दुर्गाजी के जो प्रतिदिन अष्टोत्तरशतनामका पाठ करता है, उसके लिये तीनों लोकों में कुछ भी असम्भ नहीं

अध्यात्म

आज की कड़ी में ‘दुर्गाजीके इस अष्टोत्तरशतनाम का पाठ को पाठकों के लिए प्रस्तुत करने का एक प्रयास है | जगज्जननी माँ भगवती श्री दुर्गा जी की कृपा से एवं गुरु जी श्री संकर्षण शरण जी के आशीर्वचनों से वही सप्तशती संक्षिप्त पाठ-विधिसहित पाठकों के समक्ष प्रस्तुत की जा रही है। इसमें कथा-भाग तथा अन्य बातें वे ही हैं, जो श्री दुर्गा सप्तशती एवं ‘कल्याण’ के विशेषाङ्क ‘संक्षिप्त मार्कण्डेय ब्रह्मपुराणाङ्क’ में प्रकाशित हो चुकी हैं।  वही सप्तशती भाग एक के क्रम में संक्षिप्त पाठ विधि विधान सहित एवं अर्थ श्लोक सहित दुर्गा जी की महिमा को प्रति दिन दैनिक हिन्द मित्र के वेबसाइट https://dainikhindmitra.com/ पर पाठकों के लिए प्रस्तुत करने का एक प्रयास है ।

॥ ॐ श्रीदुर्गायै नमः ॥

श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्

ईश्वर उवाच

  • शतनाम प्रवक्ष्यामि शृणुष्व कमलानने । यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती ॥ १ ॥
  • ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी । आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी ॥ २ ॥
  • पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः । मनोबुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः ॥ ३ ॥
  • सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी l अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः ॥ ४ ॥
  • शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा । सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी ॥ ५ ॥
  • अपर्णानकवर्णा च पाटला पाटलावती । पट्टाम्बरपरीधाना कलमञ्जीररञ्जिनी ॥ ६ ॥
  • अमेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी । वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता ॥ ७ ॥ ॥
  • ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा । चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः ॥ ८ ॥
  • विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा । बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना ॥ ९ ।।
  • निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी । मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी ।। १० ।।
  • सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी । सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा ॥ ११ ।।
  • अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी । कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः ।। १२ ।।
  • अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा । महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ॥ १३ ॥
  • अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी । नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी ।। १४ ।।
  • शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी । कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी ।। १५ ।।
  • य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम् । नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति ॥ १६ ॥
  • के धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च । चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम् ॥ १७ ॥
  • कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम् । पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम् ॥ १८ ॥
  • तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि । राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात् ॥ १९ ॥
  • गोरोचनालक्तककुङ्कुमेन सिन्दूरकर्पूरमधुत्रयेण l विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः ॥ २० ॥
  • भौमावास्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते । विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम् ॥ २१ ॥

इति श्रीविश्वसारतन्त्रे दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं समाप्तम्।

हिंदी अनुवाद 

शंकरजी पार्वतीजीसे कहते हैं- कमलानने ! अब मैं अष्टोत्तरशत नामका वर्णन करता हूँ, सुनो, जिसके प्रसाद (पाठ या श्रवण) मात्रसे परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं ॥ १ ॥

१ ॐ सती, २ साध्वी, ३ भवप्रीता (भगवान् शिवपर प्रीति रखनेवाली), ४ भवानी, ५ भवमोचनी (संसारबन्धनसे मुक्त करनेवाली), ६ आर्या, दुर्गा, ८ जया, ९ आद्या, १० त्रिनेत्रा, ११ शूलधारिणी, १२ पिनाकधारिणी, १३ चित्रा, १४ चण्डघण्टा (प्रचण्ड स्वरसे घण्टानाद करनेवाली), १५ महातपाः (भारी तपस्या करनेवाली), १६ मनः (मनन-शक्ति), १७ बुद्धिः (बोधशक्ति), १८ अहंकारा (अहंताका आश्रय), १९ चित्तरूपा, २० चिता, २१ चितिः (चेतना), २२ सर्वमन्त्रमयी, २३ सत्ता (सत्-स्वरूपा), २४ सत्यानन्दस्वरूपिणी, २५ अनन्ता (जिनके स्वरूपका कहीं अन्त नहीं), २६ भाविनी (सबको उत्पन्न करनेवाली), २७ भाव्या (भावना एवं ध्यान करने योग्य), २८ भव्या (कल्याणरूपा), २९ अभव्या (जिससे बढ़कर भव्य कहीं है नहीं), ३० सदागतिः, ३१ शाम्भवी (शिवप्रिया), ३२ देवमाता, ३३ चिन्ता, ३४ रत्नप्रिया, ३५ सर्वविद्या, ३६ दक्षकन्या, ३७ दक्षयज्ञविनाशिनी, ३८ अपर्णा (तपस्याके समय पत्तेको भी न खानेवाली), ३९ अनेकवर्णा (अनेक रंगोवाली), ४० पाटला (लाल रंगवाली), ४१ पाटलावती (गुलाबके फूल या लाल फूल धारण करनेवाली), ४२ पट्टाम्बरपरीधाना (रेशमी वस्त्र पहननेवाली), ४३ कलमररञ्जिनी (मधुर ध्वनि करनेवाले मञ्जीरको धारण करके प्रसन्न रहनेवाली), ४४ अमेयविक्रमा (असीम पराक्रमवाली), ४५ क्रूरा (दैत्योंकि प्रति कठोर), ४६ सुन्दरी, ४७ सुरसुन्दरी, ४८ वनदुर्गा, ४९ मातमी ५० मतङ्गमुनिपूजिता, ५१ ब्राह्मी, ५२ माहेश्वरी, ५३ ऐन्द्री, ५४ कौमारी, ५५ वैष्णवी, ५६ चामुण्डा, ५७ वाराही, ५८ लक्ष्मीः ५९ पुरुषाकृतिः, ६० विमला, ६१ उत्कर्षिणी, ६२ ज्ञाना, ६३ क्रिया, ६४ नित्या, ६५ बुद्धिदा, ६६ बहुला, ६७ बहुलप्रेमा, ६८ सर्ववाहनवाहना, ६९ निशुम्भशुम्भहननी, ७० महिषासुरमर्दिनी ७१ मधुकैटभहन्त्री, ७२ चण्डमुण्डविनाशिनी, ७३ सर्वासुरविनाशा, ७४ सर्वदानवघातिनी, ७५ सर्वशास्त्रमयी, ७६ सत्या, ७७ सर्वास्त्रधारिणी , ७८ अनेकशस्त्रहस्ता, ७९ अनेकास्त्रधारिणी, ८० कुमारी, ८१ एककन्या, ८२ कैशोरी, युवती, ८४ यतिः, ८५ अप्रौढा, ८६ प्रौढा, ८७ वृद्धमाता, ८८ बलप्रदा, ८९ महोदरी, ९० मुक्तकेशी, ९१ घोररूपा, ९२ महाबला, ९३ अग्निज्वाला, ९४ रौद्रमुखी, ९५ कालरात्रिः ९६ तपस्विनी, ९७ नारायणी, ९८ भद्रकाली, ९९ विष्णुमाया, १०० जलोदरी, १०१ शिवदूती, १०२ कराली, १०३ अनन्ता (विनाशरहिता), १०४ परमेश्वरी, १०५ कात्यायनी, १०६ सावित्री, १०७ प्रत्यक्षा, १०८ ब्रह्मवादिनी ॥ २-१५ ॥

देवी पार्वती! जो प्रतिदिन दुर्गाजीके इस अष्टोत्तरशतनामका पाठ करता है, उसके लिये तीनों लोकोंमें कुछ भी असाध्य नहीं है ॥ १६ ॥ वह धन,धान्य, पुत्र, स्त्री, घोड़ा, हाथी, धर्म आदि चार पुरुषार्थ तथा अन्तमें सनातन मुक्ति भी प्राप्त कर लेता है ॥ १७ ॥ कुमारीका पूजन और देवी सुरेश्वरीका ध्यान करके पराभक्ति के साथ उनका पूजन करे, फिर अष्टोत्तरशत नामका पाठ आरम्भ करे ॥ १८ ॥ देवि ! जो ऐसा करता है, उसे सब श्रेष्ठ देवताओंसे भी सिद्धि प्राप्त होती है। राजा उसके दास हो जाते हैं। वह राज्यलक्ष्मीको प्राप्त कर लेता है ॥ १९ ॥ गोरोचन, लाक्षा, कुङ्कुम, सिन्दूर, कपूर, घी (अथवा दूध), चीनी और मधु – इन वस्तुओंको एकत्र करके इनसे विधिपूर्वक यन्त्र लिखकर जो विधिज्ञ पुरुष सदा उस यन्त्रको धारण करता है, वह शिवके तुल्य (मोक्षरूप) हो जाता है ॥ २० ॥ भौमवती अमावास्याकी आधी रातमें, जब चन्द्रमा शतभिषा नक्षत्रपर हों, उस समय इस स्तोत्रको लिखकर जो इसका पाठ करता है, वह सम्पत्तिशाली होता है ।। २१ ।।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here