गांव तो गांव, उसके आसपास चारों ओर दस दस कोस तक

Now Forget About The Big Village
Now Forget About The Big Village
 साहित्य , डायन | Now Forget About The Big Village : बहराइच जिले के ग्रामीण अंचल में जंगल के किनारे बसा एक छोटा सा गांव ढकहरा।  लगभग दो सौ पचास परिवारों वाले ढकहरा गांव के सभी निवासी अशिक्षित,  सीमांत कृषक या खेतिहर मजदूर। गांव तो गांव, उसके आसपास चारों ओर दस दस कोस तक विकास का कोई चिह्न नहीं। डाकघर, सरकारी स्कूल, अस्पताल, बिजली आदि के वादे तो हर चुनाव में बांटे जाते रहे हैं, मगर ये वादे हकीकत में आज तक नहीं बदल सके।

दो महीने में चिट्ठी -पत्री बांट जाता

Now Forget About The Big Village :  डाकिया गांव में महीने -दो महीने में चिट्ठी -पत्री बांट जाता है और चिरौरी -विनती करने पर पढ़ कर सुना भी देता है। हारी-बीमारी का जिम्मा भरोसे भगत उठाते हैं। चाहे करिया सांप काटे, दाढ़ दर्द करे या जाड़ा देकर बुखार आए, भरोसे भगत के पास हर बीमारी का मंत्र है। तपेदिक की चपेट में आने पर सोहन भी भरोसे भगत की शरण में आया, मगर दो वर्ष में ही टें बोल गया। गांव के अधिकांश लोगों को यह विश्वास है कि भरोसे भगत के तपेदिक वाले मंत्र की बदौलत ही सोहनलाल दो साल तक चल गया वर्ना तपेदिक क्या कोई मामूली रोग है।

हितैषी भरोसे भगत उर्फ राम भरोसे प्रधान पद के उम्मीदवार

Now Forget About The Big Village :  यही गांव भर के हितैषी भरोसे भगत उर्फ राम भरोसे पिछले ग्राम सभा के चुनाव में प्रधान के पद के उम्मीदवार थे और शीतला प्रसाद से छियालीस वोट से हार गए थे। भरोसे भगत को पूरा भरोसा है कि प्रधानी का चुनाव हरवाने में उनके पड़ोसी गोकरन की बड़ी भूमिका रही। गोकरन के द्वारा शीतला प्रसाद की पैरवी के कारण उसकी बिरादरी के सारे वोट उनके प्रतिद्वंद्वी को पड़ गये। अगर ये वोट भरोसे भगत के पाले में आ जाते तो बाजी पलट निश्चय ही पलट जाती।

Now Forget About The Big Village :  गोकरन के विवाह को आठ वर्ष

भरोसे भगत इसीलिए गोकरन से मन ही मन रंजिश मानता था और उसे नीचा दिखाने के अवसर की तलाश में रहता था।
गोकरन के विवाह को आठ वर्ष हो चुके थे किन्तु उसकी पत्नी सावित्री ने कभी गर्भ नहीं धारण किया था। गोकरन के माता-पिता बच्चे की किलकारियां सुनने की हसरत  लिए ही परलोक सिधार गए थे।
सावित्री की मां बनने की लालसा लगातार तीव्र होती जा रही थी। अपनी इस लालसा से विवश होकर वह पास-पड़ोस के घरों में जाकर बच्चों को खिलाने लगती। एक बार रात्रि के समय अपने शयनकक्ष में सावित्री ने अपने पति से कहा -“मैं तुम्हें पिता बनने का सुख नहीं दे पा रही हूं। अपने वंश की वृद्धि के लिए तुम्हें दूसरा विवाह कर लेना चाहिए।”
सावित्री की बात सुनकर गोकरन आश्चर्य से उसे देखता ही रह गया। फिर कुछ सोच कर बोला-“तुम कैसी मूर्ख स्त्री हो जो अपनी सौत लाने के लिए मुझे उकसा रही हो?…. फिर क्या पता कि कमी तुम्हारे शरीर में है या मेरे शरीर में है।….”
” तो चलो, हम दोनों लोग शहर चल कर जांच करा लें और आवश्यक हो तो डाक्टर से इलाज करवा लें।”
  “हां, तुम्हारे इस सुझाव से मैं सहमत हूं। हम कल ही शहर चल कर डाक्टर से आवश्यक जांच करवा लेते हैं।”
  अगले दिन गोकरन और सावित्री ने शहर जाकर जांच कराई तो पता लगा कि सावित्री तो गर्भ धारण करने में सक्षम है,
Now Forget About The Big Village :  मगर गोकरन के शरीर में ही स्पर्म नहीं बनते हैं।
सावित्री ने गोकरन को इस बात की शपथ दिलाई कि वह इस डाक्टरी जांच के विषय में किसी को कुछ नहीं बतायेगा। गोकरन ने सावित्री से कहा -“हम शीघ्र ही एक बच्चे को गोद ले लेंगे।”
” नहीं, हम ईश्वर की मर्जी के विरुद्ध नहीं जायेंगे। हम बच्चा गोद लेने के बजाय फलदार वृक्ष लगाएंगे और उनकी सेवा कर उन्हें बड़ा करेंगे।” – सावित्री ने दृढ़ता से कहा।
सावित्री के मन में जब से यह बात बैठ गई कि वह कभी मां नहीं बन सकेगी तो बच्चों के प्रति उसका मोह और भी बढ़ गया। अब वह जहां कहीं भी छोटा बच्चा देख लेती, तुरन्त ही उसे गोद में उठा कर प्यार करने लगती।
एक दिन वह अपने स्वजातीय पड़ोसी श्याम लाल के घर गई और उनके दो वर्ष के बच्चे को देर तक खिलाती रही। संयोग से शाम को बच्चे को बुखार आ गया। बच्चे के माता-पिता उसे लेकर उपचार हेतु भरोसे भगत के पास गये। भरोसे भगत ने बच्चे की देह पर हाथ फेरते हुए कहा -” बच्चे को नजर लगी है।”
फिर पूछा -“आज तुम्हारे घर कौन कौन आया था?”
श्याम लाल की पत्नी  काफी देर तक सोचती रही, फिर बोली -” दोपहर में गोकरन की पत्नी आई थी, वही इसे काफी देर तक खिलाती रही।”
यह सुनकर भरोसे भगत मन ही मन खुश हो गया। उसने सोचा कि गोकरन को सबक सिखाने का इससे अच्छा अवसर नहीं मिलेगा। वह इधर-उधर देख कर धीरे से बोला -“बांझ औरत से बच्चे को बचा कर रखना चाहिए।”
Now Forget About The Big Village :  फिर उसने मंत्र पढ़ कर नजर
उतारने का नाटक किया। मगर बच्चे का बुखार बढ़ता ही गया।
वास्तव में बच्चे को मच्छर काटने से डेंगू हो गया था। उचित इलाज के अभाव में उसके रक्त में प्लेटलेट्स कम होती गई और सातवें दिन बच्चे की मृत्यु हो गई। दुख की मारी श्याम लाल की पत्नी ने बच्चे की मृत्यु के लिए सरे-आम सावित्री को दोषी ठहरा दिया।
इसके बाद तो जब भी  गांव में कोई बच्चा बीमार होता और उपचार हेतु भरोसे भगत के यहां पहुंचता तो भरोसे भगत इशारों-इशारों में गोकरन की पत्नी को दोषी ठहरा देता और कहता -” बांझ स्त्री पुत्र की लालसा में धीरे-धीरे डायन हो जाती है। इसलिए बांझ स्त्री से बच्चों को बचा कर रखना चाहिए।”
भरोसे भगत की डायन वाली बात अनपढ़ गांव वालों के दिल-दिमाग में ऐसी बैठी कि सभी गांव वाले सावित्री से भयभीत रहने लगे। गोकरन को जब इसकी जानकारी हुई तो उसने कहा-” मैं पूरे गांव को चीख चीखकर बताऊंगा कि मेरी सावित्री बांझ नहीं है, मैं ही नपुंसक हूं।”
मगर सावित्री ने उसे शपथ की याद दिलाते हुए कहा कि तुम किसी से कुछ नहीं कहोगे वर्ना लोग तुम्हारी हंसी उड़ायेंगे।वे मुझे बांझ कहते रहें, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैंने अब दूसरों के घर जाना और पराये बच्चों की ओर देखना तक बंद‌ कर दिया है। अब वे सब अपने घर  खुश रहें, मैं अपने घर में खुश। गोकरन और सावित्री ने अपने खेत और सरकना नाले के किनारे लगभग एक सौ वृक्ष लगाए और उनकी देखभाल करने लगे। धीरे-धीरे वृक्षों ने जड़ पकड़ ली और विकसित होने लगे। वे दोनों रोज ही अपने लगाए वृक्षों की देखभाल करते और वृक्षों को बढ़ता देखकर बहुत खुश होते इधर सावन- भादौं में पूरे क्षेत्र में भेड़ियों का प्रकोप बहुत बढ़ गया।
पीलीभीत,बहराइच और लखीमपुर खीरी जिलों के ग्रामीण इलाकों में भेड़िये कई बच्चों को उठा ले गए। अनेक स्त्रियों और पुरुषों पर भी आक्रमण कर दिया। वन विभाग के अधिकारी दिन रात भेड़ियों को पकड़ने का अभियान चला रहे थे। ग्राम वासी रात रात भर अपने गांव मे पहरा दे रहे थे। ढकहरा गांव के लोग भी बच्चों की सुरक्षा हेतु पहरा देते थे।
सावित्री भोर में चार बजे उठ कर दिशा मैदान के लिए जाती थी। भेड़ियों के भय के कारण वह अपने साथ हंसिया लेकर जाती थी।
ऐसी ही एक भोर में जब सावित्री दिशा -मैदान से वापस लौट रही थी तो गांव की तरफ से आ रहे शोर को सुनकर वह चौकन्ना हो गई। कुछ ही क्षणों में एक भेड़िया उसकी ओर आता दिखाई दिया। सावित्री ने कमर में खोंसा हुआ हंसिया फुर्ती से निकाल कर हाथ में ले लिया। जैसे ही भेड़िया उसके पास से भागता हुआ आगे बढ़ा, सावित्री ने हंसिया से भेड़िये पर वार कर दिया। भेड़िये के मुंह में दबा बच्चा छूट गया और घायल भेड़िया चीखते हुए एक ओर को भागा।
सावित्री ने लपक कर बच्चा उठा लिया और उसे लेकर गांव की ओर भागी।  
गांव की तरफ से अनेक ग्रामीण लाठी,भाला आदि लिए भागते आ रहे थे। उन ग्रामीणों में भरोसे भगत भी था। भरोसे भगत ने सावित्री की गोद में बच्चा देखते ही कहा -” झूठे ही भेड़िया -भेड़िया कर रहे थे तुम लोग। बच्चे को भेड़िया नहीं यह डायन उठा ले गयी थी। जब देखा कि गांव वाले पीछे आ रहे हैं और इनसे बच कर निकल पाना संभव नहीं है तो वापस लौट पड़ी।
इतना सुनना था कि सुखराम ने अपने बायें पैर का जूता दाहिने हाथ से निकाला और भरोसे भगत के मुंह पर भड़ाभड़ ठोकने लगे। वास्तव में, दस-बारह दिन पहले जब सुखराम की पत्नी ने उन्हें बताया था कि उनकी बड़ी बेटी माधुरी दाढ़ दर्द होने पर दाढ़ किलवाने के लिए भरोसे भगत के यहां गई थी तो वह  मंत्र पढ़ते हुए बार-बार उसे गलत ढंग से छू रहा था, तभी से उसका खून खौल रहा था। मगर वह बेटी की बदनामी के डर से चुप था।भरोसे भगत के विषय में पहले भी इस प्रकार की बातें गांव वालों से उसने सुनी थीं। आज अनुकूल अवसर पाकर उसने भरोसे भगत को सबक सिखाने की ठान ली थी।
चूंकि भरोसे भगत इस मामले में अपना भरोसा खो चुका था और तमाम लोग उसकी गंदी हरकतों के कारण उससे नाराज़ थे। अतः अनुकूल अवसर पाकर अन्य लोगों ने भी भरोसे भगत पर अपना हाथ साफ़ कर लिया।
उधर बच्चे के माता-पिता और कुछ  अन्य लोग घायल बच्चे को लेकर उसके इलाज हेतु शहर के लिए भागे। शेष लोग सावित्री की दया -ममता और वीरता की प्रशंसा करते हुए भरोसे भगत की अपशब्दों से भर्त्सना कर रहे थे।
गोकरन जब सावित्री को लेकर घर पहुंचा तो एकांत पाते ही उसने सावित्री को गले लगा लिया और पुलकित स्वर में बोला -“बुजुर्गों ने सही कहा है कि सत्य परेशान हो सकता है मगर पराजित नहीं हो सकता।
डॉ गोपाल कृष्ण शर्मा ‘मृदुल’,
569क/108/2, स्नेह नगर, 
आलमबाग, लखनऊ-226005

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