वन्दना कटारिया हम शर्मिंदा हैं….गिरीश पंकज 

टिप्पणी/गिरीश पंकज 

वन्दना कटारिया हम शर्मिंदा हैं….
हमारे देश में अभी भी ऐसे अनेक लोग हैं, जो मानसिक रूप से बेहद पिछड़े हैं । उनकी नीचताभरी हरकतें देख कर मन पीड़ा से भर जाता है। टोक्यो ओलिम्पिक में हैट्रिक मारने वाली उत्तराखंड की हॉकी खिलाड़ी वंदना कटारिया के घर के बाहर कुछ तथाकथित ऊँची जाति के निम्नस्तरीय लोगों ने पटाखे फोड़े, नारे लगाए, और यह कहा कि महिला हॉकी टीम में कुछ है दलित खिलाड़ी शामिल हैं, इस कारण हॉकी में हार हुई। यह बयान घोर निंदनीय है । इस तरह की बातें कहने वाले लोगों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। उन्हें जेल भेजना चाहिए। किसी भी खिलाड़ी की जाति या धर्म देखना शर्मनाक हरकत है। पता नहीं कब हमारे समाज में वह चेतना आएगी, जब हम मनुष्य को मनुष्य के रूप में ही देखने की कोशिश करेंगे । ऊंची-नीची जातियों के फेर में पड़ने वाले लोग समाज की समरसता को बाधित करते हैं । वंदना कटारिया जैसी श्रेष्ठ खिलाड़ी के साथ इस तरह की हरकत करना उसे हतोत्साहित करने जैसा है । मुझे लगता है, पूरे देश को वंदना कटारिया से माफी मांगनी चाहिए और कहना चाहिए, वंदना हम शर्मिंदा हैं /घटिया लोग जिंदा हैं। तुम चिंता मत करो। तुम तो अपना खेल जारी रखो। यह सोच कर कि ये मुट्ठी भर पागल, मूर्ख हैं। ईश्वर! इन्हें माफ करना क्योंकि यह नहीं जानते कि यह क्या कर रहे हैं। कबीर ने कहा है जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान । उसी तर्ज पर हमें यह कहना होगा कि जात न पूछो खिलाड़ी की, देख लीजिए खेल। जाति धर्म से ऊपर उठकर, रखो तुम सभी से मेल। लेकिन क्या ऐसा हो सकेगा? आने वाले अनेक वर्षों में यह संभावना नजर नहीं आती। समझ में नहीं आता कि इस हाईटेक युग में भी कैसे हमारे समाज का एक वर्ग है वैचारिक रूप से घुटनाटेक बना हुआ है।

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