सरकार की कोशिशों का दिख रहा असर, त्योहारों से पहले खाद्य तेलों की कीमतों पर अंकुश

नई दिल्ली

खाद्य तेलों की लगातार तेज होती कीमतों पर अंकुश लगाने के मकसद से सरकार द्वारा बीते सप्ताह आयात शुल्क कम करने से दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में सरसों, मूंगफली, सोयाबीन और सीपीओ सहित लगभग तेल- तिलहन के भाव गिरावट के रुख के साथ बंद हुए.

बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) ने दो अलग-अलग अधिसूचनाओं में कहा कि 14 अक्टूबर से प्रभावी आयात शुल्क और उपकर में कटौती 31 मार्च, 2022 तक लागू रहेगी. कच्चे पाम तेल, कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी के तेल पर कृषि अवसंरचना विकास उपकर (एआईडीसी) भी कम किया गया है. कच्चे पाम तेल पर अब 7.5 प्रतिशत का कृषि अवसंरचना विकास उपकर लगेगा, जबकि कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल के लिए यह दर पांच प्रतिशत होगी. पहले उपकर 20 प्रतिशत था जबकि मूल सीमा शुल्क 2.5 प्रतिशत था.

सरकार के फैसले से नरम पड़े भाव

इस कटौती के बाद कच्चे पाम तेल पर प्रभावी सीमा शुल्क 8.25 प्रतिशत का होगा. कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी के तेल पर प्रभावी सीमा शुल्क क्रमशः 5.5- 5.5 प्रतिशत होगा. पहले इन तीन कच्चे तेलों पर प्रभावी शुल्क दर 24.75 प्रतिशत थी. इसके अलावा सूरजमुखी, सोयाबीन, पामोलिन और पाम तेल की परिष्कृत किस्मों पर मूल सीमा शुल्क मौजूदा 32.5 प्रतिशत से घटाकर 17.5 प्रतिशत कर दिया गया है. इन तेलों के रिफाइंड संस्करण पर एआईडीसी नहीं लगता है. सूत्रों ने कहा कि सरकार के इस फैसले के बाद देश में लगभग सभी तेल-तिलहनों के भाव अपने पिछले सप्ताहांत के मुकाबले समीक्षाधीन सप्ताहांत में नरम पड़े हैं.

उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे सरसों उत्पादक राज्यों में तेल मिलों और व्यापारियों को अपने सरसों का स्टॉक वेव पोर्टल पर खुलासा करने का निर्देश जारी होने के साथ उनके पास जो कुछ बचा खुचा स्टॉक था, उसे निकाल दिया गया. उन्होंने कहा कि वैसे बाजार के टूटने से सरसों पर दबाव है मगर इसमें मांग और आपूर्ति का अंतर बना हुआ है. यही वजह है कि आम गिरावट के रुख के बावजूद सरसों पर इसका कोई विशेष असर नहीं है क्योंकि इस तेल का और कोई विकल्प नहीं है. वैसे सरकार ने कैनोला के आयात शुल्क में कोई कमी नहीं की है.

जितने घटने चाहिए दाम, उतने नहीं हुए कम

सूत्रों ने कहा कि सरसों की अगली फसल के आने में लगभग एक महीने की देर हो सकती है क्योंकि बिजाई देर से हुई है. लेकिन उत्पादन दोगुना होने की संभावना है. उन्होंने कहा कि मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखकर सरसों का स्थायी रूप से लगभग 5-10 लाख टन सरसों का स्टॉक रखना चाहिये. मुंबई के कुछ बड़े ब्रांड की मांग के कारण सलोनी में सरसों का भाव 8,700 रुपये से बढ़ाकर 8,900 रुपये क्विंटल कर दिया गया है.

सूत्रों ने कहा कि बाजार टूटने से सोयाबीन तेल-तिलहन के दाम भी टूटे हैं. दूसरी ओर सोयाबीन के तेल रहित खल (डीओसी) की मांग कमजोर है जिसके कारण भी समीक्षाधीन सप्ताहांत में सोयाबीन तेल-तिलहन भाव पर दबाव बना रहा. सूत्रों ने कहा कि आयात शुल्क में कमी के कारण समीक्षाधीन सप्ताह में सीपीओ और पामोलीन तेल के भाव में भी गिरावट आई लेकिन जिस मात्रा में शुल्क में कमी की गई, उसी अनुपात में इन तेलों की कीमतों में गिरावट नहीं है क्योंकि शुल्क में कमी किये जाने के बाद विदेशों में इनके भाव बढ़ा दिए गए.

उन्होंने कहा कि पाम तेल पर प्रति किलो लगभग 13 रुपये और सोयाबीन पर 17 रुपये प्रति किलो कमी की गई है. शुल्क में कमी किये जाने के बाद विदेशों में सीपीओ का भाव 1,260 डॉलर प्रति टन से बढ़ाकर 1,350 डॉलर प्रति टन कर दिया गया जबकि सोयाबीन डीगम का भाव 1,370 डॉलर से बढ़ाकर 1,450 डॉलर प्रति टन कर दिया गया.

किसानों को हो सकता है नुकसान

उन्होंने बताया कि सरसों के बारे में साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता ने भी कहा कि शुल्क कटौती का यह उचित समय संभवत: नहीं था क्योंकि यह किसानों का मूंगफली और सोयाबीन फसल को मंडी में लाने का समय है और भाव टूटने से किसानों की आय को नुकसान हो सकता है.

सूत्रों ने बताया कि बीते सप्ताह सरसों दाने का भाव 150 रुपये की गिरावट दर्शाता 8,730-8,755 रुपये प्रति क्विंटल रह गया, जो पिछले सप्ताहांत 8,870-8,895 रुपये प्रति क्विंटल था. सरसों दादरी तेल का भाव पिछले सप्ताहांत के मुकाबले 210 रुपये घटकर समीक्षाधीन सप्ताहांत में 17,550 रुपये क्विंटल रह गया. सरसों पक्की घानी और कच्ची घानी तेल की कीमतें 45-45 रुपये घटकर क्रमश: 2,655-2,705 रुपये और 2,740-2,850 रुपये प्रति टिन रह गईं.

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