सुविचार
जय माँ
संपूर्ण रूप से इंद्रियों को जानने वाला परमात्मा है लेकिन वास्तविक रूप से इंद्रियों से रहित है, जितेंद्रिय है, वह निराकार है ,वह स्वयं सब को खिलाने वाला है , आसक्ति रहित प्रसन्नता बांटने वाला , सबको सुनते हैं ,सब को देखते हैं ,उनका कोई रूप नहीं है, निराकार है ,लेकिन वह धरती पर सब जगह है,
मनुष्य आकृति की दुनिया में होता है इसलिए मूर्तिमान स्वरूप का ही ध्यान करते -करते उस स्वरूप तक पहुंच जाता है, हम भगवान के हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल देखते हैं तो यह समझ में आता है कि गदा लिए हुए हैं उनके पास सैन्य शक्ति है, शंख लिए हुए उन्ही का उद्घोष हो रहा है , कमल लिए हुए हैं सारे संसार में वही प्रसन्नता खिला रहे हैं ,और वही सृष्टि चक्र को चला रहे हैं । वह संसार के हर कण में है।
कभी राम बनकर,तो कभी कृष्ण बनकर , आदि शक्ति के रूप में, माँ के रूप में ,और गुरु के रूप में परमात्मा हमेशा हमारे साथ होते है।
गुरु चरणों मे नमन
कल्पना शुक्ला