गुरुबालक दास जी की जयंती सतनाम धाम खरोरा में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया

रायपुर,
बाबा गुरु घासीदास जी के द्वितीय पुत्र सतक्रांति के अग्रदूत, राजागुरु, धर्मगुरु, सत्य अहिंसा के संदेशक  बलिदानी राजा गुरु बालक दास जी की जयंती सतनाम धाम राजीव नगर खरोरा में बडी ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया ।जयंती के अवसर पर दोपहर को महिलाओं के द्वारा मटका फोड़ व कुर्सी दौड़ का भी आयोजन किया गया एवं सायं कालीन समय में  सतनाम धाम गुरुद्वारा में परिक्रमा कर बाबा गुरु घासीदास जी व गुरु बालक दास जी के गुरुचरणों पर दीप प्रज्वलित कर मंगल आरती वंदन कर आशीर्वाद लिया। तथा बेलटुकरी से आए हुए मंगल भजन टोलियों के द्वारा बाबा जी के सतनाम संदेशों को संगीत के माध्यम से रसपान कराया गया ।
 इस अवसर पर समाज के वरिष्ठ दौवा राम बंजारे ने आयोजन के महत्व तथा समाज को कैसे संगठित किया जाए इस पर समाज के युवाओं, महिलाओं को संगठित हेतु प्रेरित किया गया तथा बाबा जी के संदेशों को उनके सतनाम आंदोलन को एवं सतनाम धर्म के बारे में विस्तार से बताया। वहीं कार्यक्रम को संबोधित करते हुए नारी शक्ति के रूप में हेमा गिलहरे ने नारी शक्ति को जागृत करने के लिए प्रेरित करते हुए बाबा गुरु बालकदास जी के जीवन चरित्र को बताते हुए कहा   गुरु बालक दास जी गिरौदपुरी में अष्टमी के दिन जन्म लिया तथा गुरु घासीदास जी से प्रभावित होकर  सतनाम आंदोलन के माध्यम से  जनमानस को  विचारो से संस्कारित किया तथा  आम जनता बाबाजी के सरल सादगी विचार चिंतन, सद्गुण से प्रभावित होकर जुड़ते  चले गए ।बाबा गुरु बालक दास जी ने रूढ़िवाद, अंधविश्वास, छुआछूत, अज्ञानता को दूर करने का प्रयास किया । गुरु बालक दास जी ने सामंती साम्राज्य एवं झूठी मान्यताओं रूढ़ीवादी परंपराओं का खुला विरोध कर लोगों को जागृत किया ।
 गुरु बालक दास जी ने सामाजिक संगठन सामत प्रथा व सतनाम आंदोलन से लोगों को जाति पाती को छोड़कर जाति छोड़क समाज जोडक  शिक्षा दिया। उन्होंने बताया गुरु बालक दास जी को अंग्रेज शासक कर्नल इग्नू के द्वारा “राजा” की पदवी से नवाजा गया जिसमें सोने का मुकुट, सोने का मूठ लगा तलवार, भाला, पट्टा, एक हाथी और कुछ सिपाही भेंट कर सम्मानित किया तथा घुड़सवार ,अंगरक्षक की अनुमति मिली ।  समाज में नारी जाति के साथ धर्म की आड़ में कैसे सामाजिक शोषण हो रहा था इस पर उन्होंने प्रकाश डाला ,महिलाओं को सती प्रथा की मानसिक बीमारी गुलामी से स्वतंत्र कर विधवा विवाह चूड़ी प्रथा प्रारंभ किया। समाज में नारी को सम्मान अधिकार दिलाने का बाबा ने भरसक प्रयास किया ।कार्यक्रम को जितेंद्र कोसरिया ने संबोधित करते हुए समाज कल्याण में बाबा गुरु घासीदास जी के योगदान एवं  गुरु बालक दास जी के  योगदान पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि सतनाम आंदोलन एवं सतनामीओं के इतिहास को शिक्षा के अभाव में इतिहास के पन्नों में अंकित नहीं हो पाया तथा दूसरी ओर विपरीत नजरिया के कारण सवर्ण लेखकों की लेखनी की स्याही इसे पोत ना सकी ।उन्होंने हमें अपनी ताकत को पहचाने एवं विघटनकारी कट्टरपंथियों संप्रदायिक ताकतों को जड़ से उखाड़ फेंकने का आह्वान किया तथा बिकाऊ समाज के बदले टिकाऊ समाज बनाने पर बल दिया।
वही श्यामसुंदर बांधे ने सतनाम संस्कृति को कर्मकांड के बदले कर्तव्य बोध के पाठ पढ़ाने तथा प्रेम और भाईचारा की अविरल गति से मानव समाज को प्रवाहित  होने तथा सतधर्म को ही मानव का मूलधर्म बताया ।  कार्यक्रम का संचालन मनविश्राम गिलहरे व आभार प्रदर्शन भोजराम मनहरे प्रदेश सचिव प्रगतिशील छत्तीसगढ़ सतनामी समाज युवा प्रकोष्ठ ने किया । इस अवसर पर महिलाओं एवं बालिकाओं के द्वारा मटका फोड़ एवं कुर्सी दौड़ का आयोजन किया जिसमें मटका फोड़ में जयश्री बांधे प्रथम ,मोहर बाई गिलहरे द्वितीय, हेमा गिलहरे  तृतीय व हेमा रानी बांधे तथा कुर्सी दौड़ में हेमलता पाटिल प्रथम, गणेशी आडील वहीं बालिका में राधिका गिलहरे प्रथम, विभा बांधे द्वितीय को श्रीफल देकर सम्मानित किया गया। अवसर पर मंडल दास गिलहरे बद्रीनाथ मनहरे, गणेश ढीढी, एस.एस. बांधे,प्रकाश गिलहरे,भोजराम मनहरे प्रकाश गिलहरे, गणेश कुर्रे, संतु जांगड़े भंडारी ,संत नवरंगे, प्रवीण गिलहरे,जितेंद्र कोसरिया, रामकुमार कोसरिया, डॉ गौतम, दयाराम बंजारे,मनविश्राम गिलहरे,बालकदास बंजारे,संदीप कोशले वैशाखीन बाई, शांति,शुशीला,प्रेमलता मनहरे ,हिमानी रात्रे, जुगाला रात्रे, केजा बाई, तारन ,नीरा, शकुंतला प्रभा ,उषा ,संतरा, दुलारी, दीपमाला ,पिंकी कुर्रे,मोगरा ,हेमिन, समरिन, वैशाली, श्वेता, विभा ,प्रगति, पुष्पा, निधि, आदि समाज के सैकड़ों लोग उपस्थित थे।

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