बचपना सबको सताने के लिए है,
आग से पानी बुझाने के लिए है।
आँसुओं का मोल क्या है जान लो तुम,
मार से खुद को बचाने के लिए है।
बालपन में मालिनी का प्यार पाला,
बाग से दो फल चुराने के लिए है।
माचिसों की तीलियों की आग धीमी,
प्यार से बीड़ी जलाने के लिए है।
नाज़ है हमको हमारी दोस्ती पर,
पीठ पर मुक्के जमाने के लिए है।
आँख की कीमत तुम्हें कैसे बतायें,
यार से नैना लड़ाने के लिए है।
वालिदा ने सीने का जो ‘बल’ पिलाया,
ज़िन्दगी को आज़माने के लिए है।
(आग से पानी बुझाना-विपरीत कार्य
करना,वालिदा-माँ)
बल्लू-बल