अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस : जल, थल व वायु कोई भी क्षेत्र महिलाओं  के पहुंच से दूर नहीं

कुलदीप शुक्ला 

आज पुरे विश्व में महिलाओं के सम्मान में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मनाएं जाते हैं । लेकिन आज भी समाज पुरुष प्रधान के राह पर चल रही है। जो प्राचीन काल से आ रही कुरिती से जकडी हुई  है। महिलाओं को आज भी कुदृष्टि से देखा जाता है। महिलाओं के प्रति अपने विचार, व्यवहार, देखने और सोचने की दृस्टि को पुरुष प्रधान समाज के द्वारा बदलने से महिलाओं की सुरक्षा में अहम कदम होगा। महिलायें सदा त्याग और तपस्य की मूरत रही |

प्राचीन काल से वर्तमान समय तक महिलों की स्थिति 

प्राचीन काल से आधुनिक काल यानि वर्तमान समय तक भारत में महिलों की स्थिति परिवर्तनशील रही है| हमारा समाज प्राचीन काल से ही पुरुष प्रधान रहा है |  महिला का शोषण सिर्फ पुरुष वर्ग ने ही किया, पुरुष से ज्यादा तो एक महिला  ने दूसरी महिला या महिला ने खुद अपने ऊपर अत्याचार किया है| पुरुष की अहम ,मतवालापन के कारण या महिला की अशिक्षा, नम्रता और महिला की सरलता के कारण उसे प्रताड़ित, अपमानित और उपेक्षित होना पड़ा|

हम इतिहास में महिला की स्थिति पे नजर डाल लें फिर वर्तमान स्थिति का मूल्यांकन करेंगे| रायबर्न के अनुसार- “महिला ने ही प्रथम सभ्यता की नींव डाली है और उन्होंने ही जंगलों में मारे-मारे भटकते हुए पुरुषों को हाथ पकड़कर अपने स्तर का जीवन प्रदान किया तथा घर में बसाया|”

भारत में महिलाओं को उच्च दर्जा दिया गया है, हिन्दू आदर्श के अनुसार नारी को अर्धांगिनी कही गयीं हैं| माता का आदर भारतीय समाज की विशेषता है|  भारतीय समाज में ईश्वरीय शक्ति दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती आदि नारी शक्ति, धन, ज्ञान का प्रतीक मानी गयी हैं तभी तो अपने देश को हम भारत माता कहकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं|

युगों से महिलाओं की स्थिति भिन्न भिन्न रहा -वैदिक युग सभ्यता और संस्कृति की दृष्टि से महिलाओं की चरमोत्कर्ष का काल था, उसकी प्रतिभा, तपस्या और विद्वता सभी विकासोन्मुख होने के साथ ही पुरुषों को परास्त करने वाली थी|

उस समय महिलाओं  की स्थिति उनके आत्मविश्वास, शिक्षा, संपत्ति आदि के सम्बन्ध में पुरुषों के समान थी| यज्ञों में भी उसे सर्वाधिकार प्राप्त था| वैदिक युग में नारी की गतिशीलता पर कोई रोक नहीं थी और न ही मेल मिलाप पर| उस युग में मैत्रेयी, गार्गी और अनुसूया नामक विदुषी नारियाँ शास्त्रार्थ में पारंगत थीं|

महाभारत के कथनानुसार वह घर घर नहीं जिस घर में सुसंस्कृत, सुशिक्षित पत्नी न हो| गृहिणी विहीन घर जंगल के समान माना जाता था और उसे पति की तरह ही समानाधिकार प्राप्त थे| वैदिक युग महिलाओं  का स्वर्ण युग था|

उत्तर वैदिक युग- वैदिक युग में महिलाओं की जो स्थिति थी वह इस युग में कायम न रह सकी| उसकी शक्ति, प्रतिभा व स्वतंत्रता के विकास पर प्रतिबन्ध लगने लगे| बाल-विवाह का निर्देश दिया गया जिससे महिलाओं की शिक्षा में बाधा पहुंची और उनकी स्वतंत्रता को ज्ञानियों ने घर की चारदीवारी में कैद कर दिया ,  वेदों का ज्ञान असंभव हो गया और उनके लिए धार्मिक संस्कार में भाग लेने की मनाही हो गयी| बहुपत्नी प्रथा का प्रचलन हो गया महिलों की स्थिति निम्न स्तर की होती गयी|

इस युग में महिलाओं  की स्थिति पहले से ज्यादा बदतर हो गयी, कारण यह था कि बाल-विवाह तथा बहुपत्नी प्रथा का प्रचलन और बढ़ गया| इस युग में विवाह की आयु घटाकर १२-१३ वर्ष कर दी गयी| विवाह की आयु घटाने से शिक्षा न के बराबर हो गयी, उनके समस्त अधिकारों का हनन हो गया|

उन्हें जो भी सम्मान इस युग में मिला वह सिर्फ माता के रूप में न कि पत्नी के रूप में| नारी का परम कर्तव्य पति   उनकी सेवा करना था| विधवा के पुनर्विवाह पर भी कठोर प्रतिबन्ध लगा दिया गया| मध्यकालीन युग- इस युग में मुग़ल साम्राज्य होने से महिलों की दशा और भी दयनीय हो गयी| ऊँची जाति में शिक्षा समाप्त हो गयी और पर्दा प्रथा का प्रचलन हो गया| विवाह की आयु घटकर ८-९ वर्ष हो गयी|

कवि जय शंकर प्रसाद ने स्त्रियों की महत्ता का बोध समाज को अपनी इन पंक्तियों से कराया- नारी तुम केवल श्रद्धा हो , विश्वास रजत नग, पग तल में| पियूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में|| साहित्यकारों ने स्त्री की ममता, वात्सल्य, राष्ट्र के निर्माण में योगदान देने वाले गुणों के महत्व को समाज को समझाया और उनकी महत्ता के प्रति जागरूक किया|

अनेक समाज सुधारकों ने उनकी दशा सुधारने के लिए सकारात्मक प्रयास किया| स्वामी दयानंद ने स्त्री-शिक्षा पर बल दिया, बाल-विवाह के विरूद्ध आवाज उठाई| राजा राम मोहन राय ने सती-प्रथा बंद कराने के लिए संघर्ष किया| परिणामस्वरूप बाल विवाह निरोधक अधिनियम द्वारा बाल विवाह का कानूनी रूप से अंत कर दिया गया,

आज  जल, थल व वायु कोई भी क्षेत्र महिलाओं  के पहुंच से दूर नहीं रहा| हम कह सकते हैं कि आज का युग महिला सशक्ति करण का युग है| भारत के राष्ट्रपति को भी महिला ने सुशोभित किया| ज्ञान, विज्ञानं, चिकित्सा, शासन कार्य और यहाँ तक कि सैनिक बनकर देश की रक्षा के लिए मोर्चों पर जाने का भी साहस करने लगी है|

आज मेडिकल विंग के अलावा सेना के अन्य विंग में 6807महिला ऑफिसर तैनात हैं. वायु सेना में 1607 और नौसेना में 704महिला ऑफिसर हैं. प्रतिशत में देखें तो सेना में 0.56 फीसदी, वायु सेना में 1.08 फीसदी और नौसेना में 6.5 फीसदी महिला ऑफिसर हैं

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास 

यह दिवस सबसे पहले 28 फ़रवरी 1909 के अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर मनाया गया था। इसके बाद यह फरवरी के आखिरी रविवार के दिन मनाया जाने लगा। 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलवाना था, क्योंकि उस समय अधिकतर देशों में महिला को वोट देने का अधिकार नहीं था। वर्ष 1910 के अगस्त महीने में, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सालाना उत्सव को मनाने के लिये कोपेहेगन में द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी की एक मीटिंग जो अंतरराष्ट्रीय महिला सम्मेलन के द्वारा आयोजित की गई थी। अंतत: इसे पहली बार 19 मार्च 1911 में ऑस्ट्रीया, जर्मनी, डेनमार्क और स्वीट्ज़रलैंड के लाखों लोगों द्वारा मनाया गया था। विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम जैसे प्रदर्शनी, महिला परेड, बैनर आदि रखे गये थे। महिलाओं के द्वारा वोटिंग की माँग, सार्वजनिक कार्यालय पर स्वामित्व और रोजगार में लैंगिक भेद-भाव को समाप्त करना जैसे मुद्दे सामने रखे गये थे।

 

 

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