रायपुर। कुलदीप शुक्ला
Elephant : “बचपन से सुने और पड़े की हाथी देखो बड़ा जानवर लंबी सूड़ हिलाता है,सूपा जैसे कान है जिसके दो दो दांत दिखाता है”और कई बार हाथी की सवारी भी किये लेकिन कभी सोचा नहीं था कि हाथी सिर्फ और सिर्फ भौतिकतावादी दुनिया में मारा जावेगा सिर्फ़ इसलिए क्योंकि बिजली और ऊर्जा के उत्पादन के नाम पर जंगल को काट कर हाथियों को बेघर कर दिया जा रहा है आज ये उसी का नतीजा है कि मानव और हाथी के बीच संघर्ष चल रहा है जिसका कई ऐसे उदाहरण है; जैसे केरल के मल्लपुरम में हथिनी को बेरहमी से मारने की घटना ने न सिर्फ इंसानों को बल्कि जीवों को भी झकझोर कर रख दिया था । घटना केरल के साइलेंट वैली नेशनल पार्क की एक गर्भवती हथिनी को कुछ लोगों ने पटाखों से भरा अनानास खिला दिया था। अनानास चबाते ही उसमें हुए विस्फोट से हथिनी का जबड़ा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। हफ्तेभर बाद 27 मई को मलप्पुरम में वेल्लियार नदी में हथिनी की मौत हो गई थी।
जिस का खूब विरोध हुआ और खूब राजनीति हुई। क्या यहीं पर ही संघर्ष जा कर थम गई न ही हाथी का हमला और उत्पात कम हुआ और ना ही हाथी की मौत कम हुई है।
” ऐसे में सवाल उठता है की हाथी विलुप्त हो जायगें ? क्या मानवी कारण से हाथी विलुप्त हो रहा है ? ऐसे कई सवाल है जो सोचने को विवश करता है, इनकी कई प्रजाति विलुप्त गई है। हाथी दांत के व्यापार पर लगे प्रतिबंध के बावजूद हाथियों का अवैध शिकार हो या फिर जंगल की कटाई और अवैध खनन ये भी इनको प्रभावित करता है “
छत्तीसगढ़ में मानव-हाथी संघर्ष के कारण पिछले पांच वर्षों में 77 हाथियों और 296 लोगों की मौत हुई है। राज्य के वन विभाग ने के अनुसार छत्तीसगढ़ में मानव-हाथी संघर्ष के कारण पिछले पांच वर्षों में 77 हाथियों और 296 लोगों की मौत हुई है । छत्तीसगढ़ में 25 सितंबर 2022 के रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में 339 जंगली हाथी हैं। इनमें से सिर्फ 90 हाथी अभयारण्य क्षेत्र और टाइगर रिजर्व में है।
डेटा से पता चलता है कि विश्वास के विपरीत, 2021 और 2022 में संघर्ष के परिणामस्वरूप 14 मानव जीवन और 16 हाथियों की जान चली गई, जो 2018 में 18 हाथियों की जान से थोड़ा कम है।
आंकड़ों के अनुसार, 2018-2022 के बीच घरों या अन्य संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के कुल 11,659 मामले दर्ज किए गए। इस तरह के सबसे अधिक मामले, 3,062, 2021 में दर्ज किए गए थे
केंद्र सरकार ने संसद में दावा किया था कि पिछले तीन सालों में देश में हाथियों के हमले में 1,578 इंसानों की मौत हुई है. सरकार के मुताबिक, इस दौरान 222 हाथियों की मौत करंट लगने से, 45 की ट्रेन हादसों में, 29 की अवैध शिकार और 11 की मौत ज़हर खाने से हुई.
इस बीच पिछले पांच वर्षों में, ओडिशा में 410 हाथियों की मौत दर्ज की गई, जबकि इसी अवधि में राज्य में 518 लोगों की मौत हुई है। पश्चिम बंगाल में मानव-हाथी संघर्ष के कारण 42 हाथियों की मौत और 358 लोगों की मौत दर्ज की गई ।
अगस्त 2022 में, तमिलनाडु राज्य सरकार ने विश्व हाथी दिवस 2022 (12 अगस्त) के अवसर पर अगस्त्यमलाई हाथी रिजर्व को तिरुनेलवेली और कन्याकुमारी जिले के अगस्त्यमलाई में 1,19,748.26 हेक्टेयर के कुल क्षेत्रफल के साथ अपने 5वें हाथी रिजर्व के रूप में अधिसूचित किया। यह भारत का 32वां हाथी रिजर्व है।
तमिलनाडु और असम में दोनों राज्यों में पांच-पांच हाथी रिजर्व हैं, इसके बाद केरल में चार, ओडिशा में तीन, उत्तर प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, नागालैंड और पश्चिम बंगाल में दो-दो और प्रत्येक में एक-एक हाथियों का भंडार है। आंध्र प्रदेश, झारखंड, मेघालय और उत्तराखंड।
हाथी को 2010 में भारत का राष्ट्रीय विरासत पशु घोषित किया गया था। विश्व हाथी दिवस प्रत्येक वर्ष 12 अगस्त को मनाया जाता है।
कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ क्षेत्र में सर्वाधिक हाथी पाए जाते हैं। सन 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार कर्नाटक में 6049 हाथी देखे गए हैं, जबकि असल में 5719 हाथी देखे गए हैं, और केरल में 3054 हाथी देखे गए हैं।
विश्व में सबसे ज्यादा हाथी लाओस पर पाए जाते हैं और इसे साथ ही हाथियों का देश भी कहा जाता है। लाओस दक्षिण पूर्वी एशिया में हिंदचीन प्रायद्वीप पर स्थित देश है। हाथी केवल अफ्रीका और एशिया के मूल निवासी हैं, वे दुनिया भर में महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक अर्थ रखते हैं।
हाथी की कितनी आयु होती है और कितना खाना और पानी पीते है।
हाथी 200 से 300 किलोग्राम तक खाना रोज खाते हैं। इतना ही नहीं वे एक दिन में करीब 45-50 लीटर पानी पीते हैं। भोजन की मात्रा हाथी के ठिकाने, भोजन की उपलब्धता पर भी निर्भर करती है। गर्म इलाकों में हाथी ज्यादा पानी पीता है।
पहला हाथी कहां पाया गया
अफ्रीकी हाथी (लोक्सोडोंटा अफ्रीकाना) की उत्पत्ति लगभग 1.5 मिलियन वर्ष पहले अफ्रीका में हुई थी। आज, अफ्रीकी हाथी सबसे बड़ा जीवित भूमि जानवर है। एशियाई हाथी (एलीफस मैक्सिमस) अफ्रीका में उत्पन्न हुआ और एशिया में चला गया, जहां आज प्रजातियां निवास करती हैं।