ध्यानचंद के भरोसे पर खरा उतरा छत्तीसगढ़ !

राष्ट्रीय खेल दिवस-29 अगस्त पर छत्तीसगढ़ में ध्यानचंद की यादों के बिखरे पन्नों को समेटती यह विशेष समीक्षात्मक रिपोर्ट...

रायपुर / डॉ. कमलेश गोगिया

वर्तमान की भाव-भूमि से भविष्य के गर्भ में छिपे हीरे को विरले ही देख पाते हैं और ऐसे ही विरले थे हॉकी के जादुगर मेजर ध्यानचंद जिनके खेल कौशल ने हिटलर को भी हैरत में डाल दिया था। यह बात पूरी दुनिया जानती है। मेजर ध्यानचंद छत्तीसगढ़ में हॉकी की असीम संभावनाओं से अवगत थे और उनका विश्वास था कि छत्तीसगढ़ में हॉकी की प्रतिभाएं अंतर्राष्ट्रीय खेल क्षितिज पर चमक सकती हैं। ध्यानचंद की इन उम्मीदों को पंख लगने में भले ही कुछ दशक लगे, लेकिन उनके भरोसे और उनकी दूरदर्शिता पर छत्तीसगढ़ खरा अवश्य उतरा। अंतर्राष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं से लेकर ओलंपिक तक में छत्तीसगढ़ के खिलाड़ियों ने राज्य और देश का प्रतिनिधित्व किया। एयरमेन बेस्टियन, रेणुका यादव, मृणाल चौबे, रेणुका राजपूत, विन्सेंट लकड़ा, नीता डुमरे सहित अनेक सितारे चमके। छत्तीसगढ़ में ध्यानचंद के अनेक बिखरे पन्ने हैं जिन्हें राष्ट्रीय खेल दिवस 29 अगस्त के मौके पर समेटने का प्रयास है वरिष्ठ खेल पत्रकार एवं मैट्स यूनिवर्सिटी रायपुर के कला एवं मानविकी अध्ययनशाला, ह्दिी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कमलेश गोगिया की यह विशेष रिपोर्ट…

ध्यानचंद की छत्तीसगढ़ यात्रा की अनेक स्वर्णिम यादे हैं जो खेल पत्रकारिता के दौरान बीते 25 वर्षों में समय-समय पर संकलित करने को मिलीं। ध्यानचंद का छत्तीसग़ढ़ से विशेष संबंध रहा है और न सिर्फ ध्यानचंद बल्कि उनके पुत्र ओलंपियन अशोक ध्यानचंद जी का भी…! मेजर ध्यानचंद हॉकी की नसर्री राजनांदगांव और रायपुर में आयोजित की जाने वाली हॉकी की ऐतिहासिक खेल स्पर्धाओं व यहां के खिलाड़ियों के खेल प्रेम से खासा प्रभावित थे। राजनांदगांव के खेल इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण वर्ष 1967-68 भी रहा है जब महंत सर्वेश्वर दास स्मृति अखिल भारतीय चैलेंज कप हॉकी प्रतियोगिता का रजत जयंती वर्ष मनाया जा रहा था। यह प्रतियोगिता राजनांदगांव और राज्य की की सबसे प्रतिष्ठित प्रतियोगिताओं में से एक है जिसकी शुरुआत आजादी के पूर्व 1941 में हुई थी। वर्ष 1991-92 में स्वर्ण जयंति के अवसर पर निकाली गई स्मारिका में उल्लेख मिलता है- ’तब इस प्रतियोगिता ने 25 गौरवशाली वर्ष पूरा कर लिया था। वायुयान से खिलाड़ियों पर फूलों की वर्षा की गई थी। इस समय की दूसरी उल्लेखनीय विशिष्टता रही हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का उल्लासपूर्ण सम्मान किया जाना। 2 जनवरी 1971 को विश्व के श्रेष्ठतम हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का सम्मान किया गया था। इस अवधि में ओलंपियन रणधीर सिंह का भी सम्मान किया जाना विशेष उपलब्धि थी।’
इन तथ्यों से जाहिर है कि हॉकी की इस महान शख्सियत ने राजनांदगांव का खेल गौरव बढ़ाया था। इतना ही नहीं ध्यानचंद राजनांदगांव को लेकर यह विश्वास भी जताते थे कि यहां से हॉकी के प्रतिभावान खिलाड़ी निकलेंगे। इतिहास के पन्नों में इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि मेजर ध्यानचंद सन 1937 में रायपुर आए थे। तब उन्होंने उस समय की प्रतिष्ठित सारंगढ़ दरबार हॉकी प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था। यह प्रतियोगिता राज्य की सबसे प्राचीन हॉकी प्रतियोगिता कहलाती है। 1914 में यह प्रतियोगिता प्रारंभ हुई थी। राजनांदगांव के राजा रणजीत सिंह ने इस प्रतियोगिता के लिए ट्रॉफी प्रदान की थी। इस प्रतियोगिता में बैरन बाजार के मुस्लिम क्लब की भूमिका अहम मानी जाती है। 1937 में ध्यानचंद अपने मित्र लतीफ साहब के आमंत्रण पर रायपुर आए थे। एथलेटिक क्लब द्वारा राजधानी में आयोजित की जाने वाली नेहरू स्मारक अखिल भारतीय स्वर्ण कप हॉकी प्रतियोगिता में सन 1972 में भी ध्यानचंद रायपुर आए थे। यहां वे चार दिनों तक रुके थे और बैरनबाजार के एक मकान में उनके आवास की व्यवस्था की गई थी। रायपुर का नेताजी सुभाष स्टेडियम मैदान मेजर ध्यानचंद के पत्र अशोक ध्यानचंद के लिए भी सौभाग्यशाली रहा है, उन्हें खेल कैरियर का पहला ब्रेक इसी मैदान में खेली जा रही नेहरू स्मारक अखिल भारतीय गोल्ड कप हॉकी प्रतियोगिता से मिला था, उन्हें इंडियन एयरलाइंस से कॉल आया था और तब वे झांसी की टीम का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
मेजर ध्यानचंद के प्राचीन छायाचित्र को वर्षों पुरानी स्मारिकाओं में खोजने का जुनून हो या फिर अनुभवी व पुराने खेल प्रेमियों से जानकारी जुटाने का मामला, इन महत्वपूर्ण तथ्यों के संकलन के दौरान मिलने वाले रोमांच को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। यह बीस साल पहले की खेल पत्रकारिता का मामला हो या फिर आज पुनः इन तथ्यों को संकलित करने का प्रयास, आज जब इन प्राचीन तथ्यों को खंगालकर देखते हैं तो यह पता चलता है कि ध्यानचंद ने 50 साल पहले जो विश्वास जताया था छत्तीसगढ़ राज्य औ राजनांदगांव की हॉकी नर्सरी से, उस पर राज्य के खिलाड़ी सौ फीसदी खरे उतरे हैं। राजनांदगांव ने एयरमेन बेस्टियन जैसे प्रतिभावान खिलाड़ी दिये जिन्होंने ओलंपिक में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया। इसके सालों बाद राजनांदगांव की नई पीढ़ी के रूप में रेणुका यादव ने रियो ओलंपिक-2016 में राज्य और देश का प्रतिनिधित्व किया और टीम की सबसे युवा खिलाड़ी बनीं। साथ ही वे छत्तीसगढ़ की पहली महिला ओलंपियन बनीं। सबा अंजुम, मृणाल चौबे, रेणुका राजपूत सहित अनेक प्रतिभावान खिलाड़ियों ने हॉकी की अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में छत्तीसगढ़ और भारत का प्रतिनिधित्व किया और मान बढ़ा रहे हैं। महिला हॉकी को प्रतिष्ठित करने में रायपुर की अंतर्राष्ट्रीय महिला हॉकी खिलाड़ी नीता डुमरे के योगदान को भी विस्मृत नहीं किया जा सकता।
अतीत के पन्नों की तरफ लौटें तो एक नाम सामने आता है विन्सेंट लकड़ा का जिन्होंने वर्ल्ड कप में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। हां, यह बात जरूर खलती है कि ऐसी शख्सियतों की खैर-खबर में ही सालो लगा दिये गये बावजूद इसके कि ये शख्सियतें नजर के सामने ही रहती थीं। बहरहाल, आज जब हम अतीत के गौरवशाली पन्नों को पलटकर लौटते हुए आज तक पहुंचते हैं तो यह प्रमाणित होता है कि ध्यानचंद ने छत्तीसगढ़ की भूमि में खेल के स्वर्णिम भविष्य की झलक देख ली थी। उन्हंे यहां से प्रतिभावान खिलड़ियों के निकलने की पूरी उम्मीदें थीं। कुछ नाम छूट सकते हैं जिन्होंने हॉकी को प्रतिष्ठित करने में अहम योगदान दिया। पर्दे के पीछे छिपे इन नामों को अवश्य ही स्वर्णिम इतिहास में जगह मिलनी चाहिए। निष्कर्ष के तौर पर हम यह कह सकते हैं कि ध्यानचंद की दूरदर्शिता और उनकी उम्मीदों पर छतीसगढ़ खरा अवश्य उतरा। खेल के जानकारों ने इस बात पर विशेष जोर दिया है कि जिन खेल सितारों के बल हमारा राज्य और देश पूरे विश्व में गौरवान्वित हो रहा हो, उनकी उपेक्षा न करें, उन्हें वह सम्मान दे जो भावी पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक बने। 29 अगस्त को मेजर ध्यानचंद के जन्मदिवस के अवसर पर प्रतिवर्ष मनाये जाने वाले राष्ट्रीय खेल दिवस की यही सार्थकता होगी।

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