देश में हेपेटाइटिस-सी के मामले बढ़ रहे हैं। एक्सपर्ट इसे साइलेंट किलर कहते हैं क्योंकि इसका संक्रमण होने पर लक्षण कई सालों बाद दिखते हैं। इस वायरस को इसलिए भी खतरनाक कहा जाता है क्योंकि यह दूसरी कई बीमारियों को जन्म देता है। हेपेटाइटिस-सी का अगर समय पर इलाज नहीं कराते हैं तो लिवर सिरोसिस और कैंसर का खतरा बढ़ता है। ऐसे मरीजों की हालत बिगड़ने के लिए बड़ा रिस्क फैक्टर है शराब। रिसर्च में साबित हुआ है कि जो लोग दस साल तक रोजाना 80 एमएल से अधिक अल्कोहल लेते हैं उनमें लिवर कैंसर होने का खतरा 5 गुना ज्यादा होता है।
संक्रमण होने का खतरा दोगुना ज्यादा
आज वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे है, इस मौके पर फोर्टिस कैंसर इंस्टीट्यूट में आॅन्कोलॉजी विभाग के डायरेक्टर डॉ. राजीव बेदी ने बताया, अल्कोहल हेपेटाइटिस-सी के लिए एक बड़ा रिस्क फैक्टर है। जो मरीज संक्रमित हो चुके हैं, उसमें अल्कोहल हिपेटोसैल्युलर कार्सिनोमा नाम के लिवर कैंसर का खतरा बढ़ाता है। मैक्स हॉस्पिटल के आॅन्कोलॉजिस्ट डॉ. गौतम गोयल के मुताबिक, देश में हिपेटोसैल्युलर कार्सिनोमा के मामले बढ़ रहे हैं। हर 1 लाख पुरुष पर 7 और एक लाख महिलाओं पर 4 मामले सामने आ रहे हैं। 40 से 70 साल की उम्र वाले लोग इसके रिस्क जोन में हैं। इसलिए हेपेटाइटिस-सी को जांच की मदद से समय पहचानना और इलाज कराना जरूरी है।
पंजाब में मामले अधिक
दूसरे राज्यों के मुकाबले पंजाब में हेपेटाइटिस-सी के मामले अधिक हैं, क्योंकि यह उन राज्यों में शामिल है जहां अल्कोहल का सेवन अधिक किया जाता है। इसलिए ऐसे लोग जो लम्बे समय से लिवर की बीमारी से जूझ रहे हैं, हेपेटाइटिस बी या सी से संक्रमित हैं या फिर अल्कोहल अधिक लेते हैं उनमें लिवर कैंसर का खतरा अधिक है।