम(2022) में संशोधन किया जाए। उन्होंने कहा, “फिलहाल आदिवासियों को इसके बारे समझाया गया है। जिसके अनुसार कानून में जो संशोधन हैं उसके बारे में उच्च अधिकारियों को सूचित किया जाएगा। साथ ही आदिवासियों को बताया गया कि जन प्रतिनिधियों के माध्यम से सरकार और उच्च प्रतिनिधियों तक उनकी बात पहुंचाई जाएगी।”

पुलिस ग्रामीणों को नक्सली करार दे रही है

वहीं दूसरी ओर आंदोलन में शामिल लोगों का कहना है कि फिलहाल वह यहां से वापस जा रहे हैं। लेकिन आंदोलन जारी रहेगा। अगर सरकार नहीं मानी तो फिर से पैदल मार्च की जाएगी और साथ ही आंदोलन को जारी रखा जाएगा। आदिवासियों का आरोप है कि जब भी आदिवासी अबूझमाड़ से क्लेक्टर से मिलकर उन्हें ज्ञापन देने आते हैं तो उन्हें पुलिस उन्हें नक्सली बताकर जेल भेज देती है और उन्हें प्रताड़ित करती है। उनका कहना है कि अभी तक पुलिस अबूझमाड़ के कई निर्दोष आदिवासियों को नक्सली बताकर जेल भेज चुकी है।

आंदोलन नहीं होगा खत्म

दो दिवसीय आंदोलन का प्रतिनिधित्व कर रहे प्रदीप कुमार गोटा ने जनचौक से बात करते हुए कहा कि शुक्रवार को अपनी मांगों को लेकर लगभग एक हजार लोग नारायणपुर की तरफ बढ़े। इसी दौरान कुंकराझाड़ के पास हमें सुरक्षाबल ने रोकने की कोशिश की, लेकिन हमलोग नहीं रुके और अपनी मांगों को लेकर आगे बढ़ते रहे। उन्होंने बताया कि हम अपनी मांगों को लेकर रात में नारायणपुर के सब्जी मंडी बकरुपारा में रुके। सुबह क्लेक्टर से मिलकर हमने अपनी मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा।

क्लेक्टर ने कहा कि वह इस संबंध में उच्च अधिकारियों को इत्तला कर देंगे। प्रदीप ने बताया कि फिलहाल क्लेक्टर के आश्वसन के बाद आदिवासी वापस लौट गए हैं। लेकिन हमारा आंदोलन खत्म नहीं हुआ है। जबतक सरकार हमारी मांगों को नहीं मानेगी और कानून में संशोधन नहीं करेगी तब तक यह आंदोलन चलता रहेगा।

आदिवासियों को जंगल के छिन जाने का डर

नारायणपुर की अलग-अलग जगहों पर आदिवासी ग्रामीण अपनी मांगों को लेकर लंबे समय से धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। जिनमें मुख्य मांग सीआरपीएफ कैंफ न लगाना, सड़क का चौड़ीकरण न करना और पेसा कानून में बदलाव शामिल है। वहीं दूसरी ओर सरकार ‘कैंप-सड़क-कैंप’ योजना के तहत बस्तर को नक्सलवाद से मुक्त कराने के लिए सभी जगहों को सड़क से जोड़ने का काम कर रही है जिसका ग्रामीण लगातार विरोध कर रहे हैं।

पिछले सप्ताह जनचौक की तरफ से इसी तरह के आंदोलन की रिपोर्ट करने के दौरान ग्रामीणों का कहना था कि हमें वहीं सड़क दी जाए जो ग्रामीणों को लिए हो न कि पूंजीपतियों के लिए। ग्रामीणों का ऐसा मानना है कि नारायणपुर में लौह-अयस्क भरपूर मात्रा में है। ऐसे में अगर सड़क चौड़ी हो जाती है तो पूंजीपति सारे खनिज संपद्दा को ले जाएंगे और जंगल को पूरी तरह से बर्बाद करने के साथ-साथ आदिवासी संस्कृति को भी खत्म देगें, जिसे बचाने की जरुरत है।

(बस्तर से पूनम मसीह की रिपोर्ट।)

(यह खबर ”जनचौक ” से ली गई है. इसके कंटेंट के लिए हिन्द मित्र जिम्मेदार नहीं है. )

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