Film Review : सलाम वेंकी में विशाल जेठवा और काजोल की जबरदस्त एक्टिंग

मुंबई / संजय

Film Review : ‘‘डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी’’ की बीमारी से जूझ रहे मरणासन्न युवा शतरंज खिलाड़ी कोलावेन्नू वेंकटेश और उनकी मां की सत्य कथा पर आधारित है. वेंकटेश की मांग के अनुरूप इच्छा मृत्यु के लिए उनकी मां ने एक लड़ाई लड़ी थी. पर कानून ने इसकी इजाजत नहीं दी थी और 2004 में वैंकी की मृत्यु हो गयी थी.

इसी सत्य घटनाक्रम पर श्रीकांत मूर्ति ने एक उपन्यास ‘‘द लास्ट हुर्रे’ लिखा,जिस पर रेवती ने यह फिल्म बनायी है. रेवती मशहूर अभिनेत्री व निर्देशक हैं. 2004 में उन्होंने ‘एड्स’ के मुद्दे पर फिल्म ‘फिर मिेलेंगें’ निर्देशित की थी. अब ‘इच्छा मृत्यु’ की मांग की वकालत करने वाली फिल्म ‘‘सलाम वेंकी’’ लेकर आयी हैं.

रेवती अब तक संवेदनशील विषयों पर फिल्में निर्देशित करती आयी हैं. रेवती ने इस फिल्म को जरुरत से ज्यादा मेलेाड्रामा बनाकर लोगों को अवसाद ग्रस्त व रूलाने का काम किया है.

कहानीः

फिल्म ‘सलाम वेंकी’ सुजाता (काजोल) और उनके बेटे वेंकी (विशाल जेठवा) के इर्द गिर्द घूमती है.कहानी षुरू होती है 24 वर्षीय वेंकटेष उर्फ वेंकी के अस्पताल पहुॅचने से.डाक्टर षेखर (राजीव खंडेलवाल) उसका इलाज षुरू करता है और वेंकी की मां सुजाता से कहते हैं कि सब ठीक है. पता चलता है कि वेंकी बचपन से ही लाइलाज बीमारी डीएमडी यानी डय्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्ाफी से ग्रसित है.

इस बीमारी के चलते इंसान के मसल्स धीरे धीरे काम करना बंद कर देते हैं.डाक्टर यह भी बताते है कि अब वेंकी घर नही जा पाएगा.उसकी जिंदगी के कुछ दिन ही बचे हैं.अपनी जिंदगी के एक-एक पल के लिए मौत से लड़ रहा वेंकी जितनी भी जिंदगी है, वह उसके हर एक पल को जीना चाहता है.जबकि सुजाता अपने बेटे की बीमारी का दर्द झेलते हुए भी अपने बेटे की हर ख्वाहिष पूरी करती नजर आती हैं.

अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए व फिल्मों के दीवाने वेंकी हर किसी से मीठी बातें करते रहते हैं. वेंकी अपनी पसंदीदा नर्स( माला पार्वती ) को शतरंज खेलना सिखाते है.वह लंबे समय से बिछड़ी अपनी बहन षारदा(रिद्धि कुमार) के साथ उत्साहित हैं,जो पूरे दस साल बाद परिवार में वापस आ गई हैं. 24 साल की उम्र तक सुजाता ने वेंकी को सारी मुसीबतें व दर्द सहते हुए पाला है, उस ‘अम्मा’ को वेंकी हंसाने के साथ ही उस पर बार बार अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव भी डालता रहता है.

बीच बीच में सुजाता अपने अर्तंमन से भी बात करती रहती है. इंटरवल तक कहानी ठहरी सी रहती है. इंटरवल के बाद सुजाता अपने बेटे की ‘इच्छा मृत्यु’ और अंगदान की ख्वाहिष को पूरा करने के लिए एक वकील (राहुल बोस) की मदद लेती हैं.वकील साहब एक साहसी टीवी रिपोर्टर (अहाना कुमरा) की मदद लेेते हैं. मामला अदालत में इमानदार व सख्त जज के पास पहंुचता है,जहां सरकारी वकील (प्रियामणि) ‘इच्छा मृत्यु’ का विरोध करती है.

इस बीच यह भी पता चलता है कि वेंकी के पिता अपने बेटे का इलाज नही करना चाहते थे,जबकि सुजाता चाहती थी.इसलिए अपनी बेटी षारदा को अपने पास रखकर उनके पति ने उन्हे तलाक दे दिया था. दस साल तक षारदा अपनी मां को गलत समझकर अपने पिता के साथ रही,पर एक दिन उसके दादा ने सच बता दिया,तो वह अपनी मां व भाई वेंकी के पास आ जाती है.

निर्देशनः

कुछ कमियों के बावजूद फिल्म ‘‘सलाम वेंकी’’ एक अच्छी फिल्म कही जाएगी,जो हर एक अति महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाती है.मगर निर्देषक के तौर पर रेवती की कमजोर कड़ी यह रही कि उन्होेने इस फिल्म को इस कदर मेलोड्ामैटिक बना दिया कि मूल मुद्दा दबकर रह जाता है. इंटरवल तक सिर्फ अवसाद ही अवसाद है.

दूसरी कमजोरी यह रही कि लेखक व निर्देषक ने यह तो बताया कि कैसे वेंकी के पिता व सुजाता के पति ने साथ नही दिया,मगर सुजाता क्या करती हैं,और इलाज के लिए पैसा कहां से आता है,इस पर कोई रोषनी नहीं डाली गयी.

जब एक इंसान अस्पताल में पडा होता है,तो उसके सभी रिष्तेदार उसकी सेवा करते हुए थके ही नजर आते हैं. मगर यहां सुजाता व षारदा सभी पात्र हमेषा चमकते ही नजर आते हैं.इनके चेहरे की चमक कभी फीकी ही नही पड़ती.इंसान को रूलाना आसान काम होता है,वही निर्देषक रेवती ने पूरी फिल्म में किया है.

अभिनयः

अपने बेटे की जिदंगी के लिए कठिन परिस्थितियों से लड़ने वाली अकेली औरत के अलावा बेटे के दर्द से जूझती मां सुजाता के किरदार में काजोल का अभिनय भी अच्छा है. वैसे भी वह उत्कृष्ट अदाकारा हैं.

वहीं वेंकी के किरदार में विषाल जेठवा का अभिनय षानदार हैं.कई दृष्योें में अपने अभिनय से वह काजोल जैसी उत्कृष्ट अदाकारा को भी मात देते नजर आते हैं. जो इंसान अस्पातल के बिस्तर पर पड़ा हो ,उसके लिए महज अपनी आँखो  व चेहरे के भावों से अभिनय करना आसान नहीं होता. मगर विषाल जेठवा का कमाल का अभिनय किया है.

रानी मुखर्जी की फिल्म ‘मर्दानी’ में विलेन का किरदार निभा चुके विषाल जेठवा ने पहली बार एक सकारात्मक व इतना बड़ा किरदार निभाने का मौका पाया है. ओर उन्होेने अपने अभिनय से संदेष दे दिया कि लोग अब तक उनकी प्रतिभा की अनदेखी करते आए हैं. जब वेकी की आवाज चली जाती हे, तब महज हाथ के इषारे व आँखो  से जिस तरह का अभिनय विषाल जेठवा ने किया है,वह हर कलाकार के वष की बात नहीं हो सकती.यदि यह कहा जाए कि विषाल जेठवा व काजोल पूरी फिल्म को अपने कंधे पर लेकर चलते हैं,तो गलत नही होगा.

फिल्म ‘बेखुदी’ में काजोल के साथ अभिनय कर चुके कमल सदानह तीस वर्ष बाद इस फिल्म में छोटे से किरदार में नजर आए हैं और अपनी छाप छोड़ जाते हैं. इसके अलावा अन्य सभी कलाकारों ने भी छोटे किरदारो में ठीक काम किया है.

निर्देषकः रेवती

कलाकारः काजोल,विषाल जेठवाराजीव खंडेलवाल, अहना कुमरा, राहुल बोस, प्रकाश राजआमिर खान,अनंत नारायण महादेवनप्रियामणि,कमल सदानह,माला पार्वती, रिद्धि कुमार,

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