आरी तुतारी व्यंग : कुलदीप शुक्ला
रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाई पर वचन न जाई। राजा दशरथ ने कहा हमारे वंश में परंपरा रही है कि कोई भी अपने वचनों से नहीं फिर सकता है। राजा दशरथ विलाप करते रह गए और राम लक्ष्मण और सीता वन को चले गए। राजा दशरथ ने अपने पुत्र राम के वियोग में प्राण त्याग दिए !
जुबान संभाल के
ऐसे कई मामले सामने आते रहते है जिसमे सबसे चर्चित मामला ‘नूपुर शर्मा का है जिसमें विश्व के कई राष्ट्र ने विरोध जताये साथ ही उसको पार्टी पद से हटा दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने वाले नेताओं, मौलानाओं से लेकर टीवी एंकरों तक, सभी को शुक्रवार को कड़ा संदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट नेभाजपा नेता नूपुर शर्मा को बुरी तरह फटकारा भी लगाई ।
एक व्यंग कार की रचना से जोड़ कर ये बात रख रहा हूं
“सड़क पर फिसला और उनकी जुबान फिसल गई। वैसे दोनों घटनाओं में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है। सड़क पर जब हम फिसलते हैं, तो जरूरी नहीं कि उसके लिए स्वयं जिम्मेदार हों। जुबान पर भी कई बार हमारा बस नहीं होता और वह मुद्दे-बेमुद्दे फिसलन की शिकार हो ही जाती है। फिसल जाने के बाद ही हमें एहसास होता है कि अरे, हम तो फिसल गए। मंत्री,नेता ,प्रवक्ता या फिर प्रशानिक अधिकारी की जुबान फिसलना कोई रासायनिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि उन्होंने सिर्फ यही साबित किया है कि वह भी जुबान रखती हैं।”
जुबान फिसलती है, तो उसके फिसलने की आवाज दूर और देर तक गूंजती रहती है। हम जुबान से निकले लफ्जों को पकड़ कर लटक जाते हैं और कुछ भी समझना बंद कर देते हैं। सब अपनी-अपनी तरह जुबान से निकले शब्दों का विश्लेषण करते हैं। कोई ‘हाय राम’, तो कोई ‘हे राम’ कहकर जुबान को धिक्कारता है। आखिर जो फिसले न, वह जुबान ही क्या।
जुबान संभाल के
कौआ तुम्हारा कान ले गया!’